Bareillylive : अलग- अलग व्यक्तियों के लिए सफलता के मायने अलग- अलग हैं। कोई धन- संपत्ति को सफलता मानता है तो कोई बड़े पद को। किसी के लिए संबंध महत्वपूर्ण हैं तो किसी के लिए संतुष्टि ही सफलता का पर्यायवाची। आप कुछ भी हों, किसी भी पद पर हों, आपके पास कितना भी पैसा और प्रभाव हो, लेकिन अगर खुशी नहीं है तो उसे सफल नहीं कहा जा सकता। ज्यादातर लोग शारीरिक रूप से हासिल भौतिक उपलब्धियों को सफलता मान लेते हैं लेकिन यह वास्तव में सफलता नहीं हैं। यह बात श्रीराम मूर्ति स्मारक कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी में बुधवार को आयोजित “सफलता क्या है और क्यों इसे कुछ लोग ही हासिल कर पाते हैं” विषय पर दिए व्याख्यान में इस्कॉन के संस्थापक आचार्य श्रील प्रभुपाद के शिष्य, इस्कॉन इंडिया यूथ काउंसिल के अध्यक्ष, उत्तरी भारत डिवीजन काउंसिल के अध्यक्ष, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और मध्य बिहार के लिए जोनल पर्यवेक्षक, इस्कॉन यूथ फोरम दिल्ली (आईवाईएफ) के निदेशक आध्यात्मिक गुरु सुंदर गोपाल प्रभु ने कही।
गुरु सुंदर गोपाल प्रभु ने इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट, मेडिकल, पैरामेडिकल, नर्सिंग और लॉ के विद्यार्थियों को सफलता के निहितार्थ बताया। उन्होंने कहा कि सफलता से पहले हमें समझना पड़ेगा कि यह है क्या। क्योंकि हर व्यक्ति के लिए सफलता अलग- अलग है। क्योंकि अगर सफलता एक ही तरह की होती तो सभी सफल हो जाते, लेकिन ऐसा है नहीं क्योंकि कुछ लोग ही सफल हैं। ज्यादातर लोग लक्ष्य निर्धारित कर उसे हासिल करते हैं, समाज इसे सफलता हासिल करना कहता है और यह सफलता का सामान्य नियम है भी। पिछले दिनों दो खबरों पर आपने भी गौर किया होगा। जिसमें एक खबर करियर में सफल एक आईएएस ने आत्महत्या की थी तो दूसरी एक सफल बिजनेसमैन के आत्महत्या की। क्या इनके पास धन-सम्पत्ति और रुतबा नहीं था। सब कुछ था इनके पास, लेकिन नहीं थी तो खुशी। सिर्फ पैसा हासिल करना, करियर में सफल होना सफलता नहीं। खुशी सबसे महत्वपूर्ण है। खुशी के लिए परिवार के साथ सकारात्मक संबंध होना जरूरी है। लेकिन ऐसी खुशी भी अस्थायी है। स्थायी खुशी शरीर या मन से नहीं मिलती। वह आत्मा से मिलती है। क्योंकि आत्मा का स्वभाव ही सत चित आनंद है। जिसने अपने जीवन का लक्ष्य तलाश लिया, स्थायी खुशी उसे मिल जाती है। जीवन का लक्ष्य तलाशने के लिए पहला सवाल होना चाहिए कि हम क्यों जी रहे हैं ? हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है ? जब ईश्वर ने अकारण कुछ भी नहीं बनाया तो हमें क्यों बनाया ? इसलिए आवश्यक है कि हम स्थायी खुशी तलाशे।
जीवित रहने के लिए कुछ कार्य करने होते हैं। ये महत्वपूर्ण होते हैं। इन्हें करना आवश्यक होता है। पढ़ाई करना, पैसा कमाना, परिवार की जरूरतें पूरी करना सब जरूरी कार्य हैं, लेकिन यह जीवन का उद्देश्य नहीं हो सकते। ध्यान रहे समाज में रहने के लिए परिवार महत्वपूर्ण है। सकारात्मक संबंध महत्वपूर्ण हैं। संबंधों की खुशी भी महत्वपूर्ण है। इसे संजोना भी जरूरी है। इसके लिए भी संतुष्ट रहना पहली शर्त है। संबंधों को सहेजने की, उन्हें सम्मान देने की कला हम सबको सीखनी चाहिए।
गुरु सुंदर गोपाल प्रभु ने सफलता, खुशी, करियर सहित विषयों पर विद्यार्थियों के सवालों के जवाब भी दिए और उनकी जिज्ञासाएं शांत कीं। इस मौके पर इस्कॉन बरेली के जीएम भीमा अर्जुनदास, एसआरएमएस ट्रस्ट के सलाहकार सुभाष मेहरा, सीईटी के प्रिंसिपल डा.प्रभाकर गुप्ता, मेडिकल कालेज के प्रिंसिपल डा.एमएस बुटोला, डा.अनुज कुमार, डा.ऋतु सिंह, सौरभ गुप्ता, डा.सत्य देव, विवेक यादव, डा.बिंदु गर्ग, डा.मनोज कुमार टांगड़ी, डा.क्रांति कुमार, साक्षी गोयल सहित सभी फैकल्टी मेंबर मौजूद रहे।