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#हेरा_पंचमी: भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा का एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान

#हेरा_पंचमी: भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा का एक महत्वपूर्ण अनुष्ठानजगन्नाथ धाम पुरी में #रथ_यात्रा की प्रक्रिया के दौरान किया जाने वाला एक अनुष्ठान है जिसे #हेरा_पंचमी के नाम से जाना जाता है ।यह अनुष्ठान आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष में यात्रा के पाँचवे दिन , माता महालक्ष्मी द्वारा किया जाता है।

रथ यात्रा शुरू होने के पांचवे दिन हेरा पंचमी का उत्सव मनाया जाता है। हेरा (कहीं-कहीं होरा भी कहते हैं) का आशय है ‘देखना’ और पंचमी यानी ‘पांचवा दिन’। मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा शुरू होने के पांचवे दिन देवी लक्ष्मी की यात्रा शुरू होती है।
इस दिन भगवान जगन्नाथ की धर्मपत्नी माता लक्ष्मी जगन्नाथ को देखने उनकी मौसी के स्थान गुंडिचा मंदिर जाती हैं। महालक्ष्मी जगन्नाथ जी से घर वापिस आने का अनुरोध करती हैं, बदले में वे सनमाति माला लक्ष्मी जी को वादे के तौर पर देते हैं।

हेरा_पंचमी मुख्य रूप से गुण्डिचा मंदिर में मनाई जाती है। इस दिन मुख्य मंदिर अर्थात जगन्नाथ धाम मंदिर से भगवान जगन्नाथ की पत्नी माता लक्ष्मी, सुवर्ण महालक्ष्मी के रूप में गुंडिचा मंदिर में आती हैं। उन्हें मंदिर से गुण्डिचा मंदिर तक पालकी में ले जाया जाता है, जहाँ पुजारी उन्हें गर्वग्रह में ले जाते हैं और भगवान जगन्नाथ से मिलाते हैं। सुवर्ण महालक्ष्मी भगवान जगन्नाथ से पुरी के मुख्य मंदिर अपने धाम श्रीमंदिर में वापस चलने का आग्रह करती हैं।

भगवान जगन्नाथ उनके अनुरोध को स्वीकार करते हैं और माता लक्ष्मी को उनकी सहमति के रूप में एक माला (सनमाति माला) देते हैं। फिर शाम को माता लक्ष्मी गुंडिचा मंदिर से जगन्नाथ मंदिर लौटती हैं। मुख्य मंदिर प्रस्थान से पहले, वह क्रोधित हो जाती है और अपने एक सेवक को नंदीघोष (भगवान जगन्नाथ का रथ) के एक हिस्से को नुकसान पहुंचाने का आदेश देती है। जिसे रथ भंग कहा जाता है।
माता महालक्ष्मी गुंडिचा मंदिर के बाहर एक इमली के पेड़ के पीछे छिपकर इन सभी कार्यों के लिए निर्देश देती हैं। कुछ समय बाद माता हेरा गौरी साही नामक गोपनीयता मार्ग के माध्यम से शाम को जगन्नाथ मंदिर पहुँच जाती हैं।
संत एवं गुरुओं के मत के अनुसार, हेरा पंचमी श्रीमंदिर के महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है। भगवान जगन्नाथ के लाखों भक्त इस अनोखे अनुष्ठान का आनंद लेते हैं।

इस दिन मान्यता के अनुसार ही भगवान जगन्नाथ के रथ के थोड़े हिस्से को तोड़ा जाता है और पूरी प्रक्रिया और अनुष्ठान का आनंद लाखों लोग उठाते है।

Vishal Gupta 'Ajmera'

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