लंदन। “तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख…”, भारतीय न्याय व्यवस्था की कड़वी हकीकत दर्शाता एक हिंदी फिल्म में सन्नी देओल का बोला यह डायलाग कभी लोगों की जुबान पर था। लेकिन, यह केवल वर्षों से अदालत का चक्कर लगा रहे भारतीयों का ही दर्द नहीं है, ब्रिटेन में भी ऐसा ही हाल है। ब्रिटेन में अदालती कार्यवाही कितनी ढीली होती है इसका एक ताजातरपीन उदाहरण सामने आया है। यहां एक सेवानिवृत्त इंजीनियर ने तेज गति से वाहन चलाने पर लगे 100 पाउंड के जुर्माने से बचने के लिए अदालत की शरण ली और इस चक्कर में अपनी गाढ़ी कमाई के 30,000 पाउंड खर्च कर दिए।
रिचर्ड कीडवेल (71 साल) ने बताया कि उन्हें लगा कि अदालत में मामला जल्दी निपटेगा लेकिन कानूनी दांवपेच ने उनकी जमा-पूंजी खत्म कर दी। उन्होंने बताया कि 21000 पाउंड वकील की फीस, 7000 पाउंड अदालत में और बाकी आने-जाने में खर्च हो गए।
दरअसल, कीडवेल जिस सड़क से गुजर रहे थे वहां, 30 मील (48 किमी) प्रति घंटा की गति से वाहन चलाने की इजाजत थी और उन पर 35 मील (56किमी) प्रति घंटा की रफ्तार से वाहन चलाने का आरोप लगा था। तीन साल लंबी लड़ाई लड़ने के बाद भी वह हार गए। दूसरी ओर ब्रिस्टल के पास येट में रह रहे कीडवेल का दावा है कि वह नवंबर 2016 में न्यू रोड वॉरकेस्टर में तय 48 किलोमीटर की रफ्तार सीमा से अधिक पर नहीं थे। इसके बावजूद तेज गति से गाड़ी ड्राइव करने का उन पर आरोप लगा।
हालांकि, रिचर्ड कीडवेल अब भी हिम्मत नहीं हारे हैं और उन्होंने वॉरकेस्टर मजिस्ट्रेट कोर्ट में केस हारने के बाद फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। रिचर्ड कीडवेल ने कहा, “अब फैसला जो भी हो मैं बड़ी रकम गंवा चुका हूं। मैं इस कानूनी उलझन में फंसकर थक चुका हूं।” । वहीं क्राउन प्रोसिक्यूशन सर्विस के प्रवक्ता ने बताया कि अब जब अपील हुई तो मुकदमा और लंबा चलेगा। वर्ष 2018 के आंकड़ों के मुताबिक, ब्रिटेन में आधे से अधिक ड्राइवर 46 किलोमीटर प्रति घंटे वाली लेन पर तेज गति से गाड़ी चलाते हैं।