नयी दिल्ली : भगवान की पूजा कई रूपों में की जाती है, उनमें से उनका सत्यनारायण स्वरूप में भगवान की कथा लोक में प्रचलित है। श्री सत्यनारायण का व्रत करने वाला पूर्णिमा एवम् संक्रान्ति के दिन सन्ध्या के समय स्नान आदि कर्मों से निवृत्त होकर पूजा-स्थल मे आसन पर बैठकर श्रद्धापूर्वक श्री गणेश, वरुण, गौरी, विष्णु आदि सभी देवताओं का स्मरण कर पूजन करें तथा संकल्प लें कि मैं सदा सत्यनारायण भगवान की पूजा तथा कथा-श्रवण करूँगा। फूल हाथ में लेकर सत्यनारायण भगवान का ध्यान करें, यज्ञोपवीत, धूप, पुष्प, नैवेद्य आदि अर्पित कर प्रार्थना करें- हे भगवन! मैंने श्रद्धापूर्वक फल, जल आदि समस्त सामग्री आपको अर्पण की है, आप इसे स्वीकार कीजिये। मेरा आपको बार-बार प्रणाम है। इसके पश्चात् सत्यनारायणजी भगवान की कथा पढ़ें या सुनें।
भगवान श्री सत्यनारायण व्रत की पूजन सामग्री
केले के खम्भे, आम के पत्ते
पञ्चपल्लव, कलश
पञ्चरत्न, चावल, नैवेद्य
कपूर, धूप, दीप, तुलसी दल, पुष्पो कि माला, गुलाब के फूल
श्रीफल, ऋतुफल, पान, पञ्चामृत (दूध, दही, शहद, शक्कर)
अङ्ग वस्त्र, वस्त्र, कलावा, यज्ञोपवीत
केशर, बन्दनवार, चौकी
भगवान सत्यनारायण की तस्वीर
सत्यनारायण भगवान पूजा में केले के पत्ते व फल के अतिरिक्त पंचामृत, पंचगव्य, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, दूर्वा की आवश्यकता होती जिनसे भगवान की पूजा होती है। सत्यनारायण की पूजा के लिए दूध, मधु, केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत बनाया जाता है जो भगवान को अत्यंत प्रिय है। इन्हें प्रसाद के रूप में फल, मिष्टान्न के अतिरिक्त आटे को भून कर उसमें चीनी मिलाकर एक प्रसाद बनता है जिसे सत्तू ( पँजीरी ) कहा जाता है, उसका भी भोग लगता है।
जो व्यक्ति सत्यनारायण की पूजा का संकल्प लेते हैं उन्हें दिन भर व्रत रखना चाहिए। पूजन स्थल को गाय के गोबर से पवित्र करके वहां एक अल्पना बनाएँ और उस पर पूजा की चौकी रखें। इस चौकी के चारों पाये के पास केले का वृक्ष लगाएँ। इस चौकी पर शालिग्राम या ठाकुर जी या श्री सत्यनारायण की प्रतिमा स्थापित करें। पूजा करते समय सबसे पहले गणपति की पूजा करें फिर इन्द्रादि दशदिक्पाल की और क्रमश: पंच लोकपाल, सीता सहित राम, लक्ष्मण की, राधा कृष्ण की। इनकी पूजा के पश्चात ठाकुर जी व सत्यनारायण की पूजा करें। इसके बाद लक्ष्मी माता की और अन्त में महादेव और ब्रह्मा जी की पूजा करें।
पूजा के बाद सभी देवों की आरती करें और चरणामृत लेकर प्रसाद वितरण करें। पुरोहित जी को दक्षिणा एवं वस्त्र दे व भोजन कराएँ। पुराहित जी के भोजन के पश्चात उनसे आशीर्वाद लेकर आप स्वयं भोजन करें।
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