विशाल गुप्ता, बरेली। विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान बुधवार को सम्पन्न हो गया। सबकुछ शांतिपूर्वक निपट गया इसके लिए प्रशासन और चुनाव आयोग की पीठ थपथपानी चाहिए, लेकिन इस सबके बीच मतदान कर्मियों के साथ बेहद गैरजिम्मेदाराना रवैये के लिए उसे कटघरे में भी खड़ा किया जाना चाहिए। पोलिंग स्टेशन के लिए रवाना होने से लेकर ईवीएम जमा करने तक सारी सुविधाएं देने वाले प्रशासन ने मतदान कर्मियों को ईवीएम जमा होते ही ‘दूध की मक्खी‘ तरह निकाल कर फेंक दिया। सैकड़ों मतदान कर्मी परसाखेड़ा से किला तक पैदल ही सफर करने को मजबूर रहे।
बरेली लाइव को देर रात सूचना मिली कि ईवीएम जमा करने के बाद मतदान ड्यूटी में लगे कर्मचारियों को परसाखेड़ा स्थित ईवीएम डिपोजिट सेण्टर से वापसी के लिए प्रशासन ने कोई व्यवस्था नहीं की है। वे सब येन-केन-प्रकारेण अपने घर पहुंचने की जुगत में हैं। तो बरेली लाइव टीम किला होते हुए परसाखेड़ा रवाना हो गयी। रात करीब सवा बारह बज चुके थे। हमें किला-रामपुर रोड पर कीब 200 मीटर पर कुछ लोग कंधे पर बैग टांगे आते दिखायी दिये। बात करने पर उन्होंने बताया कि कोई नवाबगंज से आया है तो कोई विशारतगंज के पास से।
इन लोगों की ड्यूटी 125 कैण्ट विधानसभा क्षेत्र में लगी थी। मतदान कराने के बाद निर्धारित वाहन ने इन्हें परसाखेड़ा पर एफसीआई गोदाम में बनाये गये ईवीएम जमा केन्द्र पर छोड़ दिया। ईवीएम जमा करने की प्रक्रिया पूरी करने के बाद इन्हें इनके हाल पर छोड़ दिया गया। इन्होंने बताया कि रात होने के चलते कोई बस या निजी वाहन हमें देखकर वाहन नहीं रोक रहा है। कुछ को कुछ ट्रक वालों ने बैठाया तो सीबीगंज के पास छोड़ दिया। वे वहां से पैदल आ रहे हैं।
इसके बाद हम कुछ और आगे बढ़े तो कुछ और लोग कंधों पर बैग लादे दिखायी दिये। इनमें एक नवाबगंज के किसी गांव से थे तो दूसरे फरीदपुर क्षेत्र से। इनकी भी वही तकलीफ कि प्रशासन ने ईवीएम जमा कराने के बाद कर्मचारियों को उनके हाल पर छोड़ दिया। इसी तरह कुछ लोग आंवला से आये थे तो कुछ लोग बहेड़ी से। सभी का एक सा हाल था।
इन लोगों ने बताया कि पिछले विधान सभा चुनाव में भी ड्यूटी लगती रही है, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है। पहले ट्रांसपोर्टनगर में केन्द्र बनता था। वहां ईवीएम जमा करने के बाद प्रशासन बस द्वारा सेटेलाइट बस स्टैण्ड तक कर्मचारियों को छुड़वाता था। वहां से भी सिर्फ अपना चुनाव ड्यूटी का आई कार्ड दिखाने पर किसी भी बाहन में बैठने की छूट थी। इस बार तो ऐसा सौतेला व्यवहार किया है कि ‘मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं‘ जैसी कहावत सटीक बैठती है।
ऐसे ही पड़ताल करते-करते हम परसाखेड़ा तक जा पहुंचे। वहां बड़ी संख्या में लोग जमा थे। साथ ही पुलिस कर्मी सड़क पर गुजरने वाले निजी एवं व्यावसायिक वाहनों को रोककर कर्मचारियों की कुछ सहायता का प्रयास कर रहे थे। लेकिन सवाल ये कि इतने बड़े काम के बाद कर्मचारियों से ऐसे सुलूक कहां तक जायज है?
अंत में केन्द्र तक पहुंचे तो राहत महसूस हुई कि एक जीप से पुलिस कर्मी बरेली जाने वाली एक बस का ऐलान करते हुए लोगों से उसमें बैठने को कह रहे थे। एक बस और सैकड़ों कर्मचारी। यहां 70-80 लोग बस में ठुंसने के बाद भी जब लोग बच रहे तो फिर वे अपने हाल को रोने लगे। कुछ ने अपने परिचितों को फोन करके बुलाया हुआ था तो कुछ किसी के सहारे निकले। शेष बचे लोगों की नियति पैदल चलना ही थी।
यहां बता दें कि जिले में मतदान के लिए 3239 पोलिंग बूथ बनाये गये थे। इनमें करीब 16 हजार कर्मचारियों की ड्यूटी लगायी गयी थी। ये हजारों कर्मचारी किस तरह रात में घर पहुंचते, एक समस्या बन गयी। इसी के चलते सैकड़ों ने वहीं एफसीआई गोदाम में बिछी दरियों पर ही लेटकर रात काटी तो कुछ को पुलिस कर्मियों से सहयोग से वाहन मिल सके। शेष बचे अपने भाग्य को कोसते हुए किला तक पैदल ही पहुंचे।
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