मां प्रसन्न हुई और मां ने कात्यायन ऋषि की प्रशंसा के लिए अजन्मा स्वरूप त्याग कर ऋषि कुल में कन्या के रूप में जन्म लिया,इसी कारण देवी मां का नाम कात्यायनी पड़ा।
वैसे तो समान्यता पुत्री का गोत्र पिता के गोत्र से अधिक पति के गोत्र से चलता है लेकिन यहा तो देवी सदा सर्वदा के लिए पिता के गोत्र कात्यायन से जुड गई।
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