नई दिल्ली/लखनऊ। (Government of Uttar Pradesh gets major relief in case of assistant teacher recruitment) 69,000 सहायक शिक्षक भर्ती परीक्षा में गलत प्रश्नों के विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को बड़ी राहत दी है। शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ के फैसले को चुनौती देने वाली अभ्यर्थियों की याचिका को सुनने से ही इन्कार कर दिया है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि याचिकाकर्ता चाहें तो हाईकोर्ट जा सकते हैं। दरअसल, याचियों ने हाईकोर्ट के उस फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी जिसमें बड़ी पीठ ने एकल पीठ के फैसले पर रोक लगा दी थी।
बीते 12 जून को हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के न्यायमूर्ति पीके जायसवाल और न्यायमूर्ति डीके सिंह की डिवीजन बेंच ने सिंगल बेंच के उस फैसले पर रोक लगा दी थी जिसमें गलत प्रश्नों को यूजीसी पैनेल के समक्ष भेजने की बात कही गई थी। हाईकोर्ट की डबल बेंच की इस रोक के बाद उत्तर प्रदेश सरकार को बड़ी राहत मिली थी और उसने परिषदीय विद्यालयों में शिक्षक भर्ती की काउंसिलिंग भी शुरू करा दी थी। हालांकि, हाईकोर्ट की डबल बेंच के फैसले के खिलाफ अभ्यर्थी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे गए थे। याचिका में हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने या उसे रदद करने की मांग की गई थी।
शिक्षक भर्ती मामले में 12 जून को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एकल पीठ के 3 जून को पारित उस अंतरिम आदेश पर रोक लगा दी थी जिसमें पूरी भर्ती पर रोक लगा दी गई थी। हालांकि इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने 9 जून को 69,000 पदों में से 37,339 पदों को शिक्षामित्रों के लिए सुरक्षित रखते हुए उक्त पदों को भरने पर रोक का आदेश जारी कर दिया। 12 जून को सुनवाई के दौरान लखनऊ खंडपीठ ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा था कि 37,339 पदों को छोड़ शेष बचे पदों पर सरकार भर्ती प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए स्वतंत्र है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच की एकल पीठ ने सरकार द्वारा 8 मई, 2020 को घोषित परीक्षा परिणाम पर सवालिया निशान लगाते हुए कुछ प्रश्नों एवं उत्तर कुंजी पर भ्रम की स्थिति पाते हुए पूरी चयन प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी। डिवीजन बेंच ने परीक्षा प्राधिकरण की ओर से दिए गए तर्कों पर प्रथम दृष्टया विचार करने पर पाया कि एकल पीठ ने स्वयं कहा था कि यदि प्रश्नों व उत्तर कुंजी में किसी प्रकार की भ्रम की स्थिति हो तो ऐसे में परीक्षा कराने वाली संस्था को भ्रम का लाभ दिया जाता है, तो ऐसे में उक्त टिप्पणी के खिलाफ जाकर परीक्षा प्राधिकरण की ओर से प्रस्तुत जवाब को सही न मानकर पूरे मामले को यूजीसी को भेजने का कोई औचित्य नहीं था।
69,000 शिक्षक भर्ती के मामले में हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ से दो बार और सुप्रीम कोर्ट से एक बार यूपी सरकार को राहत मिली है। इसके पहले भर्ती के कटऑफ अंक विवाद में शासन के निर्णय पर और फिर परीक्षा संस्था के विशेषज्ञों के फैसले पर अदालत ने मुहर लगाई थी। परिषदीय स्कूलों के लिए शिक्षक चयन के लिए छह मई को सरकार को तब राहत मिली थी, जब 65 व 60 प्रतिशत के आदेश को हाईकोर्ट ने यथावत रखा था। शासन के आदेश के खिलाफ 11 जनवरी 2019 को अभ्यर्थयों ने हाईकोर्ट में याचिका की थी। हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने 45 व 40 प्रतिशत कटऑफ पर भर्ती करने का आदेश दिया था। इसके खिलाफ सरकार ने 22 मई 2019 को हाई कर्ट लखनऊ की डबल बेंच में अपील की थी जिस पर 6 मई 2020 को हाईकोर्ट ने सरकार को राहत देते हुए सिंगल बेंच के आदेश को खारिज कर दिया था।
यह विवाद शिक्षक भर्ती परीक्षा के नंबर को लेकर शुरू हुआ था। यूपी सरकार ने परीक्षा पास करने के लिए न्यूनतम अंक निर्धारित किए थे। सरकार ने रिजर्व कैटेगरी के सदस्यों के लिए कम से कम 60 प्रतिशत और अन्य श्रेणी के अभ्यर्थियों के लिए 65 प्रतिशत नंबर लाना अनिवार्य किया था।
इसी बात को लेकर कोर्ट-कचेहरी का मामला शुरू हुआ जो इलाहाबाद हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। फिलहाल, इलाहाबाद हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच का आदेश ही अंतिम आदेश है जिसके हिसाब से 69,000 में 37,000 पद शिक्षामित्रों के जगह छोड़कर बाकी पदों पर भर्ती प्रक्रिया राज्य सरकार पूरी करा सकती है।
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