नई दिल्ली: किसान आंदोलन को लेकर विवादों में रही बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनोट के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करने से इन्कार कर दिया है। मुंबई के अधिवक्ता चरणजीत सिंह चंद्रपाल ने याचिका दायर कर कहा था कि कंगना रनोट ने किसान आंदोलन को खालिस्तान से जोड़कर सिखों का अपमान किया है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने याचिकाकर्ता को आश्वासन देते हुए कहा कि आम जनमानस सिख और खालिस्तानी के बीच का फर्क समझता है। उन्हें सुप्रीम कोर्ट आने की जगह दूसरे कानूनी विकल्प अपनाने चाहिए थे।
न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि अदालत उनकी संवेदनशीलता का सम्मान करती है लेकिन जितना अधिक वह सोशल मीडिया पर कंगना रनोट के बयानों को प्रचारित करेंगे, उतना ही उनकी (कंगना की) मदद करेंगे। हालांकि, चंद्रपाल ने जोर देकर कहा कि कंगना ने सिख समुदाय के खिलाफ कई आपत्तिजनक बयान दिए हैं और उसके खिलाफ कुछ कार्रवाई की जानी चाहिए।
याचिकाकर्ता का यहां तक कहना था कि कंगना रनोट ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अपना गुरु बताया था। यह भी सिख धर्म को मानने वाले की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला बयान था। याचिकाकर्ता की मांग थी कि इस मामले को लेकर देश भर में दायर मुकदमों को मुंबई के खार थाने में स्थानांतरित कर दिया जाए।
याचिका में कंगना रनोट के सभी सोशल मीडिया पोस्ट पर सेंसरशिप लगाने की मांग भी की गई थी। इस पर न्यायलय ने साफ कर दिया कि इस मामले में संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट आने की जरूरत नहीं है। याचिकाकर्ता दूसरे कानूनी विकल्प भी अपना सकता है। वहीं सभी मामलों को मुंबई ट्रांसफर करने की मांग पर अदालत ने कहा कि आपराधिक मामले में शिकायतकर्ता और आरोपी ही इस तरह की मांग कर सकते हैं। किसी तीसरे पक्ष को इस तरह का कोई अधिकार नहीं है।