सीएआरआई में तैयार यह प्रजाति देसी मुर्गी की है जिसकी साल में 220-230 अंडे देने की क्षमता होगी। खास बात यह कि ये जल्द परिपक्व हो जाएगी और वजनदार भी होगी। काली-भूरी रंग की होने के कारण वैज्ञानिकों ने इसका नाम कैरी-ग्रेसी रखने का फैसला किया है। कैरी ग्रेसी, किसी भी उन्नत देसी मुर्गी के अंडा देने की क्षमता से 30-40 अंडे ज्यादा देगी। मुर्गी पालकों के लिए यह प्रजाति काफी लाभदायक है।
फार्म पर इस प्रजाति की क्षमता का अध्ययन करने के बाद अब वैज्ञानिक इसको फील्ड परीक्षण में परखेंगे। एक साल तक यह मुर्गी गांवों में अलग-अलग फील्ड कंडीशन में रखी जएगी। इसके बाद यह तकनीक बाजार में लाई जाएगी। इस मुर्गी की प्रजाति तैयार करने में एवियन जेनेटिक्स एंड ब्रीडिंग डिवीजन के वैज्ञानिकों को तीन साल लगे। डिवीजन के विभागाध्यक्ष व प्रधान वैज्ञानिक डॉ. वीके सक्सेना ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में पोल्ट्री उत्पादन बढ़ाने के लिए ऐसी देसी मुर्गी की प्रजाति तैयार करने पर काम शुरू हुआ। डॉ. चंद्रहास और डॉ. राज नारायण को कमान सौंपी गई। वैज्ञानिकों ने सीएआरआई की ओर से पहले विकसित की गई देसी प्रजातियों से क्रास कराया गया। तीन साल के दौरान हर नई प्रजाति की क्षमता का परीक्षण किया गया पर इसमें कैसी ग्रेसी प्रजाति आलराउंडर पाई गई।
डॉ. सक्सेना ने बताया कि यह प्रजाति ग्रामीण परिवेश को ध्यान में रखकर तैयार की गई है। इसकी खासियत इसका ज्यादा अंडे देना ही नहीं है, यह दूसरी देसी प्रजातियों की तुलना में जल्द परिपक्व हो जाती है। जहां दूसरी देसी प्रजातियां जन्म के 30-32 हफ्तों बाद अंडा देने लायक बनती है। फार्म पर परीक्षण के दौरान कैरी ग्रेसी 23-24 हफ्तों में ही भूरे रंग के अंडे देने लगी।
प्रधानमंत्री मोदी के 2022 तक किसानों की आमदनी बढ़ाने की योजना को परवान चढ़ाने में यह मुर्गी काफी कारगर होगी। दरअसल उप्र में किसानों की आय दोगुनी करने के लिए बनी यूपी एपेक्स कमेटी ने इंटीग्रेटेड फार्मिंग का सुझाव दिया था। जिसमें खेती, पशुपालन, मुर्गीपालन, मछलीपालन शामिल था। साथ ही इसमें ऐसी तकनीकों के प्रयोग पर बल दिया गया था जो कम लागत में ज्यादा उत्पादन दें। ग्रेसी प्रजाति इसपर खरी उतरी। उसका जल्द परिपक्व होना, वजनदार और ज्यादा अंडे देने की खासियतें इसको ग्रामीण परिवेश के लिए सबसे ज्यादातर बेहतरीन देसी मुर्गी बनाती है।
कैरी ग्रेसी मात्र 20 हफ्तो में ही डेढ़ किलो वजनी हो जाती है। इस खासियत में उसके बराबर सीएआरआई की ओर से तैयार की जा चुकी कैरी निर्भीक प्रजाति ही है पर अंडे देने में निर्भीक पिछड़ जाती है। इसका रंग देसी मुर्गी जैसा है। इसकी मांस की गुणवत्ता देशी की है और अंडे भी भूरे रंग के हैं। देसी अंडे बाजार में पहले से महंगे बिकते हैं अब उत्पादन भी ज्यादा होने पर किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी।
प्रोजेक्ट लीडर डॉ. चंद्रहास ने बताया कि एक सामान्य देसी मुर्गी साल में 80-100 अंडे देती है। सीएआरआई की ओर से विकसित कैरी निर्भीक, कैरी श्यामा, कैरी उपकारी और कैरी हितकारी प्रजातियां 180-190 अंडे ग्रामीण परिवेश में दे पाती हैं। इस हिसाब से यह नई प्रजाति ग्रेसी 30-40 अंडे साल में अधिक देगी। अभी फील्ड ट्रायल होना है।
डॉ. चंद्रहास ने बताया कि कैरी ग्रेसी एक देसी प्रजाति है और यह देसी प्रजातियों में सर्वाधिक अंडे प्रयोगशाला परीक्षण में मिले है। हालांकि विदेशी प्रजातियां ऐसी भी है जो साल में 300 अंडे तक देती है पर देसी प्रजातियां भारतीय माहौल में ढल जाती है। यह किसानों की आमदनी बढ़ाने में कारगर होगी।
सीएआरआई के वैज्ञानिक मुर्गी की दो ऐसी प्रजातियां भी तैयार कर चुके हैं जो भीषण गर्मी में भी अंडा देना कम नहीं करती है। लैब परीक्षण में गर्मी सहने की इनकी क्षमता काफी बेहतर पाई गई है। अब इनकी क्षमता का परीक्षण फील्ड कंडीशन में हो रहा है। यह संकर प्रजाति की मुर्गिया 260 अंडे साल में देती है और भीषण गर्मी में भी अंडा देने की क्षमता में कोई कमी नहीं आई।
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