एस्ट्रो डेस्क @BareillyLive. वैशाख शुक्ल तृतीया तिथि को “अक्षय तृतीया“ की संज्ञा दी गई है। यह पर्व पूर्वाह्न व्यापिनी में मनाया जाता है अथार्त 3 मुहूर्त से 6 मुहर्त के मध्य। बालाजी ज्योतिष अनुसंधान संस्थान के ज्योतिषाचार्य पं राजीव शर्मा के अनुसार इस बार दिनाँक 22 अप्रैल 2023, शनिवार को प्रातः 7ः50 बज़े से तृतीया तिथि लगेगी जोकि अगले दिन रविवार को प्रातः 7ः48 बज़े तक रहेगी। कृतिका नक्षत्र सूर्योदय से रात्रि तक रहेगा तत्पश्चात रोहिणी नक्षत्र प्रारम्भ होग़ा, आयुष्मान योग प्रातः 9ः25 बज़े तक ततपश्चात शुभ सौभाग्य योग लगेगा जोकि अगले दिन रविवार तक रहेगा। इस दिन त्रिगुणित शुभ फल देने वाला “त्रिपुष्कर“योग भी सूर्योदय से 7ः50 बज़े तक रहेगा।इस दिन वृष का चंद्र होग़ास शास्त्रोक्त मध्यन्ह काल 12ः17 बज़े से सांय 5ः05 बज़े तक तीन शुभ “चर,लाभ,अमृत “ के चौघड़िया मुहूर्त भी रहेंगे। इस दिन प्रातःकालीन स्थिर लग्न वृष 6ः44 बज़े से 8ः41बज़े तक रहेगी, अभिजित मुहूर्त पूर्वहन 11ः30 बज़े से अपराह्न 12ः15 बज़े तक रहेगा।
वैशाख शुक्ल तृतीया जिस दिन पूर्वहन व्यपिनी होगी उसी दिन यह पर्व एवं व्रत मनाया जाता है। यदि तृतीया तिथि दोनों दिन पूर्वांहन व्यपिनी हों तो तीन मुहूर्त से अधिक व्याप्ति की स्तिथि में चतुर्थी तिथि युता लें परन्तु यदि पहले दिन कम हों तो पहले दिन ही मनाया जाना चाहिए। अतः 22 अप्रैल 2023, शनिवार को तृतीया तिथि प्रातः 7ः50 बज़े बाद “पूर्वहन, माध्यन्ह एवं अपराह्न व्यापिनी होने से स्नान, दान, जप, होम आदि के लिए प्रशस्त रहेगी। यधपी 23 अप्रैल रविवार को तृतीया आंशिक रूप से प्रातः काल 7ः48बज़े तक स्नान दानादि कार्यों के लिए शुभ रहेगी।
मान्यता है कि इस दिन किया गया कोई भी धार्मिक कार्य अक्षय होता है, उसका फल कभी भी समाप्त नहीं होता। भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि से युगादि तिथियों का प्रारंभ हुआ था, इसलिए इसका धार्मिक महत्व है।ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का अविर्भाव भी इसी दिन हुआ था। मुहूर्त ज्योतिष में इस दिन को “अबूझ मुहूर्त“ के रूप में मान्यता प्राप्त है। ’इस दिन तिल सहित कुशों से पितरों का जलदान करने से पित्तीश्वरों की अनंत काल तक तृप्ति होती है। इस दिन मूंग एवं चावल की खिचड़ी बिना नमक डाले बनाई जाती है।
’खाता पूजन प्रथम मुहर्तः- प्रातः कालीन स्थिर वृष लग्न 6ः44 बज़े से प्रातः काल 8ः41 बज़े तक रहेगीस इस मुहूर्त में सूर्य उच्च का होकर व्यय भाव में जोकि शुभप्रद रहेगा
दूसरा खाता पूजन मुहूर्तः– इस मुहूर्त में स्थिर लग्न सिंह अपराह्न 12ः32 बजे से अपराह्न 2ः46 बजे तक रहेगी।इस मुहूर्त में अमृत का चौघड़िया मुहूर्त रहेगा।इसमें गणेश,महालक्ष्मी,कुबेर,इन्द्रादि का पूजन करके खाता पूजन करना श्रेष्ठ रहेगा।
चर -लाभ-अमृत की सँयुक्त बेला मुहूर्तः-माध्यन्ह काल 12ः17 बजे से सांय 5ः15 बजे तक, शुभ की बेला प्रातः 7ः33 बज़े से रहेगी।
पुराणों के अनुसार इसी दिन से सतयुग एवं त्रेतायुग का आरम्भ हुआ था। विष्णु धर्मोतर पुराण में कहा गया है कि जो व्यक्ति एक भी अक्षय तृतीया के व्रत कर लेता है, वह सब तीर्थों का फल प्राप्त पा जाता है। भगवान श्री कृष्ण का कथन है कि अक्षय तृतीया के दिन स्नान,जप,तप, होम,स्वध्याय,पित्र, तर्पण और दान जो कुछ भी किया जाता है, वह सब अक्षय हो जाता है।इसलिए इस तिथि को “अक्षय तृतीया“ के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार बहुत से शुभ व पूजनीय कार्य इसी दिन आरम्भ किये जाते हैं जिनसे सुख,समृद्वि और सफलता की प्राप्ति होती है।
इसलिए नये व्यवसाय, भूमि का क्रय,भवन,संस्था का उदघाट्न, विवाह,हवन आदि इस तिथि को किये जाते हैं।जो मनुष्य इस दिन गंगा स्नान करता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है।भगवान परशुराम का अवतरण भी इसी दिन होने के कारण उनकी जयंती भी इसी दिन मनाई जाती है।यदि ये व्रत सोमवार, रोहिणी, कृतिका नक्षत्र से युक्त हो, तो अधिक फलदायक माना जाता है। भगवान बद्रीनाथ धाम के पट(द्वार) भी इसी दिन खुलते हैं।
यह व्रत वैशाख मास के शुक्लपक्ष की तृतीया को रखा जाता है।इस दिन उपवास करके भगवान विष्णु, लक्ष्मी,श्रीकृष्ण(वासुदेव) का पूजन किया जाता है।व्रती को इस दिन प्रातः कालीन कर्मो से निवृत्त होकर स्नान करना चाहिए।विधि-विधानानुसार भगवान का पूजन तुलसीदल चढ़ाकर धूप-दीप,अक्षत,पुष्प आदि से करने के पश्चात भीगे हुए चने की दाल का भोग लगाएं।इसमें मिश्री और तुलसीदल भी मिला लें।फिर भक्तों में प्रसाद वितरित करें।भगवान की प्रिय वस्तुओं का दान अवश्य करें। इस दिन जौ के दान और सेवन का भी विधान है।
प्राचीन काल में किसी नगर में महोदय नामक एक बनिया रहता था, जो सत्यवादी,देव एवं ब्राह्मणों का पूजक तथा सदाचारी था।वह प्रायः दुखी और चिंतित रहा करता था क्योंकि उसका परिवार बहुत बड़ा और आमदनी कम थी। एक दिन उसने रोहिणी नक्षत्र में वैशाख शुक्ल पक्ष में तृतीया के माहात्म्य सुना कि इस तिथि को जो कुछ भी दान किया जाता है, उसका फल अक्षय होता है यह जानकर उसने गंगा स्नान किया और पितृ एवं देवताओं का तर्पण किया फिर घर आकर देवी-देवताओं का विधिवत पूजन किया।
ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा के रूप में जौ, गेहूं, घड़ा, पंखा, सोना शक्ति अनुसार शुद्ध मन से प्रदान किये। यद्यपि उसकी पत्नी ने दान का विरोध भी किया, लेकिन वह धर्म-कर्म से विमुख न हुआ। परिणाम यह हुआ की वह दूसरे जन्म में कुशावती पुरी नामक नगर का राजा बना और धन सम्पन्न हुआ। उसने सम्पन्नता के बल पर बड़े-बड़े यज्ञ पूरे किए, गौ दान, स्वर्ण दान दिए। अपनी इच्छानुसार भोगों को भोगा। अनेक दीन-दुखियों को धन देकर सन्तुष्ट किया, फिर भी उसका धन कभी समाप्त नहीं हुआ, क्योंकि उसके पास का धन अक्षय भंडार था। अक्षय तृतीया को श्रद्धा पूर्वक दान का ही यह सब फल था। इसीलिये हिंदुओं में इस व्रत का बड़ा माहात्म्य है।
विशेषः- यह पर्व दान प्रधान है। अतः इस दिन स्वर्गीय आत्माओं की प्रसन्नता के लिए कलश, पंखा, छाता, चावल, दाल, नमक, घी, चीनी, साग, इमली, फल,वस्त्र, सत्तू, ककड़ी, खरबूजा और दक्षिणा आदि का दान करना चाहिए।
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को गौरी व्रत की समाप्ति होती है। इसलिए यह पूजा भी वैशाख शुक्ल तृतीया को ही की जाती है। इस दिन श्रद्धा और विश्वास से पार्वतीजी का पूजन करना चाहिए तथा धातु या मिट्टी के कलश में जल, फल, पुष्प, गंध, तिल व अन्न भरकर निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिएः-
एष धर्मघटो दत्तो ब्रह्मविष्णुशिवात्मकः।
अस्य प्रदानातस्कल मम संतु मनोरथः।।
इससे जीवन मे सुख-शांति व सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
विशेषः- इस बार अपने अपने घरों पर 5 घी के दिये (दीप दान) दान अवश्य करें।
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