नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में पति के पूरे वेतन पर कब्जा और संपत्ति हथियाने के लिए झूठा मुकदमा दर्ज कराने को उत्पीड़न बताते हुए इसे तलाक का आधार माना है। हाईकोर्ट ने तलाक को मंजूरी देने के परिवार न्यायालय (family Court) के फैसले को सही ठहराते हुए यह फैसला दिया है।

न्यायमूर्ति हीमा कोहली और आश मेनन की पीठ ने कहा, “महिला चाहती थी कि उसका पति महज 50 रुपये प्रतिदिन के खर्च के हिसाब से धनराशि अपने पास रखकर पूरा वेतन उसे दे दे।” पीठ ने आगे कहा, “यह बात दहेज उत्पीड़न के आरोप में पति और उसके परिवार के अन्य सदस्यों के बरी होने से भी साबित होती है।” हाईकोर्ट ने महिला की उन दलीलों को सिरे से खारिज कर दिया जिसमें उसने कहा था कि दहेज के लिए प्रताड़ित किए जाने की वजह से उसने मुकदमा दर्ज कराया था।

हाईकोर्ट ने कहा कि पत्नी की रवैये से पति तनाव में था और अपने माता-पिता के हितों को लेकर भी डर के साथ जीवन बिता रहा था क्योंकि वह (महिला) उसके सिर पर मुकदमों का तलवार लटकाए हुए थी। वह वर्ष 2005 से लेकर 2010 तक ऐसा करने में सफल भी रही। पीठ ने कहा कि इन तथ्यों पर विचार करने के बाद परिवार न्यायालय द्वारा तलाक को स्वीकृति देने के फैसले में हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं है। हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए महिला की ओर से परिवार न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया।

हाईकोर्ट में पेश मामले के अनुसार महिला ने पति और उसके परिवार वालों के खिलाफ न सिर्फ दिल्ली बल्कि गाजियाबाद में भी दहेज उत्पीड़न व अन्य आरोपों में मुकदमा दर्ज कराया था। पत्नी ने पति और ससुराल के अन्य लोगों पर दहेज के लिए प्रताड़ित करने का आरोप लगाया। उसने आरोप लगाया था कि उसके ससुराल वाले उसके माता-पिता से 100 गज जमीन लेने के लिए उसे परेशान कर रहे हैं। दूसरी ओर पति की ओर से तलाक के लिए दाखिल याचिका के अनुसार जून 2005 में दोनों की शादी हुई थी। दंपति के तीन बच्चे हैं। पति ने आरोप लगाया कि शादी के बाद से ही उसकी पत्नी का रवैया उसके माता-पिता और बहन के प्रति काफी खराब रहा। वह सारी संपत्ति अपने नाम कराने के लिए दबाव बनाने लगी।

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