माँ शारदा देवी शक्तिपीठ: जहां आज भी आते है माँ के परम भक्त आल्हा और ऊदल

Byvandna

Oct 12, 2021 #‘‘मां शारदा’’, #51 शक्तिपीठों में से एक है माता का धाम, #आल्हा, #आल्हा - ऊदल हरण, #आल्हा अउ ऊदल कौन थे, #आल्हा उदल की लड़ाई, #आल्हा ऊदल, #आल्हा ऊदल का इतिहास, #आल्हा ऊदल का किला, #आल्हा ऊदल का घर, #आल्हा ऊदल का जन्म, #आल्हा ऊदल का बिरहा, #आल्हा ऊदल की कथा, #आल्हा ऊदल की कहानी, #आल्हा ऊदल की लडाई, #आल्हा ऊदल की लड़ाई, #आल्हा ऊदल की वीरता, #आल्हा ऊदल के, #आल्हा ऊदल कौन थे, #आल्हा ऊदल लड़ाई, #आल्हा ऊदल वीडियो, #आल्हा ऊदल संजो बघेल, #आल्हा ऊदल हरण भाग 4, #आल्हा ऊदल हिंदी, #आल्हा और उदल, #आल्हा और ऊदल, #आल्हा और हनुमान, #आल्हा खंड, #माँ, #माँ मैहर देवी, #माँ मैहर देवी के दर्शन, #माँ शारदा का लाइव दर्शन, #माँ शारदा गीत, #मां शारदा टेंपल मैहर, #मां शारदा देवी मंदिर मैहर मां शारदा devi temple my her, #माँ शारदा मंदिर, #माँ शारदा मंदिर मैहर, #मैहर देवी का आल्हा, #मैहर देवी फोटो, #मैहर देवी मंदिर, #मैहर देवी मंदिर खुला है, #मैहर देवी माता, #मैहर देवी यात्रा, #मैहर मंदिर माँ शारदा की कहानी, #मैहर वाली माँ शारदा की आरती, #शक्तिपीठ, #शारदा
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माँ शारदा देवी शक्तिपीठ: माँ शारदा देवी शक्तिपीठ, मध्यप्रदेश के सतना जिले में मैहर तहसील के पास त्रिकूट पर्वत पर स्थित है… मैहर का अर्थ है मां का हार। माना जाता है कि यहां मां सती का हार गिरा था इसीलिए इसकी गणना शक्तिपीठों में की जाती है।

दो भाइयों आल्हा और ऊदल ने ही सबसे पहले जंगलों के बीच शारदादेवी के इस मंदिर की खोज की थी। आल्हा ने यहां 12 वर्षों तक माता की तपस्या की थी। आल्हा, माता को शारदा माई कहकर पुकारा करते थे इसीलिए प्रचलन में उनका नाम शारदा माई हो गया। आल्हा और ऊदल दोनों बुन्देलखण्ड के महोबा के वीर योद्धा और परमार के सामंत थे।

कालिंजर के राजा परमार के दरबार में जगनिक नाम के एक कवि ने आल्हा खण्ड नामक एक काव्य रचा था उसमें इन वीरों की गाथा वर्णित है। इस ग्रंथ में दों वीरों की 52 लड़ाइयों का रोमांचकारी वर्णन है।


रोज संध्या आरती के पश्चात, साफ सफाई और पूजा की तैयारी करके मंदिर के पट बन्द कर सभी पुजारी, और सेवादार त्रिकुट पर्वत से नीचे आ जाते है…रात्रि में किसी को भी वहाँ रहने की अनुमति नहीं है…सुबह वापस पहुंचने पर माँ का श्रृंगार और पूजन किया हुआ मिलता है….कहते है मां शारदा माई के भक्त आल्हा और ऊदल आज भी मां की पूजा और आरती करने त्रिकुट पर्वत पर आते है…


ये भी मान्यता है कि यहां पर सर्वप्रथम आदिगुरु शंकराचार्य ने 9वीं-10वीं शताब्दी में पूजा-अर्चना की थी।


पिरामिडाकार त्रिकूट पर्वत में विराजीं मां शारदा का यह मंदिर 522 ईसा पूर्व का है। 522 ईसा पूर्व चतुर्दशी के दिन नृपल देव ने यहां सामवेदी की स्थापना की थी, तभी से त्रिकूट पर्वत में पूजा-अर्चना का दौर शुरू हुआ। करीब 1,063 सीढ़ियां चढ़ने के बाद माता के दर्शन होते हैं।
यहां माता के साथ देवी काली, दुर्गा, श्री गौरी शंकर, शेष नाग, श्री काल भैरवी, भगवान, फूलमति माता, ब्रह्म देव, हनुमान जी और जलापा देवी की भी पूजा की जाती है।

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