पूज्य संत ने कहा जीवन में आगे बढ़ने के लिए संयम, त्याग, परोपकार, सेवाभाव आदि महान गुणों का आत्मसात करना होगा सदैव सत्य का पालन, लक्ष्य और धर्म के प्रति सचेत रहते हुए स्वाध्याय करना होगा। ईश्वर को कहीं खोजने की आवश्यकता नहीं हैं वरन् माता-पिता और गुरु के रुप में वह प्रत्यक्ष ही है।उन्होंने बताया कि भारत ऋषियों, मुनियों, वीरों, विद्वानों और इससे भी पूर्व प्रेम और बन्धुत्व का देश है, इसीलिए जाति-पाति, द्वेष, घृणा आदि दर्गुणों का परित्याग कर सभी के प्रति बन्धुत्व भावना को जागृत करो। संत प्रवर ने विद्यालय प्रबंधन की मुक्त कंठ से प्रंशसा करते हुए छात्रों से कहा कि श्रेष्ठ गुणों को आत्मसात् करके श्रेष्ठ, अनुशासित और आदर्श बनने के लिए प्रयत्नशील रहे।
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