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कोट्टनकुलंगरा देवी मंदिर,केरल :भारत के कोल्लम जिले में स्‍थापित है यह विशेष मंदिर जो मां आदिशक्ति के कोट्टनकुलंगरा स्वरूप को समर्पित है कोट्टनकुलंगरा देवी मंदिर। इस दैवीय मंदिर में पुरुषों का सामान्य रूप में प्रवेश वर्जित है, यहां पुरुष सोलह शृंगार कर महिला रूप में ही प्रवेश कर सकते हैं।पौराणिक इतिहास के अनुसार इस स्थल पर देवी स्वयम्भू है, जिन्हें सर्वप्रथम चरवाहों ने देखा था। इन्हें साक्षात वनदेवी का स्वरूप माना जाता है।मंदिर में महिलाओं के अलावा बड़ी संख्या में किन्नर भी माता का आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं। चाम्याविलक्कू पर्व के दौरान यहां अधिकाधिक संख्या में पुरुष माता का दर्शन करने के लिए आते हैं।

कोट्टनकुलंगरा देवी मंदिर,अनोखी परंपरा:

इस मंदिर में पुरुषों के लिए देवी की आराधना करने का यह अनोखी परंपरा है। मंदिर में प्र्त्येक वर्ष ‘चाम्‍याविलक्‍कू’ पर्व का विशेष आयोजन किया जाता है। इस दिन यहां पर हजारों की संख्‍या में पुरुष 16 श्रृंगार करके पहुंचते हैं।मंदिर परिसर में ही जाकर पुरुष 16 श्रृंगार कर सकते हैं।

मंदिर के नियमों के अनुसार पूजा करने से उनकी यह इच्‍छा पूरी हो जाती है। यही वजह है कि काफी संख्या में पुरुष यहां महिलाओं के वेश में पहुंचते हैं। साथ ही मां की आराधना करके उनसे मनोवांछित नौकरी और पत्‍नी का आर्शीवाद प्राप्‍त करते हैं।

स्‍वयं ही प्रकट हुई थी मां की प्रतिमा:

मान्‍यता है कि मंदिर में स्‍थापित मां की म‍ूर्ति स्‍वयं ही प्रकट हुई है। इसके अलावा यह केरल प्रांत का इकलौता ऐसा मंदिर है, जिसके गर्भगृह के ऊपर किसी भी प्रकार की कोई भी छत नहीं है।

चरवाहों ने की थी सर्वप्रथम पूजा :

इस दैवीय मंदिर में सर्वप्रथम पूजा करने का श्रेय चरवाहों को मिलता है मान्यताओं के अनुसार प्राचीन काल में यहां एक जंगल हुआ करता था । चरवाहों ने मंदिर के स्‍थान पर ही महिलाओं की तरह कपड़े पहनकर पत्‍थर पर फूल चढ़ाए थे। इसके बाद पत्‍थर से शक्ति का उद्गम हुआ। धीरे-धीरे आस्‍था बढ़ती ही चली गई और इस जगह को मंदिर में परिवर्तित कर दिया गया। मंदिर के बारे में एक और कथा प्रचलित है कि हर साल मां की प्रतिमा कुछ इंच तक बढ़ जाती है।

कोट्टनकुलंगरा देवी मंदिर, केरल

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