बरेली @BareillyLive. महाभारत काल से भी प्राचीन संस्कृति को अपनी गोद में समेटे अपना बरेली शहर उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी घोषित होना चाहिए। अगर बरेली की सांस्कृतिक पहचान की बात करें तो बरेली रामनगर में महाभारत कालीन पांचाल की धरोहर को सहेजे हुए है। साथ ही जैन पंथ के तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की तपस्थली हो या यक्ष प्रश्न वाली लीलौर झील हो, बरेली की पहचान उसकी संस्कृति ही है। अगर बरेली की तारीफ में लिखें तो यह नाथ नगरी बरेली है, आला हजरत की सरजमीं है बरेली, पंडित राधेश्याम कथावाचक की जन्म और कर्मस्थली है बरेली। साहित्य में निरंकार देव सेवक और किशन सरोज की बरेली, झुमके वाली बरेली, सुरमा और बेंत वाली बरेली से लेकर प्रियंका चोपड़ा और दिशा पाटनी की बरेली…. और न जाने कितनी खूबियों को अपने अंक में समेटे हुए अपना बरेली शहर आज स्मार्ट सिटी बन रहा है। ऐसे में यह बरेली शहर प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी बनने की सारी योग्यता रखता है। मेरा ही नहीं हर बरेलीवासी का सपना है कि अपना बरेली शहर उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी बनें। यह कहना है गंगाचरण अस्पताल के निदेशक और भाजपा नेता डॉ. प्रमेन्द्र माहेश्वरी का। बरेली लाइव के विशेष संवाददाता विशाल गुप्ता ‘अजमेरा’ से बातचीत के दौरान डॉ. प्रमेन्द्र माहेश्वरी ने बरेली शहर की दिशा और दशा पर विस्तार से चर्चा की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश :-
प्रश्न – आप बरेली की स्थिति को लेकर सोशल मीडिया पर बहुत सक्रिय रहते हैं, क्या है आपके मन में बरेली को लेकर?
डॉ. प्रमेन्द्र : विशाल भाई, बरेली मेरी कर्मस्थली है। जब मैं बरेली आया। शुरू में यहां गंगाचरण अस्पताल में शहर के विभिन्न इलाकों से आने वाले मरीजों से बातचीत में शहर के बारे में पता चलता था। अब शहर के लोग मुझे जानते हैं और मैं उन्हें और शहर के हालात को बेहतर समझता हूं। बीते करीब ढाई दशक में शहर को जितनी तरक्की करनी चाहिए थी, वह नहीं हुई। जहां तक मेरे सक्रिय रहने की बात है तो सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफार्म है जिसका उपयोग यदि जनहित में किया जाये तो क्रान्तिकारी परिवर्तन हो सकते हैं। अन्ना आन्दोलन इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। मैं शहर में गंदगी को लेकर बहुत चिन्तित हूं। प्रधानमंत्री मोदी से लेकर मुख्यमंत्री योगी तक सभी स्वच्छता पर जोर दे रहे हैं। आप सभी बरेलियन्स की तरह मैं भी इस शहर को साफ-सुथरा और स्मार्ट देखना चाहता हूं।
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प्रश्न – आपके सपनों का बरेली कैसा होना चाहिए?
डॉ. प्रमेन्द्र : विशाल भाई! सिटी ऑफ ड्रीम की बात है तो शहर में नागरिकों के लिए जीवन शैली सहज होनी चाहिए। साफ-सफाई हो, जाम और अतिक्रमण से मुक्त शहर, शान्त और सौहार्द्रपूर्ण वातावरण वाला शहर। देखिए, हर शहर का एक मिजाज होता है, जो कि लोगों के मूड और कल्चर पर निर्भर करता है। जैसे मुम्बई देश की आर्थिक राजधानी है और दिल्ली देश की राजधानी। ऐसे ही यूपी की बात करें तो लखनऊ प्रदेश की राजधानी है। इसी तरह बरेली सूबे की सांस्कृतिक राजधानी होने की सारी योग्यताएं रखता है। बरेली का प्राचीन इतिहास 5000 साल से भी ज्यादा पुराना है। पांचाल से लेकर रुहेलों तक विभिन्न संस्कृतियां यहां पनपी और फली-फूलीं। आजादी की लड़ाई में बरेली का योगदान किसी से छिपा नहीं है।
इसके अलावा बरेली में सुर्में और झुमके की लोकप्रियता जगजाहिर है। अब तो बरेली में झुमका चौराहा भी बन गया है। प्रियंका चोपड़ा, दिशा पाटनी, पारस अरोड़ा सरीखे अनेक कलाकारों ने आधुनिक सांस्कृतिक जगत में बरेली को नयी पहचान दी है। तो जड़ों में पंडित राधेश्याम कथावाचक, निरंकार देव सेवक और हजारों साल पुरानी नाथ परम्परा से समृद्ध है यह शहर। इसके अलावा आला हजरत के दीन की रोशनी तो खानकाहे नियाजिया के सूफी संगीत के इल्म से रोशन है बरेली। इसके अलावा स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय स्तर से नियमित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम से सांस्कृतिक राजधानी के रूप में स्थापित करने को काफी है। बस, इसके लिए जरूरत है एक आन्दोलन की।
प्रश्न- नगर निगम प्रशासन के बीते पांच साल को आप किस तरह देखते हैं?
डॉ. प्रमेन्द्र : किसी भी शहर की पहचान उनके नागरिकों से होती है। जब हम अपने घरों को साफ रखते हैं तो गली, मोहल्ला, कालोनी और शहर को क्यों नहीं रख सकते? क्यों लोग घरों का कूड़ा सड़कों पर डालते हैं? हर सड़क पर अतिक्रमण करते हैं शहरी। इससे जाम लगता है। नगर निगम प्रशासन की जिम्मेदारी है ऐसे लोगों पर नकेल कसना, व्यवस्था बनाना, शहर को अतिक्रमण से मुक्त कराना, बिजली, सड़क और पानी की व्यवस्था करना। लोगों का काम है व्यवस्था में सहयोग करना जैसे-बिजली चोरी न करें, हाउस एवं वाटर टैक्स समय पर दें आदि। किसी एक की कमी से लक्ष्य को नहीं पाया जा सकता। हालांकि पिछले दिनों विकास कार्य बहुत हुए, लेकिन उनकी जिस तरह प्लानिंग की गयी, वह और बेहतर हो सकती थी।
प्रश्न – आपके अनुसार शहर में और क्या समस्याएं हैं?
डॉ. प्रमेन्द्र : शहर की आबादी दिनों दिन बढ़ रही है। ऐसे में ट्रैफिक का लोड भी सड़कों पर बढ़ रहा है। ऐसे में ट्रैफिक को व्यवस्थित करके चलाना प्रशासन का काम है। फिलहाल पार्किंग, खराब सड़कें, पार्कों की कमी, अतिक्रमण, गंदगी, सार्वजनिक सुलभ शौचालयों और यूरेनल्स की कमी शहर की मुख्य समस्याएं मुझे लगती हैं। सरकार का जोर शहर को ओडीएफ करना यानि खुले में शौच से मुक्त करना, लेकिन इसके लिए सुविधाएं मुहैया कराना तो नगर निगम का काम है।
गरीबी स्वयं में एक बड़ी समस्या है। हमने अपनी संस्था विजन रुहेलखण्ड के माध्यम से रोटी बैंक की स्थापना की है। इसके माध्यम से शहर के लोग दो-दो रोटी रोजाना बैंक में जमा करते हैं, जिन्हें संस्था के वॉलिण्टियर्स जरूरतमंदों तक पहुंचाते हैं।
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प्रश्न – आप स्वयं मेयर पद के टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं। यदि मेयर बने तो शहर की सूरत कैसे बदलेंगे?
डॉ. प्रमेन्द्र : लोग अपने प्रतिनिधियों को चुनकर मेयर बनाते हैं। विधायक और सांसद चुनकर विधानसभा और संसद भेजते हैं। इसके बाद जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी बनती है कि वे शहर में विकास करायें। अगर विकास की बात करें तो बरेली के युवाओं को पढ़ाई के बाद नौकरी के लिए बाहर जाना पड़ता है। हैदराबाद, बंगलौर, नोएडा, गुड़गांव में बरेली के हजारों युवा नौकरियां खोजते हैं, करते हैं। अब यहां एयरपोर्ट भी है, उद्योग लगाने के लिए भी केन्द्र और प्रदेश सरकार ने अनुकूल वातावरण बनाया है। जरूरत है विकसित बरेली के संकल्प की। जहां स्वच्छ हवा हो, स्वस्थ पर्यावरण हो, स्वच्छता हो। नगर निगम और मेयर का मुख्य कार्य है लोगों के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए कार्य करे। इसके लिए मेरा संकल्प अच्छी मात्रा में ऑक्सीजन देने वाले वृक्षों के पौधों का रोपण कराना और कूड़े से निजात दिलाने के लिए सॉलिड वेस्ट मैनेजमेण्ट प्लाण्ट को शुरू कराना।
शुद्ध पर्यावरण से स्वच्छ हवा, स्वच्छ हवा से अच्छा स्वास्थ्य मिलता है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। स्वस्थ मस्तिष्क से अच्छे विचार और स्वस्थ, सभ्य समाज का निर्माण करने में सहायता मिलती है।
बाकी शहर की गलियां, जलनिकास, पथ प्रकाश की समुचित व्यवस्था करना तो नगर निगम की बेसिक जिम्मेदारी है ही।
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