Bareilly News

“भीड़ दोस्तों, रिश्तों की पर एकाकी हर जन देखा है…”

बरेली। “पिता काव्य सृजक” पटल पर जाने-माने कवि, संयोजक व सूत्रधार चंद्र भानु मिश्र के सरस संचालन में “परिवर्तन” शीर्षक पर सुप्रसिद्ध कवि डॉ हरिदत्त गौतम “अमर” की अध्यक्षता में काव्य समारोह का आयोजन हुआ। चन्दा प्रह्लादका ने वीणावादिनी की वंदना से शुभारम्भ किया-

“मिलता शक्ति दान, अमृतदान तुम से”

डॉ हरिदत्त गौतम “अमर” ने सुमधुर स्वर में गीत पढ़ा-

“क्या क्या परिवर्तन देखा है?

पढ़ अंग्रेजी दूर सभी भय खुला नग्न नर्तन देखा है।

भीड़ दोस्तों, रिश्तों की पर एकाकी हर जन देखा है।

देश कटा कर भी नेता का होता नित वंदन देखा है।

जीत राज्य नरमेध कर रहे इतना अधिक पतन देखा है।।”

रजनीश “स्वछन्द” ने प्रभु का स्मरण किया-

“दुनिया ही तुम्हें भूल गयी

मानो नशे में झूल गयी”

हरिश्चंद्र ने ढिबरी से एलईडी, बैलगाड़ी से मैट्रो तक का परिवर्तन चित्रित करते हुए कहा-

“दवा न पहुंच पाती पर पिज्जे में ना आती अड़चन”

ऋषि कुमार शर्मा ने गजल से समां बांधा-

“हुस्न ने उनके जादू सा ऐसा किया

हर तरफ वो ही वो झिलमिलाने लगे”

विनोद शर्मा ने हर समय होते बदलाव का सरस रेखांकन किया। रेखा कुमार ने आचरण में शून्य पर वाट्सएप पर ज्ञान बघारने वालों की काव्यात्मक खबर ली।

डॉ तारा गुप्ता ने कहा-

“न सहारे ढूंढ हर सूं ये सहारे टूटते हैं”

ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेदी ने इस गीत के माध्यम से आनंद को ऊंचाइयों तक पहुंचाया-

“चिड़ियों के बोझिल पंख हुए

चुप सारे घंटे शंख हुए

उन्मुक्त अनय आतंक हुए

कूड़े की ढेरी में छिपता

चमकीला कंचन देखा है”

संचालन करते हुए सुरेन्द्र शर्मा ने प्रश्न किया-

“खाली है घर फिर भी सर भारी रहता है

एक अनजाना डर अब दिल पर हावी रहता है।”

डॉ० निशा शर्मा ने पढ़ा-

“तू तो मशहूर है दिल्लगी के लिए

बिन तेरे जिंदगानी नहीं चाहिए।

पटल संस्थापक चंद्रभानु मिश्र ने पुनः संचालन सम्हालते हुए पढ़ा और तालियां लूटीं-

“बदल गया सब ताना-बाना बदल गया परिवेश।

आज कौन मानता कहीं भी गुरुजन का आदेश।।”

जगदीश चंद्र वर्मा ने अंत समय चार कंधों के लिए समाज में हिल-मिल कर चलने की सलाह दी।

“घर में रहने वाले के कोई ग्रह गृह-प्रवेश नहीं करता।”

नंदिनी रस्तोगी ने कहा-

“हर हाल में आने वाली मौत को

सोचकर फिर-फिर अभी से क्यों मरें

“पहले पेड़ काटकर बेच दिये तोल

अब ओक्सीजन खरीद रहे मोल।”

कल्पना कौशिक ने  पढ़ा-

“पहले हंसी ख़ुशी थी दुनिया अब जीवन जंजाल में

“प्रकृति का दिल दुखाया है तभी तो कोरोना आया है”

अनिल वशिष्ठ ने चेताया-

“सांस में सांस अटकी है एक हो जाओ”

जयप्रकाश रावत ने कहा-

“कुछ यादें तारों तक पहुंचीं कुछ सागर से गहरी हैं”

“बाढ़ खेत को खाते देखी दरवाजे को वंदनवार।”

उमेश श्रीवास्तव ने कहा-

“छीना-झपटी काम हुआ ऐसा परिवर्तन देखा

 बरगदों की छांह है भाती नहीं

अब बबूलों का जमाना आ गया।”

सच्चिदानंद शलभ ने कहा-

“अन्नप्रदाता की हालत है मजदूरों की

हर दिन हर पल आबादी बढ़ती जाती है।

तरुण रस्तोगी ने “प्रकृति से छेड़छाड़ करना कितना मंहगा पड़ता है” कविता पढ़ी।

विनोद हंसोड़ा ने निराशा में कहा-

“रिश्ते-नाते गौण हुए दौलत पाकर”

कविता”मधुर” ने वैराग्य गाया

“जगत निस्सार है फिर समझाता कोरोना”

आचार्य रामस्वरूप ने कहा-

“मुंह पर लगा मुछीका देखा।

मजदूर का चूल्हा ठंडा देखा।”

पंडित राजीव “भावज्ञ “ने कहा-

“मानव ही हो गए मशीनी”

“वैमनस्य विस्तार मात्र से सारे जन बीमार हो गए”

देवकीनन्दन “शांत” ने  “भीगे नयनों में कोलाहल अधरों पर कम्पन देखा”

अंत में काव्य समारोह के संचालक चंद्रभानु मिश्र ने आगामी विषय सूचित कर सभी सरस्वती-पुत्रों का उन्मुक्त कंठ से आभार ज्ञापित किया।

यह राष्ट्रीय कवि सम्मेलन ऑनलाइन गूगल पर आयोजित किया गया था।

gajendra tripathi

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