21 जून (रविवार) को होनेवाला सूर्यग्रहण भारत के कुछ भागों में कंकणाकृति और अधिकांश भारत में खंडग्रास दिखेगा । इस वर्ष 21 जून को होनेवाला सूर्यग्रहण भी भारी विनाशक योग का सर्जन कर रहा है । यह देश व दुनिया के लिए महादुःखदायी है ।
जो ग्रहण काल में उसके नियम-पालन कर जप-साधना करते हैं, वे न केवल ग्रहण के दुष्प्रभावों से बच जाते हैं बल्कि महान पुण्यलाभ भी प्राप्त करते हैं । इस बार का ग्रहण का योग जप-साधना के लिए अधिक उपयोगी है । महर्षि वेदव्यासजी कहते हैं : ‘‘रविवार को सूर्यग्रहण अथवा सोमवार को चन्द्रग्रहण हो तो ‘चूड़ामणि योग’ होता है । अन्य वारों में सूर्यग्रहण में जो पुण्य होता है उससे करोड़ गुना पुण्य ‘चूड़ामणि योग’ में कहा गया है ।’’ (निर्णयसिंधु)
ग्रहण से होनेवाले दुष्प्रभावों से मानव-समाज को बचने के लिए जप, साधन-भजन पूजा-पाठ शांति पूर्वक अपने अपने घर पर करनी चाहिए।: ‘‘ग्रहण है तो कुछ-न-कुछ उथल-पुथल होगी ।
‘‘सूर्यग्रहण में 4 प्रहर (12 घंटे) और चन्द्रग्रहण में 3 प्रहर (9 घंटे) पहले से सूतक माना जाता है । इस समय सशक्त व्यक्तियों को भोजन छोड़ देना चाहिए । इससे आयु, आरोग्य, बुद्धि की विलक्षणता बनी रहेगी ।
ग्रहण के समय कोई भी गंदा भाव या गंदा कर्म होता है तो वह स्थायी हो जाता है क्योंकि पसार नहीं हो पाता है । इसलिए कहते हैं कि ग्रहण व सूतक में भोजन तो न करें, साथ ही ग्रहण से थोड़ी देर पहले से ही अच्छे विचार और अच्छे कर्म में लग जायें ताकि अच्छाई गहरी, स्थिर हो जाय । अच्छाई गहरी, स्थिर हो जायेगी तो व्यक्ति के स्वभाव में, मति-गति में ही आयेगी, आयु, आरोग्य व पुष्टि मिलेगी । अगर गंदगी स्थिर होगी, रजो-तमोगुण स्थिर होंगे तो जीवन में चिंता, शोक, भय, विकार और व्यग्रता घुस जायेगी ।
ग्रहण के पहले का बनाया हुआ अन्न ग्रहण के बाद त्याग देना चाहिए लेकिन ग्रहण से पूर्व रखा हुआ दही या उबाला हुआ दूध तथा दूध, छाछ, घी या तेल – इनमें से किसीमें सिद्ध किया हुआ ।
सूतक से पहले पानी में कुशा, तिल या तुलसी-पत्र डाल के रखें ताकि सूतक काल में उसे उपयोग में ला सकें । ग्रहणकाल में रखे गये पानी का उपयोग ग्रहण के बाद नहीं करना चाहिए किंतु जिन्हें यह सम्भव न हो वे उपरोक्तानुसार कुशा आदि डालकर रखे पानी को उपयोग में ला सकते हैं, ऐसा कुछ जानकारों का कहना है ।
ग्रहण का कुप्रभाव वस्तुओं पर न पड़े इसलिए मुख्यरूप से कुशा का उपयोग होता है । इससे पदार्थ अपवित्र होने से बचते हैं । कुशा नहीं है तो तिल डालें । इससे भी वस्तुओं पर सूक्ष्म-सूक्ष्मतम आभाओं का प्रभाव कुंठित हो जाता है । तुलसी के पत्ते डालने से भी यह लाभ मिलता है किंतु दूध या दूध से बने व्यंजनों में तिल या तुलसी न डालें ।
ग्रहण में अगर सावधानी रही तो थोड़े ही समय में बहुत पुण्यमय, सुखमय जीवन होगा । अगर असावधानी हुई तो थोड़ी ही असावधानी से बड़े दंडित हो जायेंगे, दुःखी हो जायेंगे ।
(1) भोजन करनेवाला अधोगति को जाता है ।
(2) जो नींद करता है उसको रोग जरूर पकड़ेगा, उसकी रोगप्रतिकारकता का गला घुटेगा ।
(3) जो पेशाब करता है उसके घर में दरिद्रता आती है । जो शौच जाता है उसको कृमिरोग होता है तथा कीट की योनि में जाना पड़ता है ।
(4) जो संसार-व्यवहार (सम्भोग) करते हैं उनको सूअर की योनि में जाना पड़ता है ।
(5) तेल-मालिश करने या उबटन लगाने से कुष्ठरोग होने की सम्भावना बढ़ जाती है ।
(6) ठगाई करनेवाला सर्पयोनि में जाता है । चोरी करनेवाले को दरिद्रता पकड़ लेती है ।
(7) जीव-जंतु या किसी प्राणी की हत्या करनेवाले को नारकीय योनियों में जाना पड़ता है ।
(8) पत्ते, तिनके, लकड़ी, फूल आदि न तोड़ें । दंतधावन, अभी ब्रश समझ लो, न करें ।
(9) चिंता करते हैं तो बुद्धिनाश होता है ।
(1) सूर्यग्रहण के समय रुद्राक्ष-माला धारण करने से पाप नष्ट हो जाते हैं ।
(2) मंत्रदीक्षा में मिले मंत्र का ग्रहण के समय जप करने से उसकी सिद्धि हो जाती है ।
(3) ‘‘चन्द्रग्रहण के समय किया हुआ जप लाख गुना और सूर्यग्रहण के समय किया हुआ जप 10 लाख गुना फलदायी होता है ।’’
तो स्वास्थ्य-मंत्र जप लेना, ब्रह्मचर्य का मंत्र भी सिद्ध कर लेना ।
ग्रहण के समय भगवद्-चिंतन, भगवद्-ध्यान, भगवद्-ज्ञान का लाभ ले तो वह व्यक्ति सहज में भगवद्-धाम, भगवद्-रस को पाता है ।
ग्रहण के समय किया हुआ जप, मौन, ध्यान, प्रभु-सुमिरन अनेक गुना हो जाता है । ग्रहण के बाद वस्त्रसहित स्नान करें ।’’
‘ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं वाग्वादिनि सरस्वति मम जिह्वाग्रे वद वद ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं नमः स्वाहा ।’ – इस मंत्र को बीच जीभ पर लाल चंदन से ‘ह्रीं’ मंत्र लिख दें ।
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