प्रसंगवश : विशाल गुप्ता

प्रसंगवश : विशाल गुप्ता

कहते हैं कि चुनौतियों को अवसर बना लो तो जीत पक्की हो जाती है। किसी की चुनौती को स्वीकार लो तो वह एक स्वर्णिम अवसर होती है और इस अवसर से नये आविष्कार होते हैं, नये नायक मिलते हैं। इस लोकसभा चुनाव में इस बात का सबसे अच्छा उदाहरण प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी हैं। उन्होंने विपक्ष के द्वारा दी गयी हर चुनौती को अपने लिए एक अवसर बना लिया, विपक्ष के कटाक्ष को मुख्य हथियार बना लिया।

2014 के आम चुनाव में “चाय वाला” मुद्दा रहा तो मोदी ने चाय पर चर्चा कराकर पूरे देश में चाय वालों का हौसला बढ़ा दिया। साथ ही चाय से किसी भी रूप में जुड़े व्यक्ति के मन में अपने लिए एक विशेष लगाव पैदा कर लिया। 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी ने खुद को चौकीदार कहा तो कांग्रेस ने ‘‘चौकीदार चोर है’’ का नारा देकर एक चुनौती पेश की।

राजनीति की दिशा अपने हिसाब से मोड़ने के माहिर “चौकीदार” ने “मैं भी चौकीदार” अभियान चलाकर पूरे देश में करोड़ों “चौकीदार” बना दिए। चुनौती कांग्रेस के समक्ष हो गयी कि किसे-किसे चोर कहे। सारा देश “चौकीदार” बनने को आतुर दिखा। देश का राष्ट्रवादी बुद्धिजीवी वर्ग चाहे प्रोफेसर हों या डॉक्टर, व्यापारी हो या विद्यार्थी सभी खुद को “चौकीदार” कहने लगे।

इन पैदा की गयी चुनौतियों से इतर, भाजपा-कांग्रेस से इतर एक अवांछित चुनौती समाजवादी पार्टी यानि सपा और बहुजन समाज पार्टी यानि बसपा के सामने आ खड़ी हुई जब निर्वाचन आयोग ने सपा के फायर ब्राण्ड नेता आजम खां के चुनाव प्रचार करने पर 72 घंटे का प्रतिबंध लगा दिया। दरअसल, आजम ने कभी अपनी ही पार्टी की नेता रहीं और अब रामपुर से भाजपा प्रत्याशी के तौर पर उन्हें चुनौती पेश कर रहीं जयाप्रदा पर अत्यंत अमर्यादित टिप्पणी कर दी।

नैतिक पतन की सभी हदें पार करते हुए किसी महिला के अंतःवस्त्रों पर की गयी इस टिप्पणी को सभ्य समाज किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं कर सकता। यह प्रतिबंध उस वक्त लगा जब एक सप्ताह बाद आजम खां के संसदीय क्षेत्र में तीसरे चरण का मतदान होना है। वह स्वयं रामपुर से सपा प्रत्याशी हैं।

इस प्रकरण में हैरतअंगेज बात यह रही कि महिलाओं के लिए सुरक्षा और सशक्तिकरण का दंभ भरने वाले सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव आजम खां का बचाव करते दिखे। हालांकि ऐसा करके अखिलेश यादव ने एक बार फिर अपनी कमजोर पार्टी नेतृत्व की छवि ही दिखायी और साबित किया कि वह चाचा और बुआ के लिए अभी बबुआ ही हैं। उनकी पत्नी व कन्नौज से सांसद डिम्पल यादव की चुप्पी भी चर्चा का विषय है।

आजम खां के पुत्र अब्दुल्ला आज़म

इस सबके बीच रामपुर की चुनौती को आजम खां के पुत्र अब्दुल्ला आज़म ने संभाला। आजम पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा के अगले ही दिन मंगलवार को उन्होंने सैकड़ों सपा कार्यकर्ताओं के साथ मार्च निकाला, प्रेस से बात की। सपा और कांग्रेस में अमरबेल की तरह फैल चुके वंशवाद के बीच आज़म खां के पुत्र अब्दुल्ला आज़म स्वयं में उत्तर प्रदेश से समाजवादी पार्टी के विधायक हैं। अब इनके सामने चुनौती होगी अपना कद और बढ़ा करने की। हालांकि आजम खां पर प्रतिबंध का कारण उन्होंने ‘आजम का मुस्लिम होना’ बताकर अपने मनसूबे जाहिर कर दिये हैं।

इसी तरह की एक चुनौती बसपा के समक्ष प्रस्तुत हुई जब चुनाव आयोग ने बसपा सुप्रीमो मायावती के चुनाव प्रचार करने पर 48 घंटे का प्रतिबंध लगा दिया। महागठबंधन की सबसे बड़ी नेता और कथित रूप से प्रधानमंत्री पद की दावेदार मायावती को मंगलवार को अजीत सिंह, और अखिलेश यादव के साथ महागठबंधन की एक रैली को सम्बोधित करना था। प्रतिबंध के बाद चुनौती आ खड़ी हुई कि मायावती की जगह कौन?

मायावती के भाई आनन्द के पुत्र हैं आकाश आनन्द

इस रिक्त स्थान की पूर्ति का बीड़ा मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनन्द को दिया। आकाश मायावती के भाई आनन्द के पुत्र हैं और ब्रिटेन से एमबीए की डिग्री लेकर भारत लौटे हैं। बीते कुछ समय से मायावती अपने हर मंच पर आकाश आनन्द को लॉन्च कर रही थीं, उन्हें लोगों से मिलवा रही थीं लेकिन कभी सभा को सम्बोधित करने का अवसर नहीं दिया।

मंगलवार को आकाश ने मायावती की अनुपस्थिति में भाषण दिया। हालांकि वह पूरा भाषण अपनी बुआ मायावती की तरह पढ़कर बोले लेकिन बोलने का प्रवाह ठीक रहा जिसका अखिलेश यादव और अजित सिंह ने खड़े होकर अभिनन्दन किया। इससे यह तो निश्चित हो गया कि आकाश आनन्द ही मायावती के उत्तराधिकारी हैं। वह 2022 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में बसपा के प्रत्याशी हो सकते हैं।

जाहिर है कि सपा-बसपा के समक्ष उपजी चुनौती ने दो नये पारिवारिक नेता इन दोनों पार्टियों को दे दिए हैं। ये कितने सफल होते हैं यह समय के गर्भ में है। उम्मीद की जानी चाहिए कि ये शिक्षित युवा राष्ट्रहित में अपनी-आपनी पार्टी में नयी सकारात्मक सोच को लेकर चलेंगे। देखना ये है कि ये ऐसा करते हैं या अपने पुराधाओं की भांति “स्व और पार्टीहित” ही इनकी पहली प्राथमिकता होगा।

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