#sirohi : शिव पुराण एवं स्कंद के अनुसार, स्वयं शिव काशी के बाद विविध रूपों में राजस्थान के एक मात्र हिल स्टेशन सिरोही जिले के माउंट आबू की अरावली पर्वत श्रृंखला में निवास करते हैं। क्योकि यहां पर भगवान शिव के कई प्राचीन मंदिर हैं। पुराणों के अनुसार, वाराणसी भगवान शिव की नगरी है तो माउंट आबू को भोलेनाथ की ‘अर्धकाशी’।
अचलेश्वर महादेव मंदिर एक हिन्दू मंदिर जो भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर अकालगढ़ किले के बाहर स्थित है, जो सिरोही जिले के अबू रोड तहसील, राजस्थान में में स्थित है। ऐसा माना जाता है अचलेश्वर मंदिर 9वीं शताब्दी में परमार वंश द्वारा बनाया गया था। बाद में 1452 में महाराणा कुम्भा ने इसका पुनर्निर्माण करवाया और इसे अचलगढ़ नाम दिया था।
अचलेश्वर महादेव मंदिर कि विशेषता यह है कि इस मंदिर में भगवान शिव के पैर के अंगूठे की पूजा की जाती है। भगवान शिव के सभी मंदिरों में शिव लिंग या भगवान शिव की मूर्ति के रूप में पूजा की जाती है परन्तु इस मंदिर में भगवान शिव के पैर के अंगूठे की पूजा की जाती है।
पौराणिक कथानुसार अर्बुद पर्वत पर स्थित नंदीवर्धन के हिलने की वजह से हिमालय में तपस्या कर रहे शिव जी की तपस्या भंग हो गई।इस पर्वत पर कामधेनु गाय और नंदी भी थे जिसे बचाने के लिए शिव ने हिमालय से ही अंगूठा फैलाया और अर्बुद पर्वत को स्थिर कर दिया। कहा जाता हैं कि यहां का पर्वत भगवान शिव के अंगूठे की वजह से टिका हुआ है। जिस दिन यहां से भगवान शिव के अंगूठा गायब हो जाएगा, उस दिन यह पर्वत नष्ट हो जाएगा। यहां पर भगवान के अंगूठे के नीचे एक प्राकृतिक खड्ढा बना हुआ है। इस खड्ढे में कितना भी पानी डाला जाएं, लेकिन यह कभी भरता नहीं है। इसमें चढ़ाया जाने वाला पानी कहां जाता है, यह आज भी एक रहस्य है।
इस मंदिर में भगवान शिव के सेवाक नंदी की बहुत बड़ी मूर्ति है जिसका वजन लगभग 4 टन है। जो पांच धातुओं, सोना, चांदी, तांबे, पीतल और जस्ता से बना है। एक लोकप्रिय स्थानीय किंवदंती के अनुसार, नंदी की मूर्ति मुस्लिम आक्रमणकारियों के हमले से मंदिर की रक्षा करती है मंदिर में छिपे हुए मधुमक्खियों ने कई बार मंदिर को बचाया है। मंदिर में कई अन्य मूर्तियां भी हैं, जिनमें स्पॉटिक्स, एक क्वार्ट्ज पत्थर है, जो प्राकृतिक प्रकाश में अपारदर्शी दिखाई देता है, लेकिन यह क्रिस्टल जैसे पारदर्शी हो जाता है जब प्रकाश पड़ता है।
अचलेश्वर महादेव मंदिर परिसर के चैक में चंपा का विशाल पेड़ है। मंदिर में बाएं ओर दो कलात्मक खंभों पर धर्मकांटा बना हुआ है, जिसकी शिल्पकला अद्भुत है। कहा जाता है कि इस क्षेत्र के शासक राजसिंहासन पर बैठने के समय अचलेश्वर महादेव से आशीर्वाद प्राप्त कर धर्मकांटे के नीचे प्रजा के साथ न्याय की शपथ लेते थे। मंदिर परिसर में द्वारिकाधीश मंदिर भी बना हुआ है। गर्भगृह के बाहर वराह, नृसिंह, वामन, कच्छप, मत्स्य, कृष्ण, राम, परशुराम,बुद्ध व कलंगी अवतारों की काले पत्थर की भव्य मूर्तियां हैं। मंदिर के पास तीन बड़े पत्थर भैंस की मूर्तियों के साथ एक तालाब है। माना जाता है कि ये भैंस राक्षसों का प्रतिनिधित्व करते है।
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