प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कोरोना वायरस (कोविड-19) की गाइडलाइन का उल्लंघन करने वालों को लेकर राज्य सरकार को अहम सुझाव दिया है। हाईकोर्ट का कहना है कि कोरोना वायरस के प्रकोप को फैलने से रोकने के लिए शारीरिक दूरी के मानक का पालन न करने वालों को जेल में बंद करने के बजाय गाइडलाइन के प्रति जागरूक और उसका पालन करने के लिए प्रेरित किया जाए। हाईकोर्ट ने कहा, “उत्तर प्रदेश की जेलों में पहले से भारी भीड़ है। शारीरिक दूरी मानक का पालन न करने पर जेल भेजने से कोरोना वायरस महामारी फैलने को बढ़ावा ही मिलेगा।”
न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति एसडी सिंह की खंडपीठ ने सोमवार को आगरा के ताजगंज के मुन्ना व छह अन्य की याचिका को निस्तारित करते हुए यह आदेश दिया। याचिका पर अधिवक्ता दिनेश कुमार मिश्र ने बहस की। कोर्ट ने कहा कि प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह कोरोना वायरस से निपटने के लिए केंद्र सरकार की गाइडलाइन का पालन करे। शारीरिक दूरी मानक का पालन न करने पर दर्ज एफआइआर से अपराध बनता है लेकिन याचियों को एक मौका दिया जाए कि वे एसएसपी आगरा के समक्ष कोरोना वायरस की गाइडलाइन का पालन करने का आश्वासन दाखिल करें। साथ ही भविष्य में उसका उल्लंघन नहीं करने का आश्वासन दें तो एसएसपी उस पर विचार करके निर्णय लें।
हाई कोर्ट ने शारीरिक दूरी मानक का पालन न करने पर दर्ज एफआइआर की विवेचना में सहयोग करने की शर्त पर पुलिस रिपोर्ट दाखिल होने तक याचियों की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है। याची का कहना है कि वे लॉकडाउन के दौरान माल्को गली में खाने का पैकेट बांट रहे थे। इस दौरान काने के पैकेट लेने वालों की भीड़ लग गयी। शीघ्र ही पैकेट वितरित कर उन्हें भेज दिया गया। इसी बीच पुलिस ने बिना तथ्य का पता लगाये याचियों के खिलाफ एफआइआर दर्ज करा दी है।
हाई कोर्ट ने कहा कि इसमें संदेह नहीं कि सामूहिक रूप से शारीरिक दूरी मानक का पालन कर कोविड-19 के प्रकोप से बचा जा सकता है। हर नागरिक को सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार कार्य करना चाहिए। लोगों में बचाव के उपायों की जानकारी और पालन करने के प्रति जागरूकता पैदा करना जरूरी है।