विशाल गुप्ता, बरेली। कोरोना वायरस लॉकडाउन का पॉजिटिव इफेक्ट ये दिखायी दे रहा है कि इन दिनों में प्रकृति ने अपनी हीलिंग कर ली है। अब एक बार फिर आसमान साफ हो गया है। दूर-दूर तक से प्रदूषण शून्य हुए पर्यावरण में एक बार फिर बरेली से नैनीताल और हिमालय के पहाड़ दीखने लगे हैं। रविवार को बरेलियन्स से अपने कैमरों में इस मनोरम दृश्य को कैद किया। सोशल मीडिया पर ऐसे फोटोज की बाढ़ सी आ गयी। बरेली लाइव ने कुछ बुजुर्गों से बात की तो उन्होंने बताया कि 55-60 साल पहले की बात करें तो बरेली से नैनीताल, पूर्णागिरि, हिमालय के पहाड़ दिखते थे।
बता दें कि बरेली में रविवार को दोपहार अचानक मौसम ने करवट ली। तेज आंधी चली और फिर बरसात शुरू हो गयी। इसके बाद बातावरण में ठण्डक तैर गयी और लोग खुले आसमान के नीच शीतल हवा का आनन्द लेने छतों पर चढ़ गये। फिर जो नजारे दिखे, वो चौकाने वाले थे। लोगों ने इन नजारों को कैमरों में कैद कर लिया।
वरिष्ठ फोटोग्राफर और उद्यमी मनोज दीक्षित ने अपनी छत से हिमलय की पहाड़ियों का बहुत ही शानदार फोटो कैमरे में कैद किया है। मनोज दीक्षित ने ये फोटो सोशल मीडिया पर शेयर किया, लिखा कि बरेली से आज हिमालय की स्वर्णिम चोटियां दिखीं। घर से छत से लिया फोटो।
प्रेमनगर में ‘कॉम्पीटेण्ट प्राइड’ टावर की छत से स्पर्श अग्रवाल ने भी कुछ फोटो क्लिक किये। इनमें भी पहाड़ दिखायी दे रहे हैं। उनके साथ संजीव अग्रवाल और सोनल ने भी पहाड़ दिखने की बात कही। भाजपा नेता मनीष अग्रवाल, रिषभ और कविता अग्रवाल ने उत्तर-पूर्व दिशा में दिखायी दिये पहाड़ों के बारे में गूगल सर्च किया तो ये पहाड़ियां टनकपुर की होने की बात कही। बता दें कि इन्हीं पहाड़ियों में से एक अन्नपूर्णा शिखर पर माँ पूर्णागिरि का भी दरबार विराजमान है।
मनीष अग्रवाल ने इसे लॉकडाउन का पॉजिटिव साइड इफेक्ट बताया। कहा कि बरेली से पहाड़ों का दीखना एक सुखद आनंद की अनुभूति है।
इसी तरह न्यूट्रीवर्ल्ड के अजय गंगवार ने बरेली के बड़ा बाईपास रिंग रोड से एक फोटो अपने मोबाइल से क्लिक किया। उसमें भी साफ मौसम के कारण पहाड़ दिखायी दे रहे हैं।
इसके अलावा पीलीभीत बाईपास रोड निवासी युवा युवराज और सौम्या सक्सेना ने भी अपनी चार मंजिल ऊंची छत से फोटो खींचकर बरेली लाइव से शेयर किये।
बरेली के परसाखेड़ा के निकट धनतिया निवासी करीब 76 वर्षीय श्रीमती सुमित्रा देवी बताती हैं कि हमने बचपन में हमारे गांव से कई बार पहाड़ देखे हैं। सुमित्रा देवी ने बताया कि जब तेज बारिश होती थी और वातावरण धुल जाता था तो बारिश रुकने के बाद बहुत स्पष्ट दिखते थे पहाड़। बोलीं-आज फिर ये पहाड़ दिखे तो बचपन की यादें ताजा हो गयीं।
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