भगवान शिव श्रावण के सोमवार के बारे में कहते हैं-
“मत्स्वरूपो यतो वारस्ततः सोम इति स्मृतः।
प्रदाता सर्वराज्यस्य श्रेष्ठश्चैव ततो हि सः।
समस्तराज्यफलदो वृतकर्तुर्यतो हि सः।।”
अर्थात सोमवार मेरा ही स्वरूप है,अतः इसे सोम कहा गया है। इसीलिये यह समस्त राज्य का प्रदाता तथा श्रेष्ठ है। व्रत करने वाले को यह सम्पूर्ण राज्य का फल देने वाला है। सावन सनातनी मास क्रम का पांचवा महीना है।और महादेव को विशेष प्रिय है ।
भोलेनाथ ने स्वयं कहा है—
द्वादशस्वपि मासेषु श्रावणो मेऽतिवल्लभ: ।
श्रवणार्हं यन्माहात्म्यं तेनासौ श्रवणो मत: ।।
श्रवणर्क्षं पौर्णमास्यां ततोऽपि श्रावण: स्मृत:।
यस्य श्रवणमात्रेण सिद्धिद: श्रावणोऽप्यत: ।।
मासों में सावन मुझे अत्यंत प्रिय है। इसका महात्म्य सुनने अर्थात श्रवण करने योग्य है अतः इसे श्रावण कहा जाता है। इस मास में “श्रवण” नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होती है इस कारण भी इसे श्रावण कहा जाता है।
भगवान शिव यह भी आदेश देते हैं कि “सोमे मत्पूजा नक्तभोजनं” अर्थात सोमवार को मेरी पूजा और नक्तभोजन करना चाहिए। पूर्वकाल में सर्वप्रथम श्रीकृष्ण ने ही इस मंगलकारी सोमवार व्रत को किया था। “कृष्णे नाचरितं पूर्वं सोमवारव्रतं शुभम्”
स्कंदपुराण के अनुसार सूत जी कहते हैं- स्कंदपुराण के अनुसार सूत जी कहते हैं-
शिवपूजा सदा लोके हेतुः स्वर्गापवर्गयोः ।।
सोमवारे विशेषेण प्रदोषादिगुणान्विते ।।
केवलेनापि ये कुर्युः सोमवारे शिवार्चनम् ।।
न तेषां विद्यते किंचिदिहामुत्र च दुर्लभम् ।।
उपोषितः शुचिर्भूत्वा सोमवारे जितेंद्रियः ।।
वैदिकैर्लौकिकैर्वापि विधिवत्पूजयेच्छिवम् ।।
ब्रह्मचारी गृहस्थो वा कन्या वापि सभर्त्तृका।।
विभर्तृका वा संपूज्य लभते वरमीप्सितम्।।
प्रदोष आदि गुणों से युक्त सोमवार के दिन शिव पूजा का विशेष महात्म्य है। जो केवल सोमवार को भी भगवान शंकर की पूजा करते हैं, उनके लिए इहलोक और परलोक में कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं। सोमवार को उपवास करके पवित्र हो इंद्रियों को वश में रखते हुए वैदिक अथवा लौकिक मंत्रों से विधिपूर्वक भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। ब्रह्मचारी, गृहस्थ, कन्या, सुहागिन स्त्री अथवा विधवा कोई भी क्यों न हो, भगवान शिव की पूजा करके मनोवांछित वर पाता है।
शिवपुराण, कोटि रुद्रसंहिता के अनुसार-
निशि यत्नेन कर्तव्यं भोजनं सोमवासरे ।
उभयोः पक्षयोर्विष्णो सर्वस्मिञ्छिव तत्परैः ।।
नों पक्षों में प्रत्येक सोमवार को प्रयत्नपूर्वक केवल रात में ही भोजन करना चाहिए। शिव के व्रत में तत्पर रहने वाले लोगों के लिए यह अनिवार्य नियम है।
अष्टमी सोमवारे च कृष्णपक्षे चतुर्दशी।।
शिवतुष्टिकरं चैतन्नात्र कार्या विचारणा।।
सोमवार की अष्टमी तथा कृष्णपक्ष चतुर्दशी इन दो तिथियों को व्रत रखा जाए तो वह भगवान शिव को संतुष्ट करने वाला होता है, इसमें अन्यथा विचार करने की आवश्यकता नहीं है।
“सोमवारे प्रधानः स्यात्सायंकालः प्रकीर्तितः” स्कन्दपुराण के अनुसार मुख्य रूप से सोमवार को सांयकाल में पूजा की जानी चाहिए। सोमवार को चंद्र उदय के समय की गई महादेव की पूजा बहुत ही शुभ और कल्याणकारी है।
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