माँ चंद्रघंटा,चंद्रघंटा,मां चंद्रघंटा,मां चंद्रघंटा देवी,माँ चंद्रघंटा की कथा,देवी चंद्रघंटा,तीसरी देवी चंद्रघंटा,चंद्रघंटा मां,तृतीय दुर्गा माँ चंद्रघंटा की कथा,चंद्रघंटा देवी मंत्र,देवी चंद्रघंटा का मंत्र,माता चंद्रघंटा,चंद्रघंटा माता की कथा,तृतीया स्वरूप,नवदुर्गा तृतीय स्वरूप,माता चंद्रघटा नवरात्रि का तीसरा स्वरूप,तृतीय देवी,मां दुर्गा का तृतीय रूप क्या है,तृतीया नवदुर्गा: माता चन्द्रघंटा,मां दुर्गा की तीसरी शक्ति चन्द्रघंटा

शारदीय नवरात्र 2021: नवरात्रके तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा होती है।आज यानि कि शनिवार को शारदीय नवरात्र का तीसरा दिन है. आज देवी की तीसरे रूप मां चंद्रघंटा की अराधना की जाएगी। मां के माथे पर अर्धचंद्र है इसीलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है।

माता चंद्रघंटा का शरीर स्वर्ण के समान उज्ज्वल है, इनके दस हाथ हैं। मां के स्वरूप देवी चंद्रघंटा की पूजा करने से साधक को गजकेसरी योग का लाभ प्राप्त होता है।मां चंद्रघंटा शेर की सवारी करती हैं। मां का यह रूप देवी पार्वती का विवाहित रूप है। भगवान शिव के साथ विवाह के बाद देवी महागौरी ने मस्तक पर अर्धचंद्र धारण किया इसलिए उनका नाम चंद्रघंटा पड़ा। चंद्रघंटा को शांतिदायक और कल्याणकारी माना जाता है। मां चंद्रघंटा की विधिपूर्वक पूजा करने से जीवन में उन्नति, धन, स्वर्ण, ज्ञान और शिक्षा की प्राप्ति होती हैं ।

मां चंद्रघंटा की पूजा विधि- जानिए मां के इस स्वरूप की पूजा विधि…

पूजा विधि: चौकी पर स्‍वच्‍छ वस्‍त्र पीत बिछाकर मां चंद्रघंटा की प्रतिमां को स्‍थापित करें। गंगाजल छिड़ककर इस स्‍थान को शुद्ध करें। वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा मां चंद्रघंटा (Chandraghanta) सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। मां को गंगाजल, दूध, दही, घी शहद से स्‍नान कराने के पश्‍चात वस्‍त्र, हल्‍दी, सिंदूर, पुष्‍प, चंदन, रोली, मिष्‍ठान और फल का अर्पण करें।

मां चंद्रघंटा से जुड़ी पौराणिक कथा-:

पौराणिक कथा के अनुसार जब दानवों का आतंक बढ़ने लगा तो मां दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का स्वरूप लिया। महिषासुर नामक राक्षस देव राज इंद्र का सिंहासन प्राप्त कर स्वर्गलोक पर राज करना चाहता था। उसकी इस इच्छा को जानकार सभी देवता परेशान हो गए और इस परेशानी के हल के लिए देवताओं ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश की सहायता मांगी।

देवताओं की बात को सुनने के बाद तीनों को ही क्रोध आया। क्रोध के कारण तीनों के मुख से जो ऊर्जा उत्पन्न हुई। उससे एक देवी उत्पन्न हुईं। जिन्हें भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल और भगवान विष्णु ने अपना चक्र प्रदान किया। इसी प्रकार अन्य सभी देवी देवताओं ने भी माता को अपना-अपना अस्त्र सौंप दिए। देवराज इंद्र ने देवी को एक घंटा दिया। इसके बाद मां चंद्रघंटा महिषासुर का वध करने पहुंची। मां का ये रूप देखकर महिषासुर को ये आभास हो गया कि उसका काल आ गया है। महिषासुर ने माता रानी पर हमला बोल दिया। मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का संहार कर दिया। इस प्रकार मां ने देवताओं की रक्षा की।

इन मंत्रों का करें जाप

  1. या देवी सर्वभू‍तेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
  2. पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता। प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥

मां को लगाएं ये भोग

मां चंद्रघंटा को रामदाना का भोग लगाएं। इसके अलावा दूध, मेवायुक्त खीर या फिर दूध से बनी मिठाईयों का भी भोग लगा सकते हैं। इससे भक्तों को समस्त दुखों से छुटकारा मिलता है।

मां चंद्रघण्टा की आरती:

जय मां चंद्रघंटा सुख धाम।

पूर्ण कीजो मेरे सभी काम।

चंद्र समान तुम शीतल दाती।चंद्र तेज किरणों में समाती।

क्रोध को शांत करने वाली।

मीठे बोल सिखाने वाली।

मन की मालक मन भाती हो।

चंद्र घंटा तुम वरदाती हो।

सुंदर भाव को लाने वाली।

हर संकट मे बचाने वाली।

हर बुधवार जो तुझे ध्याये।

श्रद्धा सहित जो विनय सुनाएं।

मूर्ति चंद्र आकार बनाएं।

सन्मुख घी की ज्योति जलाएं।

शीश झुका कहे मन की बाता।

पूर्ण आस करो जगदाता।

कांचीपुर स्थान तुम्हारा।

करनाटिका में मान तुम्हारा।

नाम तेरा रटूं महारानी।

भक्त की रक्षा करो भवानी।

By vandna

error: Content is protected !!