सोरोंजी (शूकर क्षेत्र) । रविवार 25 दिसंबर (शुक्रवार) 2020 को मोक्षदा एकादशी है। मोक्षदा एकादशी (Mokshda Ekadashi) को लेकर सनातन धर्म में मान्यता है कि इस दिन स्नान-ध्यान और व्रत से मनुष्यों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत के प्रभाव से पितरों को भी मुक्ति मिलती है। इसीलिए इसे मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। माना जाता है कि यह व्रत मनुष्य के मृतक पूर्वजों के लिए स्वर्ग के द्वार खोलने में सहायता करता है।
मोक्ष प्राप्त करने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को इस एकादशी (Mokshda Ekadashi) पर व्रत रखना चाहिए। इस दिन को गीता जयंती भी मनायी जाती है क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से पवित्र श्रीमदभगवद् गीता (Bhagwad Geeta) प्रकट हुई थी। सनातन भारतीय संस्कृति में श्रीमद्भगवद्गीता पूज्य और अनुकरणीय भी है। यह विश्व का इकलौता ऐसा ग्रंथ है जिसकी जयंती मनाई जाती है।
मोक्षदा एकादशी पर भगवान् श्री हरि विष्णु जी के तृतीय अवतार श्रीवराह भगवान् की मोक्ष स्थली कासगंज जिले के सोरों (सूकर क्षेत्र ) में “मेला मार्गशीर्ष “का भव्य आयोजन किया जाता हैं। इस दिन न केवल सोरों या उत्तर प्रदेश बल्कि राजस्थान एवं अन्यान्य प्रदेशों से हजारों की संख्या में लोग सोरोंजी पहुंचकर यहां स्थित श्रीवराह मंदिर प्रांगण में स्थापित श्रीहरि की पौड़ी में स्नान करके पंचकोसी परिक्रमा करते हैं। मान्यता है कि यह पंचकोसी परिक्रमा श्रीहरि की प्रदक्षिणा का सुफल प्रदान कर मोक्ष प्रदान करती है।
महात्मा संत तुलसीदास जी की जन्मभूमि, सतयुगकालीन, ऐतिहासिक, पौराणिक नगरी सोरो (सूकर क्षेत्र ) में हरि की पौड़ी में गंगा स्नान कर लोग मेला मार्गशीर्ष का आंनद लेते हैं। धार्मिक महत्व के इस मेले में बड़ी संख्या में आसपास के अतिरिक्त बाहरी राज्यों से भी लोग पहुंचते हैं।
धरती पर जीवात्माओं के सृजन काल से ही सोरों जी मानव सभ्यता का प्रमुख केंद्र रहा है। मान्यता है कि सृष्टि में सभ्यता का सर्व प्रथम उदगम यहीं से हुआ है। ब्रह्मा जी के पुत्र मनु और मनु के पुत्र उत्तानपाद की राजधानी मानी जाती है सोरों जी।
राजा उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव (तारा) का जन्म यहीं हुआ था। भगवान विष्णु के तृतीय वराह अवतार की मोक्ष भूमि भी यही है। भू-सम्राट हिरण्यकश्यप की राजधानी व प्रहलाद एवं होलिका का घर यही है। महर्षि भृगु की ससुराल यही है, शुक्राचार्य की ननिहाल यही है, भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार हरिहरदास नरहरिदास नंददास तुलसीदास की जन्मस्थली यही है। चालुक्य राजवंश की उदगम स्थली यही है।
हिन्दू पौराणिक सभ्यता के अनगिनत ऋषियों मुनियों की साधना स्थली यही है। वृद्ध गंगा का पौराणिक मार्ग यही है। कपिल मुनि व भगीरथ की गुफा यहीं है। संसार के चार प्रमुख वट बृक्षों में से एक गृद्ध वट यहीं है। लाखों वर्ष पुरातन सीता राम मंदिर यहां है। देवी लक्ष्मी कुबेर और सौभाग्य का प्रतीक श्रीयंत्र यहां है।
पुत्र प्राप्ति के लिए सूर्य की तपोस्थली यही है। श्राप से मुक्ति पाने के लिए चंद्रमा की तपोस्थली यही है। जल थल और वायु में मोक्ष यहीं है। जीवन मरण का रहस्य यहीं है।
यहां प्रत्येक अमावस्या, सोमवती अमावस्या, पूर्णिमा, रामनवमी, मोक्षदा एकादशी आदि अवसरों पर तीर्थयात्रियों का बड़ी संख्या में आवागमन होता है जो गंगा में स्नान कर पुण्य प्राप्त करते हैं। यहां अस्थि विसर्जन का विशेष महत्त्व है, हरि की पौड़ी में विसर्जित की गयीं अस्थियां चौबीस घंटों के अन्त तक रेणु रूप धारण कर लेती हैं, ऐसा प्रमाण आज भी प्रत्यक्ष है। यहां भगवान् वाराह का विशाल प्राचीन मन्दिर है।
सोरों सूकरक्षेत्र के तीर्थपुरोहित जगत् विख्यात हैं, इनके पास प्रत्येक परिवार के पूर्वजों का वंशानुगत इतिहास मौजूद हैं जो समय के साथ अपडेट किये जाते रहते हैं। यहां का मार्गशीर्ष मेला प्रसिद्ध पौराणिक व पारंपरिक मेला है। धन्य है वो प्राणी जिसे अपने जीवनकाल के दौरान सोरों जी में प्रवास करने का अवसर प्राप्त होता है।
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