गाय के गोबर से जुड़ी बहस तो आप अक्सर सोशल मीडिया पर सुनते-पढ़ते रहते हैं लेकिन मैं आपको एक ऐसा वाकया बताने जा रहा हूं जब जर्मन सेना को अपनी जान बचाने के लिए ऊंट का मल खाना पड़ा था। बात द्वितीय विश्वयुद्ध की है यानि 1945 के आस-पास की। अफ्रीका के फ्रंट पर जर्मन सेना थी और उसके सैनिकों को लग गए थे दस्त। आजकल भी हम लोगों का अगर पेट खराब होता है तो उस दिन घर से बाहर निकलना उचित नहीं समझते हैं और अंदाजा लगाइए जब पूरी सेना को दस्त लग गए हों तो वह क्या करेगी, क्या खाक युद्ध करेगी?
आप लोग सोच रहे होंगे कि दस्त लग गए तो कौन सी बड़ी बात है, एक-एक गोली मेट्रोजिल, लोमाप्राइड की या नारफ्लाक्सासिन अथवा टिनडिनडाज़ोल की खा लेते हैं तो सही हो जाते हैं, एक ही खुराक में सब ठीक। लेकिन उस समय यह इतना आसान नहीं था। उस समय तक पहली एंटीबायोटिक पेन्सिलिन की खोज तो हो चुकी थी लेकिन उसका औद्योगिक निर्माण शुरू नहीं हो पाया था। जर्मन सैनिक जितने तरीके दस्त बंद करने के जानते थे वे सब आजमा लिये लेकिन दस्त बंद होने का नाम ही नहीं ले रहे थे। ऐसे में वहां के मूल निवासियों को बुलाया गया और पूछा गया जब आपको दस्त लगते हैं तब आप क्या करते हैं। इस पर उन्होंने कहा हम लोग ऊंट का गोबर खा लेते हैं लेकिन शर्त यह है कि गोबर ताजा होना चाहिए। जर्मन सैनिको को अपने दस्त बंद करने थे, ऐसे में उनके पास कोई और चारा ना था। सैनिकों को ऊंट का गोबर खाना पड़ा। गोबर खाने से उनके दस्त बंद हो गए।
इसके पीछे क्या विज्ञान है, उस समय न तो वे अफ्रीकी जानते थे और ना ही जर्मन सैनिक। पर जान बचती है तो गोबर खाने में ही क्या बुराई है! लेकिन अब विज्ञान ने जो खोज की वह मैं आपको बताता हूं। विज्ञान यह नहीं मानता कि हमें किसी ईश्वर ने बनाया है। विज्ञान कहता है कि हमारा विकास हुआ है एक कोशिकीय जीव से मानव बनने की प्रक्रिया में। हमारे शरीर में पूर्व के सभी जीवनों के अंश मौजूद हैं और इनमें भी सबसे अधिक मात्रा में एक कोशिकीय सूक्ष्म जीव हैं।
हम सब जानते ही हैं दस्त लगने के अधिकतर मामलों में कारण कोई बाहरी इन्फेक्शन यानि संक्रमण होता है। किसी ऐसे सूक्ष्मजीव का इन्फेक्शन जो आँतों में जाकर वहाँ रहने वाले सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर देता है या फिर उनका संतुलन बिगाड़ देता है। शरीर इन नुकसानदेह सूक्ष्मजीवों से पीछा छुड़ाना चाहता है इसलिए वह बार-बार लूज मोशन यानि दस्त करके उन्हें बाहर निकालता है। ऐसी स्थिति में हम घर में होते हैं तो दही या छाछ पी लेते हैं और इससे हमें फायदा भी मिल जाता है। इस फायदे का कारण भी सूक्ष्म जीव हैं। दरअसल जो जीवाणु दही में होते हैं वही हमारी आँतों में भी होते हैं। दही के जीवाणु आंतों के खतरनाक जीवाणुओं को खत्म कर देते हैं। इंसानों का विकास हरबी बोरस यानि घास-फूस खाने वाले जंतुओं से हुआ है। इसलिए जो बैक्टीरिया घास चरने वाले पशुओं की आंतों में होते हैं वही जीवाणु हमारी आँतों में भी होते हैं।
दूध निकालना और दही बनाना मनुष्य ने बहुत बाद में सीखा होगा, आप सोचिए जब आदिमानव जंगलों में रहता होगा और उसको दस्त लगते होंगे तो वह क्या करता होगा। उसे प्रकृति ने ही यह ज्ञान दिया होगा कि यह जो जानवरों का गोबर है तुम इसको खाओगे तो तुम्हारे दस्त ठीक हो जाएंगे। आपने कुत्तों को भी कभी-कभार गाय-भैंस का गोबर या घोड़े की लीद खाते हुए देखा होगा, यह भी उसी प्रक्रिया का अंग है।
आज प्रोबियोटिक फूड, सप्लीमेंट्स और जाने क्या-क्या बाजार में आ गये हैं पर दुनिया का सबसे पुराना प्रोबायोटिक अगर कुछ है तो है वह इन जानवरों का ताजा गोबर ही है। आज भी कुछ लोग गाय के गोबर के प्रेमी हैं तो इसका कारण ऊपर से भले ही देखने मे धार्मिक लगे किंतु यह हमारी वही बेसिक इंस्टिंक्ट है जो प्रकृति ने हमें हमारे सर्वाइवल के लिए दी है। प्रकृति ने भारत के लोगों को गाय के गोबर को खाने की इंस्टिंक्ट दी है क्योंकि यहाँ गाय होती है जबकि अरब और अफ्रीका वाले ऊँट का गोबर खाते हैं क्योंकि वहाँ ऊँट होता है।
तो आप समझ ही गए होंगे कि ऊंट के गोबर ने जर्मन सेना के लिए क्या काम किया था। एक तरह से यह प्रोबायोटिक फूड था जिसके गुड बैक्टीरिया ने जर्मन सैनिकों की आँतों में जाकर दस्त लगाने वाले खराब बैक्टीरिया को बाहर कर दिया और वे दस्त से मुक्त हो गए।
पंकज गंगवार
(लेखक पोषण विज्ञान के गहन अध्येता होने के साथ ही न्यूट्रीकेयर बायो