नई दिल्ली। अयोध्या के श्री राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में गुरुवार को दसवें दिन की सुनवाई में वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार ने मूल याचिकाकर्ताओं में शामिल गोपाल सिंह विशारद की ओर से पक्ष रखा। रंजीत कुमार ने कहा, “मैं परासरण और वैद्यनाथन के अभ्यावेदनों के संदर्भ में अपना अभ्यावेदन दे रहा हूं कि यह जन्मस्थल अपने आप में एक दैवीय स्थल है और उपासक होने के नाते पूजा करना मेरा नागरिक अधिकार है जो छीना नहीं जाना चाहिए।”
80 साल के अब्दुल गनी की गवाही का हवाला देते हुए रंजीत कुमार ने कहा कि गनी ने कहा था कि बाबरी मस्जिद राम जन्मस्थान पर बनी है। ब्रिटिश राज में मस्जिद में सिर्फ जुमे की नमाज़ होती थी और हिंदू भी वहां पर पूजा करने आते थे। रंजीत कुमार ने कहा, “मस्जिद गिरने के बाद मुस्लिमों ने नमाज़ पढ़ना बंद कर दिया लेकिन हिंदुओं ने जन्मस्थान पर पूजा जारी रखी।”
“नाबालिग की संपत्ति किसी को देने या बंटवारा करने का फैसला नहीं हो सकता”
इससे पहले बुधवार को रामलला विराजमान के वकील सीएस वैद्यनाथन ने अपनी बहस पूरी कर ली थी। उन्होंने कहा था कि विवादित भूमि पर मंदिर रहा हो या न हो, मूर्ति हो या न हो, लोगों की आस्था होना काफी है, यह साबित करने के लिए कि वही राम जन्मस्थान है। वैद्यनाथन ने कहा था कि जब संपत्ति भगवान में निहित होती है तो कोई भी उस संपत्ति को ले नहीं सकता और उस संपत्ति से ईश्वर का हक नहीं छीना जा सकता। ऐसी संपत्ति पर एडवर्स पजेशन का कानून लागू नहीं होगा।
रामलला विराजमान के वकील ने कहा था कि मंदिर में विराजमान रामलला कानूनी तौर पर नाबालिग का दर्जा रखते हैं। नाबालिग की संपत्ति किसी को देने या बंटवारा करने का फैसला नहीं हो सकता। हज़ारों साल से लोग जन्मस्थान की पूजा कर रहे हैं। इस आस्था को सुप्रीम कोर्ट को मान्यता देना चाहिए। उन्होंने कहा था कि 1949 में विवादित इमारत में रामलला की मूर्ति पाए जाने के बाद 12 साल तक दूसरा पक्ष निष्क्रिय बैठा रहा। उसे कानूनन दावा करने का हक नहीं है। कोर्ट जन्मस्थान को लेकर हज़ारों साल से लगातार चली आ रही हिंदू आस्था को महत्व दे।