नई दिल्‍ली। अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ हिंदू महासभा ने सोमवार को पुनर्विचार याचिका दायर की। हिंदू महासभा के वकील विष्णु जैन का कहना है कि बाहरी और भीतरी हिस्से पर हिंदुओं का दावा मज़बूत था, इसलिए जगह हमें मिली। मुसलमानों को 5 एकड़ जमीन देने की ज़रूरत नहीं थी। याचिका में फैसले में 1992 की घटना पर टिप्पणी को भी हटाने की मांग की गई है।

सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने 09 नवंबर 2019 को अयोध्या भूमि विवाद मामले में अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में विवादित भूमि पर राम मंदिर के निर्माण का रास्‍ता साफ कर दिया था। यही नहीं न्यायालय ने सुन्नी वफ्फ बोर्ड को मस्जिद बनाने के लिए किसी अन्‍य जगह पांच एकड़ जमीन देने का निर्देश भी दिया था। 

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसलोे के खिलाफ 4 और पुनर्विचार याचिकाएं शुक्रवार को दायर की गई थीं। आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के समर्थन से मिसबाहुद्दीन, हसबुल्ला, हाजी महबूब और रिजवान अहमद ने याचिकाएं दायर की थीं। इन याचिकाओं में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला 1992 में मस्जिद ढहाए जाने को मंजूरी जैसा लगता है और अवैध रूप से रखी गई मूर्ति के पक्ष में सुनाया गया, अवैध हरकत करने वालों को ज़मीन दी गई। मुसलमानों को 5 एकड़ जमीन देने का फैसला पूरा इंसाफ नहीं कहा जा सकता।

इससे पहले पिछले सोमवार को जमीयत-उलेमा-ए-हिंद  ने भी पुनर्विचार याचिका दायर कीथी। रिव्यू पिटिशन दाखिल कर दी है। असद रशीदी की तरफ से दायर 217 पन्नों की इस याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने माना कि वहां नमाज होती थी फिर भी मुसलमानों को बाहर कर दिया।1949 में इमारत में अवैध तरीके से मूर्ति रखी गई, फिर भी रामलला को पूरी जगह दी गई।

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