अखिल भारतीय कवयित्री सम्मेलन के 23 वें स्थापना दिवस पर काव्य पाठ
डॉ व्यथित और प्रोफेसर डॉ. कमला माहेश्वरी ‘कमल’ ने किया डॉ.तवीब की पुस्तक ’अनेकार्थी-शतक’ और ’महिला-शतक’का विमोचन
बदायूं @BareillyLive. अखिल भारतीय कवयित्री सम्मेलन नामक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था का (एआईपीसी ) 23वाँ स्थापना दिवस चन्द्रशील नगर में हर्षोल्लास से मनाया गया। सर्वहिताय और नारी उज्जागरण के लक्ष्य को ले घरों से निकाल, वर्जनाओं को दूर कर कलावन्त नारियों को खुला आकाश और मंच देने के लक्ष्य के साथ हुई थी एआईपीसी की स्थापना। अपने चार-पांँच वर्ष के जीवन काल से ही अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के क्षितिज को छूने लगी है। इसी हित में बदायूँ में भी एआईपीसी ’कवयित्री-सम्मेलन’ का गठन किया गया।
कार्यक्रम के संरक्षक व अध्यक्षता निर्वहित करने वाले वरिष्ठ शिक्षाविद् साहित्यकार डॉ रामबहादुर व्यथित और विशिष्ट अतिथि डॉ. इसहाक तवीब थे।
डॉ. व्यथित, डॉ.तवीब ने दीप प्रज्वल्लन कर मां शारदा को माल्यार्पण किया। साथ में शरद माहेश्वरी, ममता नौगरैया, कुलभूषण, डॉ.सौनरूपा, असिस्टेण्ट प्रोफेसर डॉ.शुभ्रा माहेश्वरी एवं डॉ. निशि अवस्थी भी थी। माँ वाग्देवी की वन्दना सुनीता मिश्रा ने प्रस्तुत की। डॉ. तवीब की 181वीं पुस्तक ’अनेकार्थी-शतक’ और ’महिला-शतक’ का विमोचन डॉ व्यथित ओर प्रोफेसर डॉ.कमला माहेश्वरी कमल ने किया।
इस मौके पर उपस्थित कवियित्री सरिता चौहान ने कहा कि –
“शबरी की कुटिया में चलकर के आएंगे। जीवन पथ-संचालन स्वयं सिखायेंगे।
जो पर पीड़ा देख द्रवित हो जाता है, उस अंतस ही राम तुम्हें दिख जाएंगे।।“
नारी के प्रति सामाजिक विकृतियों पर कटाक्ष करते हुए डॉ. सौनरूपा ने कहा-
“आप हस्ताक्षर करें अस्तित्व पर, क्या स्वयं को मैं तभी स्वीकृत करूंँगी ।
आत्म विश्लेषण रखूंँगी जब कभी पर, क्यों किसी की पंक्तियांँ उद्धृत करूंँगी।।“
अध्यक्षीय पद से यद्यपि डॉ राम बहादुर व्यथित ने नारी पीड़ा विषयक रचनाएं भी पढीं। अपने तेवर के अनुसार उन्होंने कहा-
खून से भीगी कोई कहानी लिखो।
शहीदों के जोश-ए-जवानी लिखो।
न्याय ऐसा लिखो न्याय सा जो दिखे ,
झूठ को झूठ सच की कहानी लिखो।।
विशिष्ट अतिथि डॉ तबीब ने कहा –
“एक अंधेरी कोठरी, है उसका आवास। बाहर फैली धूप का, नहीं जिसे विश्वास।।“
संचालिका डॉ कमला माहेश्वरी ‘कमल’ भी नारी के प्रति समाज में विघटित होते मूल्यों, प्रताड़नाओं,और अतिचार आदि से दुखी हो नारी अस्मिता की पहचान करा लताड़ लगाते हुए कहती हैं –
“रिश्तों की पूँजी सरल, तरल सुधा रस दाय।
हो जिस विधि सुख शान्ति घर, करती वही उपाय ।।
नारी है युग-साधना, नवचेतन आधार।
बन्द करो अतिचार ये, भरे राष्ट्र हुंकार।।“
डॉ.शुभ्रा माहेश्वरी भी नारी पीड़ा की सघनता को हृद्तल से महसूस करती कहती हैं –
“वक्त की लेखिनी ने लिखा जिसे मैं वह कागज हूंँ। बेबसी की स्याही से लिखा जिसे मैं वह कागज हूंँ।
मेरी ज़िन्दगी एक पुस्तक ही बनी रही अब तक ,जिस पर मौत ने हस्ताक्षर किए जिसे मैं वह कागज हूंँ।।“
सुनीता मिश्रा, डॉ निशि अवस्थी, डॉ सरला चक्रवर्ती, सीमा चौहान, डॉ.गार्गी बुलबुल, डॉ प्रतिभा मिश्रा, डॉ शिखा पाण्डेय, डॉ शिल्पी शर्मा, डॉक्टर सविता चौहान, कवियत्री श्रद्धा सारस्वत, प्रमिला गुप्ता, दीप्ति गुप्ता, डॉ. ममता नौगरिया, गहना माहेश्वरी, छवि माहेश्वरी, पर्व माहेश्वरी, शरद मोहन माहेश्वरी, भारती गुप्ता, दिशा गुप्ता, सत्य प्रकाश गुप्ता आदि ने भी अपनी रचनाएं प्रस्तुत की।
कार्यक्रम में डा. कमला माहेश्वरी ने सभी का आभार व्यक्त किया। अंत में अध्यक्षीय उद्बोधन और राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ ।