बरेली: जिस देवता की जो गायत्री है उसका दशांश जप गायत्री मन्त्र साधना के साथ करना चाहिए। देवताओं की गायत्रियां वेदमाता गायत्री की छोटी-छोटी शाखाएं है, जो तभी तक हरी-भरी रहती हैं, जब तक वे मूलवृक्ष के साथ जुड़ी हुई हैं।

वृक्ष से अलग कट जाने पर शाखा निष्प्राण हो जाती है, उसी प्रकार अकेले देव गायत्री भी निष्प्राण होती है, उसका जप महागायत्री (गायत्री मन्त्र) के साथ ही करना चाहिए।

चौबीस देवताओं के गायत्री मन्त्र

१. गणेश गायत्री–ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।
२. नृसिंह गायत्री–ॐ वज्रनखाय विद्महे तीक्ष्णदंष्ट्राय धीमहि। तन्नो नृसिंह: प्रचोदयात्।

३. विष्णु गायत्री–ॐ त्रैलोक्यमोहनाय विद्महे कामदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु: प्रचोदयात्।

४. शिव गायत्री–ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।

५. कृष्ण गायत्री–ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो कृष्ण: प्रचोदयात्।

६. राधा गायत्री–ॐ वृषभानुजायै विद्महे कृष्णप्रियायै धीमहि। तन्नो राधा प्रचोदयात्।

७. लक्ष्मी गायत्री–ॐ महालक्ष्म्यै विद्महे विष्णुप्रियायै धीमहि । तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्।

८. अग्नि गायत्री–ॐ महाज्वालाय विद्महे अग्निदेवाय धीमहि। तन्नो अग्नि: प्रचोदयात्।

९. इन्द्र गायत्री–ॐ सहस्त्रनेत्राय विद्महे वज्रहस्ताय धीमहि। तन्नो इन्द्र: प्रचोदयात्।

१०. सरस्वती गायत्री–ॐ सरस्वत्यै विद्महे ब्रह्मपुत्र्यै धीमहि। तन्नो देवी प्रचोदयात्।

११. दुर्गा गायत्री–ॐ गिरिजायै विद्महे शिवप्रियायै धीमहि। तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्।

१२. हनुमान गायत्री–ॐ अांजनेयाय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि। तन्नो मारुति: प्रचोदयात्।

१३. पृथ्वी गायत्री–ॐ पृथ्वीदेव्यै विद्महे सहस्त्रमूत्यै धीमहि। तन्नो पृथ्वी प्रचोदयात्।

१४. सूर्य गायत्री–ॐ आदित्याय विद्महे सहस्त्रकिरणाय धीमहि। तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्।

१५. राम गायत्री–ॐ दशरथाय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि। तन्नो राम: प्रचोदयात्।

१६. सीता गायत्री–ॐ जनकनन्दिन्यै विद्महे भूमिजायै धीमहि। तन्नो सीता प्रचोदयात्।

१७. चन्द्र गायत्री–ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृतत्त्वाय धीमहि। तन्नो चन्द्र: प्रचोदयात्।

१८. यम गायत्री–ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे महाकालाय धीमहि। तन्नो यम: प्रचोदयात्।

१९. ब्रह्मा गायत्री–ॐ चतुर्मुखाय विद्महे हंसारुढ़ाय धीमहि। तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात्।

२०. वरुण गायत्री–ॐ जलबिम्वाय विद्महे नीलपुरुषाय धीमहि। तन्नो वरुण: प्रचोदयात्।

२१. नारायण गायत्री–ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो नारायण: प्रचोदयात्।

२२. हयग्रीव गायत्री–ॐ वागीश्वराय विद्महे हयग्रीवाय धीमहि। तन्नो हयग्रीव: प्रचोदयात्।

२३. हंस गायत्री–ॐ परमहंसाय विद्महे महाहंसाय धीमहि। तन्नो हंस: प्रचोदयात्।

२४. तुलसी गायत्री–ॐ श्रीतुलस्यै विद्महे विष्णुप्रियायै धीमहि। तन्नो वृन्दा प्रचोदयात्।

गायत्री साधना

गायत्री साधना का प्रभाव तत्काल होता है जिससे साधक को आत्मबल प्राप्त होता है और मानसिक कष्ट में तुरन्त शान्ति मिलती है। इस महामन्त्र के प्रभाव से आत्मा में सतोगुण बढ़ता है।

ध्यान देने योग्य बातें

गायत्री जप में आसन का भी विचार किया जाता है। बांस, पत्थर, लकड़ी, वृक्ष के पत्ते, घास-फूस के आसनों पर बैठकर जप करने से सिद्धि प्राप्त नहीं होती, वरन् दरिद्रता आती है। गायत्री शक्ति का ध्यान करके करमाला, रुद्राक्ष या तुलसी की माला में जप करना चाहिए। मन में मन्त्र का उच्चारण करना चाहिए। न जीभ हिले, न होंठ।

 

 

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