शाम को लगभग चार बजकर चालीस मिनट पर जब अस्ताचलगामी सूर्य की किरणे भरत मिलाप मैदान के एक निश्चित स्थान पर पड़ती हैं तब लगभग पांच मिनट के लिए माहौल थम सा जाता है। एक तरफ भरत और शत्रुघ्न अपने भाईयों के स्वागत के लिए जमीन पर लेट जाते है तो दूसरी तरफ राम और लक्षमण वनवास ख़त्म करके उनकी और दौड़ पड़ते हैं। चारो भाईयों के मिलन के बाद जय जयकार शुरू हो जाती है। फिर चारो भाई रथ पर सवार होते हैं और यदुवंशी समुदाय के लोग उनके रथ को उठाकर चारो और घुमाते हैं। इस लीला को देखने के लिए क्या बच्चा क्या बुजुर्ग सबके मन में केवल एक ही श्रद्धा भगवान के दर्शन की होती है। सनातन संस्कृति को नजदीक से देखने के लिये भारत के कोने कोने से तो लोग आते हैं। लीला को देखने देश-विदेश से भी लोग आते हैं।
चित्रकूट रामलीला समिति के महामंत्री ने बताया कि , भरत ने संकलप लिया था, ”यदि आज मुझे सूर्यास्त के पहले श्रीराम के दर्शन नहीं हुए तो प्राण त्याग दूंगा।” इसीलिए यह लीला सूर्यास्त के पहले 4:40 पर होती है। इसके बाद यदुवंशी लोग अपने कंधों पर ‘भगवन रथ’ लेकर जाते हैं।
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