बरेली। राष्ट्रीय भाषा के बिना राष्ट्रीय एकता कठिन है। यह बात मॉरीशस से आए मुख्य अतिथि डॉ. प्रहलाद रामशरण दास ने कही। वह शुक्रवार को पीलीभीत हाईवे स्थित गंगाशील महाविद्यालय में आयोजित ‘भावात्मक एकता का एक सूत्रः एक राष्ट्र, एक भाषा’ अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का। देश-विदेश से जुटे साहित्यकारों ने हिंदी भाषा के संवर्धन पर जोर दिया। बोले, जिस तरह फ्रांस ने फ्रेंच भाषा का विकास व संवर्धन किया है। उसी तरह भारत को भी हिंदी भाषा का संवर्धन करना चाहिए।

प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित ने कहा कि सामाजिक संगठन को सुदृढ बनाने के लिए राष्ट्र की एकमात्र भाषा का होना जरूरी है। एक राष्ट्र भाषा के बिना राष्ट्रीय एकता स्थापित करना कठिन है। हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा दिलाने के लिए राष्ट्रीय स्तर के आंदोलन की जरूरत है। पश्चिम बंगाल के बोलपुर के विश्व भारती विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. हरीशचंद्र मिश्र ने कहा कि भाषा हमारी अभिव्यक्ति और चिंतन का प्रमुख आधार है, अपनी भाषा को सुदृढ़ करने के लिए दूसरी भाषाओं के शब्दों को समाहित करना जरूरी है।

कार्यक्रम के अध्यक्ष व महाविद्यालय के सचिव डॉ. एनके गुप्ता ने कहा कि चिकित्सा व अन्य पाठय पुस्तकें हिंदी में होना जरूरी हैं। सम्मेलन में साहित्यकार डॉ. चंद्रपाल शर्मा, डॉ. एसी त्रिपाठी, डॉ. प्रवण शास्त्री, डॉ. राजेश प्रकाश, राजेंद्र तिवारी ने भी अपनी बात रखी। इससे पूर्व महाविद्यालय की प्रबंध निदेशक डॉ. शशिबाला राठी, महाविद्यालय के निदेशक डॉ. एनएम शर्मा ने अतिथियों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया।

By vandna

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