BareillyLive : तीन सौ बेड अस्पताल को सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के तौर पर मरीजों को सेवाएं देनी थीं लेकिन वह शुरू हुआ बाद में, घोटालों की बीमारी उसे पहले ही लग गई। कई घोटालों की पहले जांच हो चुकी है, अब उसकी बिल्डिंग बनने के बाद अब तक खरीदे गए उपकरणों और दूसरे सामान की जांच होगी। कमिश्नर संयुक्ता समद्दार के आदेश पर अपर निदेशक डॉ. ए के चौधरी ने उच्चस्तरीय जांच समिति गठित की है। इसमें चार सदस्यों को नामित किया गया है। बता दें कि करोड़ों की कीमत चुकाकर की गई उपकरणों और सामान की खरीद में बड़े गोलमाल की आशंका जताई जा रही है। कमिश्नर के आदेश के मुताबिक बिल्डिंग बनने के बाद से अब तक खरीदे गए सामान का स्टॉक बुक से मिलान किया जाएगा और उसमें किसी गड़बड़ी पर अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाएगी। लिहाजा उन अधिकारियों की धड़कनें बढ़ने लगी हैं जिनके कार्यकाल में अस्पताल की भव्य इमारत बनकर तैयार हुई थी। कमिश्नर के आदेश पर शुरू हुई इस जांच की गंभीरता इस बात से समझी जा सकती है कि अपर निदेशक चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण डॉ. एके चौधरी ने उच्चस्तरीय जांच कमेटी में संयुक्त निदेशक डॉ. तेजपाल, बदायूं के उप मुख्य चिकित्सा अधिकारी स्टोर डॉ. मो तहसीन, मानसिक चिकित्सालय के चीफ फार्मासिस्ट पीपी सिंह और पावर कॉरपोरेशन के सहायक अभियंता संदीप सक्सेना को शामिल किया है। इस जांच टीम को सात दिन के अंदर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए गए हैं। मंगलवार को अपर निदेशक चिकित्सा की ओर से इस संबंध में पत्र जारी कर दिया गया। इसके मुताबिक तीन सौ बेड अस्पताल के भवन का निर्माण होने से अब तक खरीदी गई सामग्री और उपकरणों का स्टॉक बुक से मिलान करने के साथ भौतिक सत्यापन किया जाएगा।

तीन साल पहले जब कोरोना की शुरुआत हुई थी तो तीन सौ बेड अस्पताल को कोविड अस्पताल बनाया गया था। यहां भर्ती कोविड संक्रमित मरीजों को परेशानी न हो, इसके लिए शासन की ओर से बड़ी संख्या में उपकरण भी दिए गए। कोविड की पहली लहर के बाद यहां आया सामान गायब होने लगा। मामला अधिकारियों की जानकारी में आया लेकिन वे लगातार इसे अनदेखा करते रहे। अस्पताल के कोरोना फ्लू कार्नर से 150 कुर्सियां गायब हो गईं, इसके साथ वार्डों में लगे 20 पंखे भी गायब हो गए। ये सारा सामान कहां गया, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। कोविड की पहली लहर के दौरान अधिकारी-कर्मचारियों के कार्यालयों में बड़ी संख्या में एसी भी लगाए गए थे लेकिन कई कार्यालय के एसी तक गायब हो गए हैं। जिम्मेदारों के पास इसका भी कोई जवाब नहीं है। सिर्फ रिकॉर्ड ही इस बात की पुष्टि कर रहा है कि अस्पताल में एसी लगाए गए थे। तीन सौ बेड अस्पताल को 8 मार्च 2013 में स्वीकृति मिली थी। उस समय इसके लिए 43.06 करोड़ रुपये का बजट स्वीकृत हुआ था, लेकिन इसके बाद इसका एस्टीमेट रिवाइज कर लागत बढ़ाई जाती रही। नौ साल में बनकर तैयार हुए इस अस्पताल के निर्माण में अंतत: 68.88 करोड़ रुपये की लागत आई। करोड़ों रुपये के उपकरण इस अस्पताल के लिए खरीदे गए थे। जिस तरह अब जांच बैठाई गई है, उससे लग रहा है कि बड़े स्तर पर यहां घपला किया गया। जांच अभी शुरू भी नहीं हुई कि अधिकारियों में खलबली का माहौल दिखने लगा है। माना जा रहा है कि यह जांच कई अधिकारियों पर भारी पड़ सकती है।

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