नई दिल्ली। निर्भया सामूहिक दुष्कर्म एवं हत्या मामले में फांसी की सजा पाए चारों दोषियों में से एक पवन कुमार गुप्ता की फांसी की सजा से बचने की अंतिम कोशिश भी सोमवार को नाकाम हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने उसकी स्पेशल लीव पिटीशन दोनों पक्षों को सुनने के बाद खारिज कर दी। शीर्ष अदालत ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को दोहराते हुए पवन कुमार गुप्ता के वकील एपी सिंह के उस दावे को खारिज कर दिया जिसमें कहा था कि उनका मुवक्किल नाबालिग है।
अधिवक्ता एपी सिंह ने दोषी पवन की ओर से पक्ष रखते हुए सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में दावा किया कि 16 दिसंबर 2012 को पवन कुमार गुप्ता की उम्र 17 साल एक महीने और 20 दिन थी। साथ ही यह भी तर्क रखा कि जब यह अपराध हुआ तो वह नाबालिग था। इसी के साथ यह भी कहा कि अपराध के समय वह एक किशोर था। दिल्ली हाई कोर्ट ने इस तथ्य की अनदेखी की।
पवन की तरफ से पेश वकील एपी सिंह ने तीन जजों की बेंच आर. भानुमती, अशोक भूषण और बोपन्ना के सामने अपना पक्ष रखा था।
एपी संह ने इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट में भी याचिका दायर कर दावा किया था कि जिस समय यानी 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली के वसंत विहार में निर्भया के साथ सामूहिक दुष्कर्म की वारदात हुई, उस समय पवन कुमार गुप्ता की उम्र 18 वर्ष से कम थी। यह अलग बात है कि कोर्ट ने निर्भया की याचिका खारिज कर दी थी।
याचिका खारिज होन पर प्रतिक्रिया देते हुए निर्भया की मां ने कहा कि यह फांसी की सजा टालने की कोशिश भर है। 1 फरवरी को तिहाड़ जेल में चारों दोषियों पवन कुमार गुप्ता, अक्षय सिंह ठाकुर, विनय कुमार शर्मा और मुकेश सिंह को फांसी दी जाएगी।
दोषी पवन कुमार गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट में SLP दायर कर हाई कोर्ट के 19 दिसंबर के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें हाईकोर्ट ने फर्जी दस्तावेज देने और समन के बावजूद कोर्ट में उपस्थित नहीं होने के लिए उनके वकील की की आलोचना करने के साथ जुर्माना भी लगाया था।
इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने पवन की याचिका का खारिज करने के साथ उसके वकील एपी सिंह पर 25,000 का जुर्माना लगाने के साथ दिल्ली बार काउंसिल से कार्रवाई के लिए भी कहा था। कोर्ट ने यह जुर्माना समन जारी होने के बाद एपी सिंह के पेश नहीं होने के चलते लगाया था।