Bareillylive : एसआरएमएस मेडिकल कालेज में पिछले करीब आठ वर्ष से भर्ती किशोर निशांत गंगवार (पुत्र श्री कांता प्रसाद, अवध धाम कालोनी, मिनी बाईपास रोड, इज्जतनगर बरेली) का आज तड़के सुबह निधन हो गया।
बरेली के मिनी बाईपास रोड स्थित अवध धाम कालोनी निवासी श्री कांता प्रसाद ने अपने बेटे निशांत गंगवार को दिनांक 16 जुलाई 2016 को एसआरएमएस मेडिकल कालेज में भर्ती कराया था। गुलियन बैरे सिंड्रोम से पीड़ित इस बालक को अस्पताल में भर्ती कराने के बाद उसको माता-पिता छोड़ कर चले गए थे। इसकी सूचना समय समय पर जिला प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग और पुलिस प्रशासन को दी जाती रही। समाचार पत्रों में भी निशांत के संबंध में कई समाचार प्रकाशित हुए। लेकिन निशांत के माता पिता या कोई भी रिश्तेदार उसे देखने नहीं आए। तब से एसआरएमएस प्रशासन ही निशांत के इलाज और देखभाल की जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहा है। दो दिन पहले दिनांक 18 सितंबर 2024 निशांत को कार्डियक अटेक पड़ा, निर्धारित प्रोटोकाल का पालन करते हुए उसे रिवाइव करने का प्रयास किया जा रहा था, लेकिन आज (20 सितंबर) सुबह उसका देहांत हो गया। इसकी सूचना भी जिला प्रशासन और भोजीपुरा थाना को देकर निशांत का पार्थिव शरीर किसे सुपुर्द करना है। इस संबंध में निर्देश मांगा गया है। जो अपेक्षित है। निर्देशित होने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।
कौन करेगा निशांत का संस्कार?
एसआरएमएस मेडिकल कालेज ने जिला प्रशासन को पत्र भेज कर निर्देश मांगा है अंतिम संस्कार के लिए लिखित आदेश की जरूरत पड़ती है जुलाई 2016 में भर्ती कराने के बाद से ही निशांत को छोड़ कर मां-बाप या परिजन परिजन देखने नहीं आए
ये कहानी है उस मासूम निशांत की जिसे आठ साल पहले मां-बाप ने त्याग दिया, आज उस मिली निशांत को हॉस्पिटल और शारीरिक कष्ट से मुक्ति मिल पायी है, मां-बाप के छोड़ कर जाने के बाद आठ साल से निशांत की जिम्मेदारी एसआरएमएस मेडिकल कालेज उठा रहा था। दुर्लभ गुलियन बैरे सिंड्रोम से पीड़ित 22 वर्षीय निशांत का इलाज और तीमारदारी एसआरएमएस परिवार कर रहा था, पीआईसीयू में भर्ती निशांत का जन्मदिन मना कर नर्सिंग स्टाफ उसके परिवार की कमी पूरी करता रहा।
क्या होता है गुलियन बैरे सिंड्रोम
गुलियन बैरे सिंड्रोम लाइलाज विकार है। इससे पीड़ित के शरीर में दर्द होता है और बाद में मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं। धीरे धीरे शरीर लकवाग्रस्त हो जाता है। प्रतिरोधी क्षमता प्रभावित होने के कारण इसे आटो इम्यून डिजीज भी कहते हैं। इससे तंत्रिका तंत्र पर भी असर पड़ता है और तंत्रिकाएं मस्तिष्क के आदेश न पकड़ पाती हैं और न ही मांसपेशियों को पहुंचा पाती हैं। रोगी को किसी चीज की बनावट पता नहीं चलती। सर्दी, गर्मी और दूसरी अनुभूतियां भी महसूस नहीं होतीं। पूरा शरीर अपाहिज हो जाता है। बेहद पीड़ादायक है यह।