नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सायरस मिस्त्री की टाटा संस के चेयरमैन पद पर बहाली के नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) के फैसले पर रोक लगा दी है। यह फैसला देते हुए मुख्य न्ययाधीश एसए बोबड़े की पीठ ने कहा कि एनसीएलएटी ने मिस्त्री को उतनी राहत दे दी जितनी उन्होंने मांगी ही नहीं थी। टाटा संस ने सायरस मिस्त्री मामले में एनसीएलएटी के 18 दिसंबर 2019 के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

इससे पहले एनसीएलएटी ने मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन पद से हटाने के फैसले को गलत बताया था और उनकी पद पर बहाली के आदेश दिए थे। गौरतलब है कि टाटा संस द्वारा अक्टूबर 2016 में सायरस मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटा दिया गया था। सायरस मिस्त्री पहले टाटा संस के फैसले के खिलाफ एनसीएलटी गए थे लेकिन वे वहां हार गए थे। बाद में वे अपीलेट ट्रिब्यूनल गए। ट्रिब्यूनल ने मिस्त्री की दलील को सुनने के बाद उनके पक्ष में फैसला सुना दिया। अब सुप्रीम कोर्ट ने टाटा संस की दलीलों को सुनकर ट्रिब्यूनल के फैसले पर रोक लगा दी है।

रतन टाटा ने शीर्ष अदालत में दायर अपनी याचिका में कहा कि टाटा संस के चेयरमैन के तौर पर नियुक्ति के लिए सारइस मिस्त्री के लिए उनके पारिवारिक व्यवसाय शापूरजी पालोनजी ग्रुप से अलग होना पूर्व शर्त थी। याचिका में कहा गया, “विभिन्न मोर्चों पर साइरस मिस्त्री टाटा संस के चेयरमैन होने के बाद भी अपने पारिवारिक व्यवसाय से अलग होने को लेकर अनिच्छुक दिख रहे थे जो उनके टाटा संस के चेयरमैन के रूप में नियुक्ति की एक पूर्व शर्त थी।”

याचिका में कहा गया है कि मिस्त्री के नेतृत्व में विभिन्न मोर्चों पर कमी थी और उनको हटाने के पहले उनके और टाटा ट्रस्ट के बीच संबंध प्रतिकूल हो गए थे। टाटा ने यह भी कहा कि टाटा ट्रस्ट ने दृढ़ता से महसूस किया कि मिस्त्री भविष्य में टाटा संस को मजबूत नेतृत्व प्रदान नहीं कर सकते।

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