बरेली @BareillyLive. बरेली की दरगाह शाह शराफत मियां के सज्जादानशीन सकलैन मियां को आज सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया। सकलैन मियां का निधन शुक्रवार को हो गया था। आज रविवार को उनके जनाजे की नमाज इस्लामिया मैदान में अदा की गयी। सुबह उनकी अंतिम यात्रा में उनके पार्थिव शरीर को एक वाहन के जरिये दरगाह शाह शराफत मियां से इस्लामिया मैदान लाया गया। इस दौरान उनके मुरीदों का जनसैलाब उमड़ पड़ा। लोग रास्ते भर उनकी अंतिम यात्रा में पैदल चलते रहे।
नमाज-ए-जनाजा
मियां हुजूर के जनाजे का आखिरी दीदार कर घरों की छतों पर खड़ी महिलाएं रोने लगीं। रास्ते भर हर कोई गमगीन नजर आया। इस बीच सकलैन मियां का पार्थिव शरीर पहुंचने से पहले ही इस्लामिया मैदान पूरा भर चुका था। सुबह करीब 10ः45 बजे जनाजे की नमाज सकलैन मियां के जानशीन अलहाज गाजी सकलैनी ने अदा कराई।
आस्ताने में पीरो मुर्शिद सकलैन मियां सुपुर्द-ए-खाक
इस्लामिया मैदान भरा होने के कारण नवल्टी चौराहा, नौमहला, राजकीय इंटर कॉलेज, जिला पंचायत रोड, कुतुबखाना तक लोग कतार बनाकर खड़े हो गए और नमाज अदा की। इसके बाद जनाजे को वापस आस्ताने लाया गया। आस्ताने के अंदर शराफत मियां की मजार के ठीक बराबर में पीरो मुर्शिद सकलैन मियां को सुपुर्दे खाक किया गया।
अंतिम दर्शन को दूर-दूर से पहुंचे मुरीद
बताते चलें कि दरगाह शाह शराफत मियां के सज्जादानशीन सकलैन मियां की शुक्रवार शाम को अचानक तबीयत बिगड़ गई थी। इसके बाद उन्हें एक निजी अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। वहीं सकलैन मियां के इंतकाल की खबर मिलते ही बड़ी संख्या में मुरीद उनके अंतिम दर्शन के लिए पहुंचने लगे।
अजीम शख्सियत थे शाह सकलैन मियां
नक्शबंदिया सिलसिले के बुजुर्ग शाह सकलैन मियां की शख्सियत क्या थी इसका अंदाजा उनके साथ चलने वाले मुरीदों के सैलाब को देखकर लगाया जा सकता था। हर कोई मियां हुजूर का आखिरी दीदार करना चाहता था। उनके जीवन के दौरान भी मुरीदों की नजर उनकी नूरानी चेहरे से नहीं हटती थीं। अदब और एहतराम का आलम यह था कि सकलैन मियां के मुरीद उन्हें मियां हुजूर कहकर पुकारते थे।
मौलाना मुफ्ती फहीम सकलैनी अजहरी की लिखी किताब तजकिरा-ए-मशाइखे कादिरिया मुजद्दिदिया शाफतिया के मुताबिक मियां नक्शबंदिया सिलसिले के ही बुजुर्ग शाह बशीर मियां मोहल्ला गुलाबनगर में रहते थे। उन्होंने मियां हुजूर के दादा शाह शराफत अली मियां को बुलाया और अपने सिर पर बंधी दस्तार उतारकर उनकी तरफ बढ़ाई और कहा आपके घर पोता होने वाला है। घर जाएं और इस दस्तार का कुर्ता बनवाकर पोते को पहनाएं, जिसके बाद वह बरेली से ककराला पहुंचे। 13 मार्च 1947 को सकलैन मियां का जन्म हुआ। उनकी मां हज्जन सिद्दीका खातून ने इस्लामी और रूहानी माहौल में सकलैन मियां का पालन-पोषण किया। प्रारम्भिक शिक्षा उन्होंने अपने पिता सूफी शाह शुजाअत अली मियां से हासिल की। चार साल की उम्र में शराफत मियां सकलैन मियां को ककराला से बरेली ले आए।
वर्ष 1964 में शराफत मियां ने सकलैन मियां को खिलाफत से नवाजा। 1969 में शराफत मियां के विसाल के बाद 22 साल की कम उम्र में दरगाह शाह शराफतिया के सज्जादानशीन बने। तबसे लेकर अब तक 54 साल तक सकलैन मियां ने नक्शबंदिया सिलसिले की रवायतों को न सिर्फ आगे बढ़ाया बल्कि खिदमत-ए-खल्क को अंजाम देते रहे। उनके एक बेटे गाजी मियां हैं।
अमीर-गरीब में नहीं करते थे भेद
सकलैन मियां गरीब अमीर से बिना भेद-भाव के आस्ताने पर मिलते थे। उन्होंने तमाम गरीब लड़कियों की शादी करायी। उनकी सरपरस्ती में कई दर्जन संस्थान, मदरसे चल रहे थे। हजरत शाह सकलैन एकेडमी के अलावा कई तंजीमें समाज और कौम के लिए नेक काम कर रही हैं।
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