बरेली। बरेली केद्रीय कारागार में शहीद हुए क्रांतिकारी प्रताप सिंह बारहठ के 103वें बलिदान दिवस पर मानव सेवा क्लब द्वारा एक वेबिनार का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता शिक्षाविद प्रो.एनएल शर्मा ने की। वरिष्ठ पत्रकार निर्भय सक्सेना ने कहा कि बारहठ की कई पीढ़ियों ने देश की आजादी की लड़ाई बड़ी वीरता के साथ लड़ी। उनका जन्म राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के शाहपुरा के पास देवपुरा गांव में 24 मई 1893 को हुआ था। वे क्रांतिवीर  केसरी सिंह बारहठ के पुत्र थे। मात्र 25 वर्ष की उम्र में उन्होंने वह कर दिखाया जो लोग पूरी जिंदगी में नहीं कर पाते हैं।

साहित्य भूषण सुरेश बाबू मिश्रा ने कहा कि प्रताप सिंह बारहठ जंगे आजादी के अमर क्रांतिकारी थे। क्रांति का यह जज्बा उन्हें विरासत में मिला था। उनके पिता केसरी सिंह एक प्रखर क्रांतिकारी थे और जेल में बंद थे। उन्हें तत्कालीन वायसराय लार्ड हार्डिंग पर बम फेंकने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इसी मामले में वह बरेली सेंट्रल जेल में बंद।अंग्रेज अधिकारियों ने उनसे अन्य क्रांतिकारियों के नाम-पते पूछने के लिए तरह-तरह की यातनाएं दीं मगर वह झुके नहीं। अंत में 25 मई को भारत माता की स्वतंत्रता की आस मन में लिये हुए शहीद हो गए। वह मरकर भी अमर हैं। वेबिनार की अध्यक्षता करते हुए प्रो. एनएल  शर्मा ने बताया कि राजेंद्र नगर की पीडब्ल्यूडी कॉलोनी के पास स्थित पार्क में मानव सेवा क्लब और इतिहासकार सुधीर विद्यार्थी के अथक प्रयास से प्रताप सिंह बारहठ की प्रतिमा की स्थापना की गई। आजादी की लड़ाई में बारहठ के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।

वेबिनार का संचालन करते हुए मानव सेवा क्लब के अध्यक्ष सुरेन्द्र बीनू सिन्हा ने बताया कि प्रताप सिंह बनारस कांडके संदर्भ में गिरफ्तार किया गया था और सन् 1916 में 5 वर्ष की सजा सुनाई गई थी। बरेली के केंद्रीय कारागार में उन्हें अमानवीय यातनाएं दी गई ताकि उनके सहयोगियों का नाम पता किया जा सके किंतु उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया। जेल में चार्ल्स क्लीवलैंड ने इन्हें घोर यातनाएं दीं और कहा, “तुम्हारी मां रोती है” तो इस वीर ने जबाब दिया, “मैं अपनी मां को चुप कराने के लिए हजारों मांओं को नहीं रुला सकता।” कठोर यातनाओं की वजह से वह 24 मई 1918 को जेल में ही शहीद हो गए।

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