एस्ट्रोडेस्क, BareillyLive. : पूर्वांहन व्यपिनी ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को हस्त नक्षत्र में स्वर्ग से श्रीगंगा का अवतरण हुआ था। ’स्कन्द पुराण एवं ब्रह्म पुराण के अनुसार यदि दशमी दो दिन पूर्वांहन व्यपिनी हो तो निम्न 10 योगों ’(1)ज्येष्ठ मास (2 )शुक्ल पक्ष ( 3 )दशमी तिथि (4 )बुधवार (5 )हस्त नक्षत्र ( 6) व्यतिपात योग (7) गर करण (8)आनंद योग (बुधवार व हस्त नक्षत्र का संयोग हो तो) (9) वृष का सूर्य और (10)कन्यास्थ चंद्र।’ जिस दिन उपरोक्त यौगों में से अधिक योगों का संयोग होता है, उसी दिन विशेष को गंगा दशहरा सम्बंधित स्नान-दान, जप-तप वृतादि क़ी शास्त्र आज्ञा है।
इस वर्ष गंगा-दशहरा (Sri Ganga Dussehra 2022) सम्बंधित योग 9 एवं 10 जून 2022 को प्राप्त हो रहे हैं। स्कन्द पुराण के अनुसार यदि दोनों दिन इन योगो क़ी संख्या समान हो तो यह पर्व पहले दिन प्रशस्त होग़ा। ’इस वर्ष ज्येष्ठ शुक्ल दशमी 9 एवं 10 जून दोनों ही दिन पूर्वांहन व्यपिनी है परन्तु 9 जून को उपरोक्त दशहरा निर्णायक 10 योगो में से 7 योग उपलब्ध है जबकि 10 जून को मात्र 5 योग ही प्राप्त हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में 9 जून 2022, गुरुवार को ही गंगा-दशहरा पर्व मनाया जाएगा।’
जेष्ठ शुक्ल दशमी को ’हस्त नक्षत्र’ में स्वर्ग से गंगाजी का आगमन हुआ था। जेष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की यह दशमी तो एक प्रकार से गंगाजी का जन्मदिन ही है। इस दशमी तिथि को ’गंगा दशहरा’ कहा जाता है। ’स्कन्द पुराण, वाल्मीकि रामायण’ आदि ग्रंथों में गंगा अवतरण की कथा वर्णित है। इसी दिन महाराज भागीरथ के कठोर तप से प्रसन्न होकर स्वर्ग से पृथ्वी पर आईं थीं गंगाजी।
इस बार गंगा दशहरा ’दिनाँक 09 जून 2022, गुरुवार को है, जो सहस्त्र पापों को नष्ट करने वाला है। ’जेष्ठ शुक्ल दशमी को रविवार एवं चित्रा नक्षत्र होने पर यह तिथि घोर पापों को नष्ट करने वाली मानी गई है।’ यह दिन संवत्सर का मुख माना गया है। इसलिए गंगा स्नान करके ’दूध, बताशा, जल, रोली, नारियल, धूप, दीप’ से पूजन करके दान देना चाहिए। इस दिन ’गंगा, शिव, ब्रह्मा, सूर्य, भागीरथी तथा हिमालय’ की प्रतिमा बनाकर पूजन करने से विशेष फल प्राप्त होता है। इस दिन गंगा आदि का स्नान, अन्न-वस्त्र आदि का दान, जप-तप, उपासना एवं उपवास किया जाता है। इससे दस प्रकार के पापों से छुटकारा मिलता है। ’यदि इस दिन 1.जेष्ठ, 2.शुक्ल, 3.दशमी, 4.बुध, 5.हस्त, 6.व्यतिपात ,7. गर, 8.आनंद, 9.वृषस्थ सूर्य, 10.कन्या का चंद्रमा’ हो तो यह अपूर्व योग बनता है। यह महाफलदायक होता है। यदि जेष्ठा अधिक मास हो तो स्नान, दान, तप व्रतादि मलमास में करने से ही अधिक फल प्राप्त होता है।
’आज के दिन दान देने का भी विशिष्ट महत्व है। यह मौसम बेहद गर्मी का होता है, अतः छतरी, वस्त्र, जूते-चप्पल आदि दान में दिए जाते हैं।
किंवदन्ती’ :- अनेक परिवारों में दरवाजे पर पांच पत्थर रखकर पांच पीर पूजे जाते। ’आज के दिन आम खाने और आम दान करने का भी विशिष्ट महत्व है।’
विशेष पूजनः- दशहरा के दिन दशाश्वमेध में दस बार स्नान करके शिवलिंग का दस संख्या के गंध, पुष्प, दीप, नैवेद्य और फल आदि से पूजन करके रात्रि को जागरण करने से अनंत फल प्राप्त होता है। इसी दिन गंगा पूजन का भी विशिष्ट महत्व है। इस दिन विधि-विधान से गंगाजी का पूजन करके दस सेर तिल, दस सेर जौ और दस सेर गेहूं दस ब्राह्मणों को दान दें। ’जेष्ठ शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ करके दशमी तक एकोत्तर-वृद्धि से दशहरा स्त्रोत का पाठ करें। ऐसा करने से समस्त पापों का समूल नाश हो जाता है और दुर्लभ सम्पत्ति प्राप्त होती है।
पौराणिक संदर्भः- गंगावतरण की कथा का वर्णन ’बाल्मीकि रामायण, देवी भागवत, महाभारत तथा स्कन्द पुराण’ में मिलता है। पुरातन युग में अयोध्यापति महाराज सगर ने एक बार विशाल यज्ञ का आयोजन किया और उसकी सुरक्षा का भार उन्होंने अपने पौत्र अंशुमान को सौंपा। देवराज इंद्र ने राजा सगर के यज्ञीय अश्व का अपहरण कर लिया, तो यज्ञ के कार्य में रुकावट हो गई। इंद्र ने घोड़े का अपहरण कर उसे कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया।
घोड़े को खोजते हुए राजा सगर के पुत्र जब कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचे। कोलाहल सुनकर कपिल मुनि के क्रोध से राजा के हजारों पुत्र भस्म हो गए। महात्मा गरुड़ ने राजा सगर को उसके पुत्रों के भस्म होने की जानकारी दी। उनकी मुक्ति का मार्ग उन्होंने स्वर्ग से गंगाजी को पृथ्वी पर लाना भी बताया।
चूंकि पहले यज्ञ शुरू करवाना जरूरी था। अतः अंशुमान ने घोड़े को यज्ञ मंडप पहुंचाया और यज्ञ करवाया। उधर राजा सगर का देहांत हो गया। जीवन पर्यन्त तपस्या करके गंगा जी को पृथ्वी पर लाने का बीड़ा अंशुमान और उसके पुत्र दिलीप ने उठाया, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। दिलीप के पुत्र भगीरथ ने जब के वर्षों तक कठोर तपस्या की, तब कहीं जाकर ब्रह्माजी प्रसन्न हुए और उन्होंने भगीरथ से वर मांगने को कहा। भगीरथ ने गंगाजी को पृथ्वी पर भेजने के लिए निवेदन किया।
गंगाजी का वेग सभांलने हेतु भगीरथ जी ने भगवान शंकर को प्रसन्न किया। भगवान शंकर की जटाओं से होती हुई देवी गंगा का अवतरण भूमि पर हुआ। बहता हुआ गंगा का ऋषि कपिल के आश्रम में पहुंचा और इस प्रकार उनके सभी पुत्र श्राप से मुक्त हुए। ब्रह्माजी ने पुनः प्रकट होकर भागीरथ के कठिन तप से प्रभावित होकर, गंगा जी को ’भागीरथी’ नाम से संबोधित किया। इस प्रकार भगीरथ ने अपने पुण्य से पुत्र लाभ पाया।
विशेषः- इस बार नहाने के पानी मे 10 बूंद गंगाजल की डालकर घर पर ही नहाने में गंगा स्नान का फल प्राप्त होगा और दान करने में अक्षय पुण्य की प्राप्ति होगी।
ज्योतिषाचार्य पं. राजीव शर्मा
बालाजी ज्योतिष संस्थान,बरेली
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