अखिलेश सक्सेना, बरेली। सरहद पर दुश्मन की फौज से निपटने के लिए पूरी मोर्चाबंदी है,वहां परिंदा भी आवाजाही का साहस नहीं जुटा सकता लेकिन देश के अंदरूनी हिस्सों में आवारा जानवरों की फौज के सामने सारे मोर्चे खाली पड़े हैं। यहां ऐसे जानवरों की बात हो रही है जो आम नागरिकों की जान के लिए जोखिम बने हुए हैं। महानगर हो या कस्बे हर जगह को बंदरों और कुत्तों की फौज ने घेर रखा है। इस समस्या से निपटने वाला अमला लाचार है। न कोई योजना काम आ रही, न कोई तरकीब। तेजी से बढ़ रही वानर सेना अब काफी खूंखार हो गई है। नागरिकों की मुश्किल बढ़ रही है लेकिन ओहदेदारों को इस ओर ध्यान देने की फुरसत ही नहीं है।
बरेली शहर हो या आसपास के गांव-कस्बे. हर जगह लोग लंबे समय से इस मुसीबत से दो चार हो रहे हैं। आवारा कुत्ते पकड़ने के लिए तो प्रयास हो चुके हैं लेकिन बंदरों की फौज के सामने सभी एजेंसियां हथियार नीचे किए हुए हैं। दरअसल, सबसे बड़ी समस्या भी ये बंदर ही हैं। ये अब काफी आक्रामक भी हो गए हैं। जिसने भी इनका सामना किया या इन्हें भगाने की कोशिश की, उस पर ये झुंड के साथ आक्रमण कर देते हैं। सरकारी अस्पतालों में रैबीज की वैक्सीन आसानी से मिल नहीं पाती, लिहाजा कुत्ते-बंदरों के आक्रमण के शिकार गरीबों की तो जान तक पर बन आती है।
शहर के बड़ा बाजार, इससे लगे गली-मोहल्ले जैसे कटरा मानराय, लक्ष्मी नारायण मंदिर वाली गली, भरत गली, नीम की चढ़ाई, साहूकारा गुलाबनगर, पंजाबपुरा, गौरीशंकर मंदिर, चाहवाई, गुद्दड़ बाग, जकाती, अलखनाथ मंदिर, केलाबाग, चौधरी मोहल्ला आदि दर्जनों ऐसे अंदरूनी इलाके हैं, जहां बंदर अब पेड़ों-छतों से उतरकर सड़कों-गलियों में घूमते-लड़ते मिल जाएंगे। न घर का सामान सुरक्षित रह गया है और न ही दुकान का। यही हाल महानगर के पॉश इलाकों का है। सिविल लाइंस, छावनी क्षेत्र, बड़ा पोस्ट आफिस, कचहरी, रेलवे स्टेशन, रामपुर गार्डन, नगर निगम आदि पर भी बंदरों की धमाचौकड़ी बनी रहती है। जिले के अधिकतर सरकरी दफ्तर भी इन्हीं इलाकों में हैं। बंदर अक्सर इन दफ्तरों तक में घुस जाते हैं। इससे सरकारी फइलों-संपत्ति को नुकसान पहुंचने की आशंका बनी रहती है। तेजी से बढ़ रही बंदरों की आबादी चिंता का बड़ा सबब है। नागरिकों की लगातार शिकयतों को ध्यान में रखकर बंदर पकड़वाने के लिए नगर निगम ने कई बार निगम टेंडर निकाले लेकिन किसी भी एजेंसी ने उनमें रुचि नहीं दिखाई। सबने अपने हाथ खड़े कर दिए। उनकी भी अपनी दुश्वारियां हैं। वे कोई जोखिम मोल लेना नहीं चाहते और न ही किसी राजनीतिक पचड़े में पड़ना चाहते हैं।
इन हालात में नगर निगम ने बंदरों से निपटने के लिए लंगूरों का सहारा लेने का विचार किया था लेकिन उनके तजुर्बे भी ज्यादा टिकाऊ नहीं पाए गए। लिहाजा नगर निगम के अफसरों की हालत भी लाचारों जैसी है।
बरेली। नाथनगरी में बंदरों की बढ़ती संख्या से अधिकारी भी चिंतित हैं। वे फिलहाल किसी कारगर योजना की तलाश में हैं। नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. अशोक कुमार से पिछले दिनों इस समस्या पर बात हुई तो बोले, “बंदर गंभीर समस्या बन रहे हैं। इसको लेकर शिकायतें बढ़ रही हैं। बंदर पकड़वाने के लिए टेंडर निकलवाए गए थे लेकिन इस काम से जुड़ी किसी भी एजेंसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। वजह यह कि जो लोग बंदर पकड़ने का काम करते हैं, उन्हें कुछ लोग एक संस्था के नाम पर परेशान करते हैं। उनसे बदसलूकी भी की जाती है जबकि ऐसे काम नियमानुसार सारी औपचारकताएं पूरी करने के बाद किए जाते हैं। इस पचड़े की वजह से ही लोग टेंडर में रुचि नहीं लेते। इधर कोराना महामारी की वजह से योजना पर काम आगे नहीं बढ़ पाया।”
डॉ अशोक कुमार ने बंदरों के बंध्याकरण के सुझाव पर नगर आयुक्त से चर्चा की बात कही थी लेकिन अभी तक कोई कदम आगे बढ़ता नजर नहीं आ रहा।
बरेली : भारतीय जनता पार्टी के शहर से विधायक डॉ. अरुण कुमार का साफ कहना है कि बंदर पकड़े जाने चाहिए और इसमें किसी को कोई एतराज नहीं होना चाहिए। यह आम जनता की बड़ी समस्या है। पहले जब बंदर पकड़े गए थे तो लोगों को काफी राहत मिली थी। बंदरों की बढ़ती प्रजनन दर काफी चिंता का विषय है और इसे रोकने के उपाय किए जाने जरूरी हैं। ये उपाय क्या हो सकते हैं? इस पर उन्होंने कहा- बंदरों का बंध्याकरण किया जा सकता है। इससे साल दर साल प्रजनन घटेगा और इनकी संख्या नियंत्रित हो जाएगी। इस मसले पर मैं नगर निगम को पत्र भी लिख चुका हूं। जल्दी ही इस मामले पर नगर निगम के अधिकिरयों से फिर बात करुंगा।
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