पाप दोषमुक्ति, विद्या, ज्ञान और कलाओं में दक्षता के लिए “अबूझ मुहूर्त“ के शिव एवं सिद्ध योग में करें पूजन
BareillyLive.बसन्त पंचमी इस बार गुरुवार 26 जनवरी को है। इस दिन “गज-केशरी योग“ का भी अति शुभ योग रहेगा, जो प्रत्येक कार्य के लिए शुभ रहता है। बसन्त पंचमी माघ मास के शुक्लपक्ष की पंचमी को कहते हैं। बालाजी ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य पं राजीव शर्मा के अनुसार इस बार बसन्त पंचमी दिनाँक 26 जनवरी 2023, गुरुवार को मनाई जाएगी। इस दिन गणतंत्र दिवस भी है। शास्त्रों के अनुसार बसंत पंचमी माघ शुक्ल पक्ष पंचमी के दिन पूर्वाह्न व्यापिनी में मनाई जाती है। यदि दो दिन पूर्वाह्न व्यापिनी या किसी भी दिन पूर्वाह्न व्यापिनी न हो, तो बसंत पंचमी पहले ही मनाने का विधान है।
26 जनवरी को पंचमी तिथि उदया तिथि में होगी। इस दिन पंचक पूरे दिन रहेगी। इस दिन शिव एवं सिद्ध योग के साथ शुभ “गज-केशरी“ योग भी रहेगा। इसमें पूजा-पाठ के पूर्ण शुभ फल की प्राप्ति होगी। इस दिन अबूझ स्वयंसिद्ध मुहूर्त एवं शुभ योग होने के कारण सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होगी।
बसन्त पंचमी का महात्म्यः-
यह दिवस बसंत ऋतु के आगमन का प्रथम दिन माना जाता है। धार्मिक ग्रंथों में बसंत को ऋतुराज माना जाता है। बसंत पंचमी बसंत ऋतु का एक प्रमुख त्यौहार है। इस प्रकार बसंत पंचमी का त्यौहार मानव मात्र के हृदय के आनंद और खुशी का प्रतीक कहा जाता है। बसंत ऋतु में जहां पृथ्वी का सौंदर्य निखर उठता है,वहीं उसकी अनुपम छटा देखते ही बनती है।
होली का आरम्भ भी बसंत पंचमी से ही होता है क्योंकि इस दिन प्रथम बार गुलाल उड़ाई जाती है। इसी दिन फाग उड़ाना आरम्भ करते हैं, जिसका अंत फाल्गुन की पूर्णिमा को होता है। भगवान श्रीकृष्ण इस त्योहार के अधिदेवता हैं, इसलिए ब्रज प्रदेश में राधा तथा कृष्ण का आनंद-विनोद बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इसी दिन किसान अपने नए अन्न में घी, गुड़ मिलाकर अग्नि तथा पितरों को तर्पण करते हैं।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के कथनानुसार भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन देवी सरस्वती पर प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था। इसलिए विद्यार्थियों तथा शिक्षा प्रेमियों के लिए यह माँ सरस्वती के पूजन का महान पर्व है। चरक सहिंता के अनुसार इस ऋतु में स्त्री-रमण तथा वन विहार करना चाहिए। कामदेव बसंत के अनन्य सहचर हैं। अतएव कामदेव व रति की भी इस तिथि को पूजा करने का विधान है।
ऐसे करें बसन्त पंचमी पर पूजनः
पूजन विधिः- ज्योतिषाचार्य पं राजीव शर्मा बताते हैं कि इस दिन नैमित्तिक कार्य करके शरीर पर तेल से मालिश करें, स्नान के बाद आभूषण धारण कर पीले वस्त्र धारण करें। इस दिन सरस्वती पूजन के लिए एक दिन पूर्व नियम पूर्वक रहें फिर दूसरे दिन कलश की स्थापना करके गणेश, सूर्य,विष्णु तथा शंकर की पूजा करके बाद में देवी सरस्वती की पूजा करें। इस दिन ’ब्राह्मणों को पीले चावल, पीले वस्त्र दान करने पर विशेष फल की प्राप्ति होती है। मधु-माधव शब्द मधु से बने हैं और मधु का तात्पर्य है एक विशिष्ट रस जो जड़-चेतन को उन्मत्त करता है। जिस ऋतु से उस रस की उत्पत्ति होती है उसे बसंत ऋतु कहते हैं।
इस दिन भगवान विष्णु के पूजन का महात्म्य बताया गया है तथा ज्ञान की देवी सरस्वती देवी के पूजन का विशेष विधान है। सरस्वती देवी के पश्चात शिशुओं को तिलक लगाकर अक्षर ज्ञान प्रारम्भ कराने की भी प्रथा है। इस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर यथाशक्ति दान देना चाहिए।
पुराणों में बसन्त पंचमी :
पौराणिक मान्यताः- ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार जब प्रजापति ब्रह्मा ने भगवान विष्णु की आज्ञा से सृष्टि की रचना की तो वे उसे देखने के लिए निकले। उन्होंने सर्वत्र उदासी देखी। सारा वातावरण उन्हें ऐसा दिखा जैसे किसी के पास वाणी न हो। सुनसान, सन्नाटा, उदासी भरा वातावरण देखकर उन्होंने इसे दूर करने के लिए अपने कमंडल से चारों तरफ जल छिड़का।
जलकणों के वृक्षों पर पड़ने से वृक्षों से एक देवी प्रकट हुई, जिसके चार हाथ थे, उनमें से दो हांथों में वह वीणा पकड़े हुई थीं तथा उनके शेष दो हाथों में एक में पुस्तक और दूसरे में माला थी। संसार की मूकता और उदासी भरे माहौल को दूर करने के लिए ब्रह्मा जी ने इस देवी से वीणा बजाने को कहा। वीणा के मधुर स्वर नाद से जीवों को वाणी (वाक शक्ति) मिल गई।
सप्तविध स्वरों का ज्ञान प्रदान करने के कारण ही इनका नाम सरस्वती पड़ा। वीणा वादिनी सरस्वती संगीतमय आह्लादित जीवन जीने की प्रेरणा है वह विद्या, बुद्धि और संगीत की देवी मानी गई है, जिनकी पूजा आराधना में मानव कल्याण का समग्र जीवन-दर्शन निहित है।
विशेषः- इस दिन छोटे बच्चों के लिए शिक्षा आरम्भ का भी अबूझ मुहूर्त माना जाता है।
विशेषः- यह दिन वृषभ, मिथुन, कर्क, कन्या, तुला, वृश्चिक, मकर एवं कुंभ राशि वालों के लिए सगाई/रोका/टीका/गोद भराई आदि के लिए अति शुभ रहेगा।