Bareillylive: ब्रह्मपुरी में चल रहीं 164 वीं रामलीला में गुरु व्यास मुनेश्वर जी ने लीला से पूर्व वर्णन किया कि भगवान राम, सीता और लक्ष्मण वनवास काट रहे थे, तो वे वन में एक स्थान से दूसरे स्थान पर भटकते हुए ऋषि – मुनियों की सेवा और सहायता करते थे। उन्होंने पंचवटी में गोदावरी नदी के तट पर अपने लिए एक छोटी सी कुटिया बनाई और फिर वही समय व्यतीत करने लगे, उधर खर और दूषण की मृत्यु के बाद शूर्पनखा और भी ज्यादा अपमानित महसूस करने लगी थी इस कारण वो राक्षसों के राजा लंकापति रावण के पास गयी और अपनी कथा सुनाई। साथ ही उसने सीता की सुन्दरता का खूब बखान किया और रावण को अपने अपमान का बदला लेने के लिए उकसाया।
शूर्पनखा के अपमान का बदला लेने के लिए रावण अपने ‘पुष्पक विमान’ में बैठ कर मारीच के पास गया तब मारीच ने उसकी आज्ञा से सुनहरे हिरण का रूप धारण किया और माता सीता को लालायित करने के प्रयास करने लगा, माता सीता की दृष्टि जैसे ही उस स्वर्ण मृग पर पड़ी, उन्होंने भगवान राम से उस सुनहरे हिरण को प्राप्त करने की इच्छा जताई। भगवान राम सीताजी का ये प्रेमपूर्ण आग्रह मना नहीं कर पाए और छोटे भाई लक्ष्मणजी को सीताजी की सुरक्षा का उत्तरदायित्व सौंपकर उस स्वर्ण मृग को पकड़ने के लिए वन की ओर चले गये। राम के जाने के थोड़ी देर बाद लक्ष्मण भी उनको खोजने चले गए, इधर रावण ने मौका देख कुटिया में प्रवेश करना चाहा तो लक्ष्मणजी द्वारा खींची गयी लक्ष्मण रेखा के कारण वह भीतर प्रवेश नहीं कर पाया, अब अपनी योजना विफल होती देख उसने एक भिक्षुक का रूप धरा और क्षल पूर्वक माता सीता का अपहरण कर लिया और उन्हें अपने पुष्पक विमान में बैठा कर लंका की ओर प्रस्थान कर गया।
माता सीता ने इस विपत्ति के समय भी बड़ी ही बुद्धिमानी से काम लिया और उन्होंने अपने जाने का मार्ग दिखाने के लिए स्वयं के द्वारा पहने हुए आभूषण धरती की ओर फेंकना प्रारंभ कर दिए, जिन्हें देखकर प्रभु श्री राम को उन तक पहुँचने का मार्ग पता चल सकें। माता सीता सहायता के लिए भी पुकार रही थी, जिसे सुनकर एक बड़ा सा पक्षी उनकी सहायता के लिए आया, इस विशालकाय पक्षी का नाम ‘जटायु’ था, वह रावण से युद्ध करने लगा, परन्तु अपने बूढ़े शरीर के कारण वह ज्यादा देर रावण का सामना नहीं कर पाया और फिर रावण ने उसके पंख काट दिये, इस कारण वह धरती पर गिर पड़ा और कराहने लगा। उधर राम लक्ष्मण जैसे ही कुटिया में पहुँचे, वहाँ बिखरा हुआ सामान देखकर भयभीत हो गये और सीताजी को खोजने लगे, बहुत ढ़ूढ़ने के बाद उन्हें माता सीता के आभूषण दिखाई दिए और वे उसी दिशा की ओर बढ़ने लगे, कुछ ही दूर पर उन्हें घायल जटायु दिखा, जिससे पूछने पर पता चला कि माता सीता को राक्षसों का राजा, लंकापति रावण हरण करके ले गया हैं। पक्षिराज जटायु के लिये जलांजलि दान कर के वे दोनों सीता की खोज में दक्षिण दिशा की ओर चले। लीला में समस्त पदाधिकारी और अन्य रामभक्त दर्शक मौजूद रहे।