पितृपक्ष : हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का महीना बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इस महीने में पितरों के नाम से श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। साथ ही आपके पूर्वज आपको खुश होते हैं और अपना आशीर्वाद मनाए रखते हैं। आज से प्रारंभ हो रहे पूर्वजों के प्रति सच्ची श्रद्धा के पुण्य अवसर पर आप सभी को आपके पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त हो, यही कामना है। आइए जानते हैं श्राद्ध कब, क्या और कैसे करेंगे जानने योग्य विशेष बातें
#पितृपक्ष भाद्रपद पूर्णिमा,#पितृपक्ष_प्रतिपदा,29-09-2023 03. 26 से,#सर्व_पितृ_अमावस्या 14 अक्टूबर 2023।
श्राद्धएवं तर्पण
- मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे ।पूर्वान्ह में शुक्लपक्ष में रात्रि में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए।
- कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान है ।
- चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए, इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है ।
- जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं।
किस तिथि का श्राद्ध नहीं - जिस तिथि को जिसकी मृत्यु हुई है, उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चाहिए। पिता जीवित हो तो, गया श्राद्ध न करें ।
- मां की मृत्यु (सौभाग्यवती स्त्री) किसी भी तिथि को हुई हो, श्राद्ध केवल नवमी को ही करना है।
- श्राद्ध चतुर्दशी को नहीं करना चाहिए, इस दिन अपमृत्यु प्राप्त व्यक्ति का श्राद्ध विधान है।
- श्राद्ध का सामान्यत: समय दोपहर 12 बजे से सायं 4 बजे तक का होता हैं।
बच्चों का श्राद्ध
१. 2 या उससे कम आयु के बच्चे की वार्षिक तिथि और श्राद्ध नहीं किया जाता है ।
- यदि मृतक 2 से 6 वर्ष आयु का है तो भी उसका श्राद्ध नहीं किया जाता है।उसका केवल मृत्यु के ,10दिन के अन्दर 16 पिण्डों (मलिन षोडशी) का दान किया जाता है ।
- 6 वर्ष से अधिक आयु में मृत्यु होने पर श्राद्ध की सम्पूर्ण प्रक्रिया की जाती है।
४. कन्या की 2 से 10वर्ष की अवथि में मृत्यु होने की स्थिति में उसका श्राद्ध नहीं करते है। केवल मलिन षोडशी तक की क्रिया की जाती है। - अविवाहित कन्या की 10बर्ष से अधिक आयु में मृत्यु होने पर मलिन षोडशी, एकादशाह, सपिण्डन आदि की क्रियाएं की जाती हैं।
- विवाहित कन्या को मृत्यु होने पर माता पिता के घर में श्राद्ध आदि की क्रिया नहीं की जाती है। श्राद्ध के भोज्य पदार्थ
गेंहूं, जौ, उड़द, फल, चावल, शाक, आम, करोंदा, ईख, अंगूर, किशमिश, बिदारी कंद, शहद, लाजा, शक्कर, सत्तू, सिंघाड़ा, केसर, सुपारी।
अक्षत श्राद्ध कहाँ करेंगे : गंगा, प्रयाग, गया, अमरकंटक, बदरीनाथ और भी कई स्थान हैं।
श्राद्ध में क्या नहीं करें /वर्जित –
- सामाजिक या व्यापारिक संबंध स्थापित न करें।
- श्राद्ध के दिन दही नहीं बिलोएं चक्की नहीं चलाएं तथा बाल न कटवाऐंगे। श्राद्ध के दिन क्या नहीं खाएं
1-बैंगन, गाजर, मसूर, अरहर, गोल लौकी, शलजम, हींग, प्याज, लहसुन, काला नमक, काला जीरा, सिधाङा, जामुन, पिपली, सुपाड़ी, कुलपी, महुआ, असली पीली सरसों और चना का प्रयोग श्राद्ध में निषिद्ध है ।
2-हींग, लौकी, लहसुन, काला नमक, धनिया, अम्लवेतस, राजगिरा, सौंफ, कचनार, श्वेत चावल, बड़ा नीबू, बैंगन, चोलाई साग, नारियल, जामुन, जीरा, चिरौंजी, लोहे के पात्र में बना
निमंत्रित ब्राह्मणों को मिश्रित जल देना चाहिए। इसके बाद पिंड अंश देवें।
निमंत्रित ब्राह्मणों से कहें (भोजन उपरांत) अभिलाषा कथन / याचना-“
कहें , पितरगण हमारे दाताओं की अभिवृद्धि हो। वेदज्ञान, संतान, श्रद्धा बढे़। हमसे सब याचना करें हमें याचना न करनी पडे़।आमंत्रित ब्राह्मण तथास्तु कहकर आशीर्वाद दें। “
श्राद्ध कर्म के पश्चात् – पिंड गाय, बकरी, ब्राहम्ण, अग्नि, जल पक्षियों को दें।
ध्यान देने योग्य विशेष बातें
- श्राद्ध की सम्पूर्ण क्रिया दक्षिण की ओर मुंह करके तथा अपव्यय (जनेऊ को दाहिने कंधे पर डालकर बाएं हाथ के नीचे करलेने की स्थिति) होकर की जाती हैं ।
- श्राद्ध में पितरों को भोजन सामग्री देने के लिए मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग करना चाहिए । मिट्टी के बर्तनों के अलावा लकड़ी के बर्तन, पत्तों के दौनों (केले के पत्ते को छोड़कर) का भी प्रयोग कर सकते हैं ।
- श्राद्ध में तुलसीजल का प्रयोग आवश्यक हैं ।
- श्राद्ध बिना आसन के न करें ।
- श्राद्ध में अग्नि पर घी, तिल के साथ डालें, निर्धनता की स्थिति में केवल शाक से श्राद्ध करें । यदि शाक न हो तो गाय को खिलाने से श्राद्ध सम्पन्न हो जाता है ।
- मृत्यु के समय जो तिथि होती है, उसे ही मरण तिथि माना जाता है। (मरण तिथि के निर्धारण में सूर्योदय कालीन तिथि ग्राह्य नहीं है।) श्राद्ध मरण तिथि के दिन ही किया जाता है। पति के रहते मृत नारी के श्राद्ध में ब्राह्मण के साथ सौभाग्यवती ब्राह्मणी को पति के साथ भी भोजन कराना।
श्राद्ध काल में जपनीय मंत्र.
१. ॐ क्रीं क्लीं ऐं सर्वपितृभ्यो स्वात्म सिद्धये ॐ फट।
२. ॐ सर्व पितृ प्रं प्रसन्नो भव ॐ ।
३. ॐ पितृभ्य: स्वधाभ्य: स्वधानम: पितामहेम्य स्वधाभ्य: स्वधा नम: ।
जिनकी जन्मपत्रिका में पितृदोष हो तो उन्हें पितृ पक्ष में नित्य
(ॐ ऐं पितृदोष शमन हीं ॐस्वधा!)
मंत्र जाप के पश्चात तिलांजलि से अर्ध्य दें व निर्धन को तिल दान अवश्य करेंगे।
सुख वैभव वृद्धि पितृदोष बाधा शमन मन्त्र:–ॐ श्रीं सर्व
पितृदोष निवारण क्लेश हन हन सुख शांति देहि फट् स्वाहा।
।। आचार्य रंजीत भारद्वाज।।