नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बीच अयोध्या मामले ने रोचक मोड़ ले लिया है। लगभग तीन हफ्ते की सुनवाई के बाद अब हिंदू और मुस्लिम पक्ष (निर्वाणी अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड) एक फिर से अदालत के बाहर इस मुद्दे को सुलझाना चाहते हैं। दोनों पक्षों ने इसके लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित मध्यस्थता पैनल को पत्र लिखा है। इस बीच, मध्यस्थता पैनल के प्रमुख न्यायमूर्ति कलीफुल्ला ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि मध्यस्थता के लिए सुन्नी वक्फ़ बोर्ड और निर्वाणी अखाड़ा ने उन्हें चिट्ठी लिखी है।

गौरतलब है कि सु्प्रीम कोर्ट ने रोजाना सुनवाई शुरू करने से पहले आपसी सहमति से यह मामला सुलझाने के लिए मध्यस्थता पैनल गठित किया था। इस पैनल में सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में तीन सदस्य थे। इस पैनल की अगुआई में पांच महीने तक कई दौर की मध्यस्थता प्रक्रीया चली लेकिन मामले का हल नहीं निकला। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में  मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच जजों की संविधान पीठ ने छह अगस्त 2019 से मामले की रोजाना सुनवाई शुरू की। संविधान पीठ में रंजन गोगोई के अलावा न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर भी शामिल हैं।

शीर्ष अदालत में 23 दिन की सुनवाई में हिंदू पक्ष की दलील पूरी हो गई है। इस समय मुस्लिम पक्ष अपना दलील रख रहा है।

सुप्रीम कोर्ट में 2010 से लंबित है मामला

आयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट में कुल 14 अपीलें, तीन रिट पिटीशन और एक अन्य याचिका लंबित है। सुनवाई की शुरुआत मूल वाद संख्या 3 और 5 से हुई। मूल वाद संख्या 3 निर्मोही अखाड़ा और मूल वाद संख्या पांच भगवान रामलला विराजमान का मुकदमा है। गौरतलब है कि वर्ष 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राम जन्मभूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। उसने एक हिस्सा भगवान रामलला विराजमान, दूसरा निर्मोही अखाड़े व तीसरा सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड को देने का आदेश था। इस फैसले को  सभी पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। ये अपीलें 2010 से लंबित हैं और सुप्रीम कोर्ट के आदेश से फिलहाल अयोध्या में यथास्थिति कायम है।\

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