लोकप्रिय बाल-विज्ञान लेखक रवि लाइटू उर्फ आइवर यूशिएलबरेली। आज के टेलीविजन और इंटरनेट के युग में लोगों में किताबें पढ़ने की प्रवृत्ति तेजी से घट रही है। यह देश और समाज के लिए चिन्ता का विषय है। अगर देश की नौजवान पीढ़ी और बच्चे साहित्य नहीं पढ़ेंगे, किताबें नहीं पढ़ेंगे तो उनका बौद्धिक विकास, सोच प्रभावित होगी। विकसित नहीं होगी। हम सबको मिलकर बच्चों में किताबें पढ़ने की प्रवृत्ति के विकास पर ध्यान देना चाहिए। यह कहना है लोकप्रिय बाल-विज्ञान लेखक रवि लायटू उर्फ आइवर यूशियल का। लोकप्रिय विज्ञान लेखन में जुटे यूशियल ने लोगों में पढ़ने की प्रवृत्ति को लेकर खासा अध्ययन किया है। इस सम्बंध में उन्होंने बरेली लाइव के विशेष सम्वाददाता विशाल गुप्ता से विस्तृत बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश –

प्रश्न- चिन्ता की बात है कि युवाओं में कोर्स के अलावा की पुस्तकें पढ़ने में रुचि दिनों दिन घट रही है? इसके पीछे आपको क्या कारण दिखायी देते हैं?

आइवर- विशाल जी, शहरी जीवन शैली में मनुष्य हमेशा आसान युक्ति की ओर भागता है। ऐसे में इंटरनेट पर चीजें खोजना बहुत आसान लगता है। यही वजह है कि शहर के युवा और छात्र हर छोटी-बड़ी बात के लिए इंटरनेट पर निर्भर हो रहे हैं। हालांकि यह चिन्ता की बात है। इंटरनेट पर जरूरी नहीं कि जो चीजें हों वो वाकई सत्य और प्रमाणिक हों।

पूरी तरह ऐसा भी नहीं है कि पढ़ने की प्रवृत्ति खत्म ही हो गयी हो। जहां लोगों में किताबों को लेकर उत्साह है वहां उन्हें किताबें उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। शहर के अलावा जब हम उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, झारखण्ड और छत्तीसगढ़ के पिछड़े और ग्रामीण इलाकों में जाते हैं तो वहां इंटरनेट और कम्प्यूटर की उतनी सहज उपलब्धता नहीं है। ऐसे में इन इलाकों के विद्यार्थी आज भी किताबों पर ही अधिकांश निर्भर हैं, लेकिन किताबें महंगी है और इन ग्रामीण क्षेत्रों में अनुपलब्ध हैं। हालांकि वहां भी एण्ड्रॉयड फोन संस्कृति तेजी से पैर पसार रही है।

प्रश्न – आप तो बच्चों के लिए तमाम लोकप्रिय पुस्तकें लिख चुके हैं और लिखते हैं। ऐसे में आपके क्या अनुभव रहे हैं?

आइवर- मैंने पहले जो कहा, वह अपने अनुभवों के आधार पर ही कहा है। मेरे पास सैकड़ों-हजारों की तादात में युवाओं के पत्र आते हैं। वे कहीं से मेरी किताबों को पढ़ते हैं तो और पढ़ने की जिज्ञासा होती है। लेकिन उनके इलाकों में कई बार पुस्तकों की दुकान ही नहीं होती। उन्हें किताबें खरीदने के लिए शहर आना होता है। ऐसे में कई बार मन मर जाता है। परिणामतः वे लोग भी विकल्प खोजने लगते हैं।

किताबें पढ़ने की प्रवृत्ति का दिन-प्रतिदिन बिगड़ता जाना देश के लिए खतरनाक है।ऐसी परिस्थितियों में हम सभी और सरकार की भी जिम्मेदारी है। आम आदमी को किताबों की उपलब्धता सहज कराने के लिए ईमानदार प्रयास की जरूरत है।

प्रश्न- आप तो इसके लिए अभियान छेड़े हुए हैं। सरकार से क्या मांग करते हैं?

आइवर- चूंकि मैं लेखन के क्षेत्र में हूं, इसलिए मुझे हमेशा किताबों की उपलब्धता की आवश्यकता महसूस हुई। इस संबंध में, मैंने विनम्रतापूर्वक रेल मंत्रालय से अनुरोध किया है कि कृपया प्रत्येक छोटे-बड़े स्टेशन पर और हर जगह एक सभ्य बुकस्टॉल स्थापित करने के लिए आगे आएं। देश के रेलवे स्टेशन, चाहे वह महानगरीय हों या किसी छोटे से गांव का हो, जनमानस के लिए बहुत उपयोगी होता है। वहां बुक स्टाल पर क्षेत्र के लोगों के लिए रोचक, सृजनात्मक और सूचनात्मक पुस्तकें-पत्रिकाएं उपलब्ध रहेंगी तो जिज्ञासु लोगों को लाभ होगा।

इसका दोहरा लाभ होगा। पुस्तकों की उपलब्धता से न केवल विद्यार्थियों और क्षेत्रवासियों को लाभ होगा, बल्कि जितने रेलवे स्टेशन हैं कम से कम उतने परिवारों- लोगों को रोजगार मिलेगा। किताबें पढ़ने की प्रवृत्ति बढ़ेगी तो किताबों की मांग में भी इजाफा होगा। नये लेखक किताबें लिखने के लिए प्रोत्साहित होंगे और प्रकाशन के व्यवसाय का भी विकास और विस्तार होगा। बस, जरूरत है सरकार की ओर से एक छोटी सी पहल की।

प्रश्न- कैसा बुक स्टाल और वहां कैसी किताबें चाहते हैं आप?

आइवर- विशेष रूप से बच्चों के हितों को ध्यान में रखा जाना चाहिए, ताकि सचित्र पुस्तकों-रंगीन पत्रिकाओं के रूप में ज्ञान-आधारित मनोरंजक सामग्री पढ़ने के लिए पूरे देश में युवा पीढ़ी के करीब लाया जा सके। मुझे लगता है कि टीवी के युग में सचित्र पुस्तकें ही पढ़ने की आदत को विकसित करने में सहायक हो सकती हैं। इससे एक पुस्तक संस्कृति विकसित हो सकती है। इसके लिए मैंने सरकार को सुझाव भेजा है।

जहां तक कैसा बुकस्टॉल का प्रश्न है तो इसेएक विशिष्ट डिजाइन में रखना बहुत जरूरी है। इस बुक स्टॉल का एक सिरा यानि काउण्टर प्लेटफॉर्म पर और दूसरा बाहरकी तरफ होना चाहिए। कई बार महानगरों में भी ऐसा हेता है कि लोग बुक स्टॉल तक इसलिए नहीं जाते क्योंकि या तो प्लेटफार्म पर बिना टिकट जायें अथवा टिकट के लिए पहले लम्बी कतार में लगें। इस परेशानी से पुस्तक प्रेमियों को बचाने के लिए परिसर में विशेष ले-आउट का बुक स्टाल स्थापित करना होगा। मुझे यकीन है कि ऐसे बुक स्टाल सकारात्मक प्रभाव पैदा करेंगे।

विशाल गुप्ता- आपने हर पुस्तक प्रेमी के दिल की बात कही है। हम आशा करते हैं कि आपका यह प्रयास सफल रहे और देश में पुस्तक संस्कृति का विकसित हो। बरेली लाइव से बात करने के लिए बहुत आभार।

आइवर यूशियल- आप अपने पोर्टल के माध्यम से इस बात सरकार पहुंचाने में जो मदद कर रहे हैं। इसके लिए आपका हार्दिक धन्यवाद।

नीच दिये गये लिंक पर क्लिक करके आप भी रेलवे स्टेशन पर बुक स्टॉल खुलवाने के इस अभियान में अपना वोट दे सकते हैं।

https://www.gopetition.com/petitions/every-railway-station-must-have-a-book-stall.html 

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