Kokila Purnima Vrat 2021:आषाढ़ पूर्णिमा पर रखे जाने वाला कोकिला व्रत इस वर्ष 23 जुलाई दिन शुक्रवार को है।धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कोकिला व्रत देवी सती और शिव भक्तों के लिए अत्यंत कल्याणकारी माना गया है। कहा जाता है कि जो भक्त कोकिला व्रत रखते हैं तथा देवी सती और भगवान शिव की पूजा करते हैं उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। इस दिन मां दुर्गा की कोयल स्वरुप में आराधना की जाती है।
कोकिला पूर्णिमा 2021 तिथि
हिन्दी पंचांग के अनुसार, 23 जुलाई दिन शुक्रवार सुबह 10:43 बजे से आषाढ़ पूर्णिमा तिथि लग रही है। यह अगले दिन सुबह 08:06 बजे तक रहेगी। व्रत की पूर्णिमा 23 जुलाई दिन शुक्रवार को है।
कोकिला पूर्णिमा व्रत का महत्व :कोकिला पूर्णिमा का व्रत सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला है। मां दुर्गा की कृपा से कोकिला पूर्णिमा का व्रत करने से व्यक्ति को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।साथ ही साथ सौभाग्य सुख, संपदा, धन आदि सभी चीजों की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से सावन सोमवार व्रत का लाभ मिलता है। कहने का अर्थ है कि इस व्रत को करने से युवतियों को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है। यदि दांपत्य जीवन में कोई समस्या आ रही हो, तो उसके निवारण में भी कोकिला पूर्णिमा व्रत रखने की सलाह दी जाती है। यह व्रत मुख्यत: दक्षिण भारत में रखा जाता है।
कोकिला पूर्णिमा का व्रत सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला है। मां दुर्गा की कृपा से कोकिला पूर्णिमा का व्रत करने से व्यक्ति को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।साथ ही साथ सौभाग्य सुख, संपदा, धन आदि सभी चीजों की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से सावन सोमवार व्रत का लाभ मिलता है। कहने का अर्थ है कि इस व्रत को करने से युवतियों को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है। यदि दांपत्य जीवन में कोई समस्या आ रही हो, तो उसके निवारण में भी कोकिला पूर्णिमा व्रत रखने की सलाह दी जाती है। यह व्रत मुख्यत: दक्षिण भारत में रखा जाता है।
आषाढ़ पूर्णिमा पर रखे जाने वाला कोकिला व्रत पूरे सावन मास चलता है और इन दिनों विशेष अनुष्ठान करना मंगलमय कहा गया है। मान्यताओं के अनुसार जो महिलाएं इस दिन कोकिला व्रत रखती हैं उनका सुहाग हमेशा सलामत रहता है तथा उनका वैवाहिक जीवन सुखमय बीतता है।
कुंवारी कन्याओं के लिए भी यह व्रत बेहद लाभदायक माना गया है। इस दिन महिलाएं मिट्टी से कोयल बनाकर उसकी पूजा करती हैं। कहा जाता है कि कोकिला देवी सती का रूप है और इसकी पूजा करना फलदायक है। कोकिला व्रत का फल कथा सुनने के पश्चात ही पूरा मिलता है इसीलिए इस दिन कथा का पाठ करें।
कहा जाता है कि अनंतकाल में राजा दक्ष रहते थे जिन्होंने एक बार अपने घर में यज्ञ आयोजित करवाया था। इस यज्ञ में राजा दक्ष ने सभी देवी देवताओं को बुलाया था मगर उन्होंने देवी सती और भोलेनाथ को आमंत्रित नहीं किया था। जब देवी सती को इस यज्ञ का पता चला तो वह भी इस यज्ञ में शामिल होने के लिए भगवान शिव से आग्रह करने लगीं। भगवान शिव ने देवी सती को समझाया कि अगर राजा दक्ष ने हमें नहीं बुलाया है तो इसके पीछे जरूर कोई कारण होगा, इसलिए उन्हें यज्ञ में नहीं जाना चाहिए। देवी सती ने भगवान शिव की बात ना मानी और वह जिद करने लगीं।
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देवी सती की जिद मानते हुए भगवान शिव ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। जब देवी सती यज्ञ में पहुंची तब उन्होंने देखा कि कोई भी उनसे प्यार से बात नहीं कर रहा है। किसी ने भी उनका मान सम्मान नहीं किया जिससे देवी सती को बहुत बुरा लगा। भगवान शिव की बात ना मानकर देवी सती को बहुत पछतावा हुआ और कुंठित होने के चलते उन्होंने योगाग्नि में आहुति दे दी।
भगवान शिव ने दिया श्राप
जब भगवान शिव को देवी सती की आहुति का पता चला तब वह बेहद क्रोधित हुए। क्रोध में आकर उन्होंने देवी सती को बिना आज्ञा के दक्ष के यज्ञ में जाने तथा वहां शरीर त्याग करने पर भगवान शिव माता सती को हजार वर्षों तक कोकिला होने का श्राप देते हैं। माता सती कोयल रुप में रहते हुए हजार वर्षों तक भगवान शिव को पाने के लिए तप करती हैं। इसके परिणाम स्वरुप वह पार्वती रुप में लौटती हैं और भगवान शिव को पति स्वरुप में पाती हैं। इसके बाद से ही युवतियां मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए कोकिला पूर्णिमा व्रत रखती हैं।
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