बरेली, (विशाल गुप्ता)। रोहिंग्या मुसलमानों के बहाने आज बरेली सड़कों में जुमे की नमाज के बाद मुस्लिमों का रेला उमड़ पड़ा। म्यांमार के मुसलमानों पर हो रहे कथित जुल्म का विरोध मौलाना तौकीर रज़ा खां की इत्तेहाद-ए-मिल्लत कौंसिल को संजीवनी दे गया। बहुत दिनों से हाशिये पर पड़े मौलाना तौकीर के पास शक्ति प्रदर्शन का कोई मुद्दा नहीं मिल पा रहा था।
उनकी पार्टी इत्तेहाद ए मिल्लत कौंसिल राजनीतिक रूप से न तो विधानसभा चुनाव और न ही उससे पूर्व लोकसभा चुनाव में कुछ खास कर सकी थी। बीते कई चुनावों में उनके प्रत्याशी वोट कटवा का काम करते थे, इन दो चुनावों में मोदी लहर के चलते वह भी नहीं हो सका। एक बार उनकी पार्टी से विधायक बने शहजिल इस्लाम के आईएमसी छोड़ने के बाद कोई विधायक का दावेदार तक नहीं बना सकी उनकी पार्टी। धीरे-धीरे वह हाशिये पर जाती चली गयी। मौलाना की छवि की रही सही कसर पूरी कर दी पिछले दिनों हुए उनके पारिवारिक विवादों ने। जहां कई बार अनेक मुद्दों पर तलवारें खिंची दिखायी दीं।
अब जबकि स्थानीय निकाय चुनाव की चर्चा होने लगी है और 2019 के शुरू में ही लोकसभा चुनाव भी होने हैं तो मौलाना तौकीर को शक्ति प्रदर्शन का एक मौका जरूरी था। वह मौका उन्हें रोहिंग्या मुसलमानों ने दे दिया। उनके इस प्रदर्शन से म्यांमार के रोहिंग्याओं का कुछ भला हो या नहीं लेकिन आईएमसी को संजीवनी जरूर मिल गयी। मौलाना के एक आहवान से लाखों मुसलमान जिस तरह अपनी चिन्ता छोड़कर सिर्फ म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों पर हो रहे जुल्म के नाम पर इस्लामिया कॉलेज के मैदान में एकत्र हो गया, उसने मौलाना को अंदर से जरूर खुश कर दिया होगा।
यहां खास बात यह कि अपनी तकरीर में मौलाना तौकीर ने खुद इस बात पर हैरत जतायी कि क्यों इस्लामी देश और संयुक्त राष्ट्र रोहिंग्या मुसलमानों के मामले में मौन हैं? क्यों कोई मुस्लिम देश उन्हें शरण नहीं दे रहा है? यहां गौरतलब यह भी है कि म्यांमार में ऐसे हालात क्यों और किसने पैदा किये? क्यों शांति के पुजारी बौद्धों को हथियार उठाने को मजबूर होना पड़ा? उस वक्त मौलाना तौकीर या मुसलमानों का हुजूम क्यों नहीं उमड़ा जब रोहिंग्या छापामार बौद्धों पर जुल्म कर रहे थे। क्यों वहां की सरकार को इस कदर सख्त होना पड़ा? बेहतर होता कि मौलाना अपनी तकरीर में एक बार इन सवालों के जवाब भी देते?
लेकिन वे ऐसे सवाल उठाते तो क़ौम के नेता नहीं माने जाते? वह राजनीति तो भारत में करते हैं लेकिन नेता पूरी कौम के हैं! वैसे भी मौलाना और उनके सलाहकार यह जानते हैं कि उनके यहां प्रदर्शन से न तो म्यांमार में कोई परिवर्तन होने वाला है और न रोहिंग्याओं को कोई राहत मिलने वाली है। इस प्रदर्शन से उन्हें जो चाहिए था मिल गया। एक बार फिर वह अपनी ताकत सियासी रहनुमाओं को दिखाने में कामयाब हो गये। अब उन्हें इंतजार होगा चुनावों की घोषणा का!