Bareillylive : विश्व को सर्वाधिक बाइस महाकाव्य देने वाले नेपाल के सीमावर्ती जनपद पीलीभीत के नगर पूरनपुर में 6 अक्तूबर 1952 को बिहारी लाल स्वर्णकार और भागवती देवी के घर जन्में आचार्य देवेंद्र देव का नाम आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है। उनका विराट व्यक्तित्व ही इस बात का गवाह है कि वे बाइस महाकाव्यों की रचना करके साहित्यकाश के सूर्य की भांति चारों दिशाओं में अपनी आभा से आज वैश्विक पटल पर सुर्खियां बटोर रहे हैं। स्थानीय नगर पालिका परिषद में कार्यालय अधीक्षक के पद से नवंबर 2012 को सेवानिवृत आचार्य देवेंद्र देव को काव्य की प्रेरणा उनकी जीवनसंगिनी मालती देवी से प्राप्त हुई। उनके काव्य गुरु स्व.पं. रामभरोसे पाण्डेय ‘पंकज’ थे।

पानीपत साहित्य अकादमी से आचार्य की मानद उपाधि प्राप्त करने वाले आचार्य देवेंद्र देव को 1998 में अमेरिकी संस्था एबीआई द्वारा इंटरनेशनल डिस्टिंग्वश्ड लीडरशिप अवार्ड मिलने के साथ ही उन्हें उसके रिसर्च बोर्ड ऑफ एडवाइजर्स का मानद सदस्य बनाया गया। महीयसी महादेवी वर्मा, राष्ट्रकवि पं. सोहनलाल द्विवेदी, डॉ. विद्या निवास मिश्र आदि से प्रत्यक्ष स्नेहाशीष प्राप्त करने वाले आचार्य देवेंद्र देव के प्रथम महाकाव्य ‘बांग्ला त्राण’ का एक सर्ग तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सपरिवार अपने दिल्ली आवास पर बैठकर सुना था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन राव भागवत के आग्रह पर स्वामी विवेकानंद पर महाकाव्य की रचना उन्होंने की।

दशवें और ग्यारहवें विश्व हिंदी सम्मेलन क्रमश: भोपाल 2015 और मॉरिशस 2018 में भारत सरकार की ओर से प्रतिनिधि कवि के रूप में उन्होंने प्रतिभाग किया। ज्येष्ठ पुत्री पूनम वर्मा और ज्येष्ठ पुत्र डॉ रंजन ‘विशद’ भी अंतर्राष्ट्रीय कविता मंचों से जुड़ें हैं। कनिष्ठ पुत्र (इं.) उदितेंन्दु ‘निश्चल’ तथा पुत्री नीलाक्षी राष्ट्रीय स्तर पर कला-साधना और समाज सेवा से क्षेत्र में सक्रिय रूप से कार्यरत हैं। पूरा परिवार एक आदर्श परिवार के रूप में प्रतिष्ठित है। राष्ट्र कवि बंशीधर शुक्ल सम्मान, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा 2018 में राष्ट्रपुत्र यशवन्त महाकाव्य पर 75,000 का तुलसी पुरस्कार, जोवियल यूनिवर्सल ट्रस्ट फाउंडेशन द्वारा लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड 2010, डेढ़ लाख रुपए का महर्षि दधीचि सम्मान 2018, दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी, संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार सहित सैकड़ों राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान उनके व्यक्तित्व में चार चांद लगा रहे हैं।

शोध और अनुसंधान: (1) जीवाजी विश्वविद्यालय में आचार्य देवेंद्र देव का रचना संसार और उसमें राष्ट्रीय चेतना विषय पर शोध चल रहा है। (2) महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखंड विश्वविद्यालय बरेली के अधीन संवेदना और शिल्प के परिप्रेक्ष्य में आचार्य देवेंद्र देव का साहित्य विषय पर शोध संचालित है। रचना विधाएं: पद्म (छ्न्द, गीत, ग़ज़ल, बाल कविता) गद्य (लेख, व्यंग्य, कहानी, समीक्षा, संस्मरण) संस्कृत भाषा में छ्न्द, गीत ग़ज़ल मुक्तक आदि की रचना की। देश -विदेश की तमाम पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। सम्पादन: तराई उजाला (साप्ताहिक) पंकज पराग, धनंजय रश्मि, इस धरा पर स्वर्ग का अवतरण होना है। सुनिश्चित ब्रजांजलि (स्मारिकाएं) एवं हिन्दूपति महाराणा प्रताप (महाकाव्य) आकाशवाणी रामपुर, लखनऊ, प्रयागराज, आगरा, बरेली, मथुरा, दिल्ली आदि दूरदर्शन केन्द्रों से कई बार रचनाओं का सजीव प्रसारण।

इसके अलावा वह देश-विदेश की तमाम साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्थाओं में बड़े और दायित्वों का निर्वहन भी कर रहे हैं। उनकी कविता के चर्चित उद्धरणों में हम देश और समाज की झलक आसानी से देख सकते हैं।’ हमारे अज़्म को क्या सिरफिरा शैतान देखेगा। कि सारे सिरफिरों को अपना हिंदुस्तान देखेगा।” जीने को तूफानों का सँग, पीने को जल खारी है। ऐसे सागर में किस्मत ने अपनी नाव उतारी है। टकराने आते रहते हैं बड़े-बड़े घड़ियाल, मगर, पतवारों का उनसे लोहा लेने का क्रम जारी है।” ओ छद्म उजालो! हमें आंख मत दिखलाओ, हम स्वयं तिमिर को दलने के अभ्यासी हैं।’ ‘नहीं मानता ‘देव’ डर बिजली का घटाएं भी मुझको न धमका सकी हैं। मचलते समंदर की रंगीनियाँ ही हंसी है, मेरे साथ में गा सकी है। मेरे रोष को यदि प्रलय तुम कहोगे तो मुस्कान भी है हिमानी हमारी। समय के भँवर में लहरती लहर-सी गुज़रती रही जिंदगानी हमारी।’

साभार: डॉ प्रदीप वैरागी साहित्यकार, शाहजहांपुर

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