डीएम सुरेन्द्र सिंह ने बताया-क्यों चुनें सिविल सर्विसेज में कॅरियर, दिये सफलता के टिप्स

बरेली। जिलाधिकारी सुरेन्द्र सिंह रविवार को एक कड़क अफसर की जगह कॅरियर काउंसलर नजर आये। उन्होंने बेहद आसान शब्दों में सहजता के साथ युवाओं को कॅरियर में सफलता के टिप्स दिये। उनके व्याख्यान पर कई बार सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। मौका था सेण्टर फार एम्बिशन द्वारा संजय कम्युनिटी हाॅल में आयोजित सेमिनार का। विषय था –कैसे करें आईएएस और पीसीएस की तैयारी।‘

कार्यक्रम का शुभारम्भ मां सरस्वती और स्वामी विवेकानन्द के चित्र पर माल्यार्पण के साथ हुआ। फिर छोटी से बच्ची ‘श्री‘ ने नृत्य से गणेश वंदना प्रस्तुत की। फिर स्वागत आदि की औपचारिकताओं के बाद जब जिलाधिकारी सुरेन्द्र सिंह ने माइक संभाला तो हाॅल में माहौल एकदम शान्त हो गया। हाॅल युवाओं, उनके परिजनों एवं शहर के गणमान्य लोगों से खचाखच भरा हुआ था।

उन्होंने अपने व्याख्यान को शुरू करते हुए कहा कि लोग सफलता के टिप्स देते हैं लेकिन मैं आपसे असफलता के बारे में बात करुंगा। इसके बाद कुछ हल्के-फुल्के चुटकुले के साथ माहौल को हल्का करते हुए बातचीत शुरू की।

उन्होंने संदेश दिया कि अगर असफल होने के कारणों का पता हो जाये तो सफलता पाना आसान होता है। इसी मूलमंत्र के साथ वह बोले-युवाओं को सपनों को पूरा करने में तमाम चुनौतियां आती हैं, आयेंगी ही। उन पर विजय पाकर ही विजेता बना जाता है।

अंग्रेजी का भय दिलाता है असफलता
डीएम ने कहा कि भारत के युवाओं में अंग्रेजी को लेकर अजीब सी मानसिकता बन गयी है। अंग्रेजी न आना कोई कमजोरी नहीं है। कहा कि जर्मनी, फ्रांस में तो कोई नहीं बोलता अंग्रेजी, फिर भी वे विश्व में अग्रणी हैं। कहा कि ज्ञान किसी भी भाषा में लिया और संजोया जा सकता है। इसलिए किसी भी भाषा की कम जानकारी का मानसिक भय न पालें।

किस संस्थान से पढ़े हैं का भय
कहा कि एक और हीनभावना युवाओं में रहती है कि वे किसी संस्थान विशेष से नहीं पढ़ेंगे तो सफलता कैसे मिलेगी। बोले कि यह सही है कि संस्थान विशेष का एक प्रभाव होता है लेकिन जीवन में सफलता परिश्रम और स्पष्ट विजन एवं संकल्प से मिलती है, किसी संस्थान के नाम से नहीं।

संसाधनों की कमी को बनायें अपनी असली ताकत
कहा कि बहुत से छात्रों के परिजन न तो उन्हें कोचिंग दिला पाते हैं और न ही महंगी किताबें। इस पर बहाने न बनायें। अगर संकल्प मजबूत हो तो रास्ते स्वयं चलकर आते हैं। कहा कि यह व्यवहारिक बात है कि जब हम किताब खरीद लेते हैं तो उसे आवश्यकतानुसार पढ़ते हैं। ऐसे में कई बार लापरवाही होती है। इसके विपरीत अगर किताब किसी पुस्तकालय या दोस्त से मांगकर लाते हैं तो नियत समय में उसे पढ़ते हैं, साथ ही नोट्स भी बनाते हैं क्योंकि बार-बार न तो मांगी जा सकती है और न ही लाइब्रेरी से मिल सकती है।

खुद की नकारात्मकता होती है हमारी दुश्मन
डीएम श्री सिंह ने कहा कि हमारे मन-मस्तिष्क पर हमेशा एक नकारात्मक बल काम करता रहता है। हम सदैव सफलता के प्रति आशंकित रहते हैं कि किताबें नहीं हैं, पैसे नहीं हैं, कोचिंग नहीं हैं, अंग्रेजी नहीं आती, समय नहीं है, कैसे करेंगे, हम औरों से कम जानते हैं, आदि-आदि। कहा कि इन नहीं-नहीं की जगह अगर आप इनका प्रबंधन सीख लेंगे तो सफलता खुदबखुद चलकर आयेगी।

ज्ञान और अध्ययन को दूसरों से बांटें
डीएम ने कहा कि हम अक्सर अपने मित्रों को जो वास्तव में हमारे कम्प्टीटर होते हैं को अपना शत्रु मान लेते हैं। जो हम पढ़ते हैं उसे औरों से शेयर नहीं करते। यह गलत है। उदाहरण दिया कि यदि कोई विषय है उसे कुछ मित्र बांटकर तैयारी करें और फिर एक दूसरे को पढ़ाये ंतो कम समय में विषय पूरा हो जाएगा, साथ ही विषय का रिवीजन भी हो जाएगा। फिर जो सवाल हमारे दिमाग में न आ सकें हो, संभव है कि अन्य मित्रों के पूछने पर वह भी स्पष्ट हो जायेंगे।

दिमाग को न करें परेशान
किसी भी परीक्षा की तैयारी बिना किसी दुविधा के करें। एक ही विषय पर अलग-अलग तरीकों की पुस्तक पढ़ने से बचें, इससे कन्फ्यूजन पैदा होता है। परीक्षा से चंद मिनट पहले पढ़ने का रोग न पालें, कम से कम एक दिन पूर्व पढ़ाई पूरी कर लें और दिमाग को रिलैक्स होकर परीक्षा देने दें।

क्यों चुनें सिविल सर्विसेज का कॅरियर
उन्होंने कहा सिविल सर्विसेज में कॅरियर बनाने वाले युवा अक्सर डीएम, एसएसपी, इनकम टैक्स कमिश्नर, सेल्स टैक्स अफसर आदि का ग्लैमर देखकर इस क्षेत्र को चुनते हैं। यदि आपके साथ भी ऐसा तो इस क्षेत्र में न आयें। उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र जनता की सेवा का क्षेत्र है। किसी भी निजी क्षेत्र की नौकरी में पहले कम ग्लैमर फिर धीरे-धीरे बढ़ता जाता है। लेकिन सिविल सर्विसेज इसके विपरीत है यहां पहले सीडीओ या डीएम का ग्लैमर जीने को मिलता है फिर सीनियरटी बढ़ने के साथ ही आपको सचिव आदि के पद मिलते हैं। वहां न बंगला होता है और न अर्दली। बस, एक आप और एक आपका ड्राइवर। रहने को बंगले की जगह छोटा सा क्वार्टर मिलता है। ऐसे में ग्लैमर देखकर उपजी सेवा की भावना खत्म हो जाती है।

उन्होंने कहा कि अगर देश की सेवा करना हो तो, किसी का दर्द समझने और उसे ठीक करने की ललक हो तो, गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा का जज्बा हो तो और सामाजिक, ऐतिहासिक या अन्य कारणों से पैदा हुई लोगों की समस्याओं को सुलझाने का जज्बा हो तो सिविल सर्विसेज है आपकी सही जगह। वह यहीं नहीं रुके-बोले-भारत में सिविल सर्विसेज में एक स्थायित्व है, सम्मान है, जो अन्य देशों में नहीं है। यहां सरकारें बदलने के साथ नौकरशाही बदलती नहीं है। यहां विभिन्न राजनीतिक दलों की सरकारों के साथ काम करने का मौका मिलता है। देश और समाज के विभिन्न तबकों, संस्कृतियों को समझने का मौका मिलता है इन सेवाओं के माध्यम से। बस इसके लिए चाहिए आपका पूर्ण संकल्पयुक्त समर्पण।

इससे पूर्व बरेली कालेज के शिक्षक डा. रामबाबू की पुस्तक का विमोचन किया गया। सेण्टर फार एम्बीशन, आगरा के निदेशक अमित सिंह, बरेली के निदेशक सोहन चैधरी ने कार्यक्रम के आयोजन पर प्रकाश डाला। बरेली कालेज की वरिष्ठ शिक्षिका डाॅ वंदना शर्मा, चंद्रसेन सागर ने भी विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम की अध्यक्षता बरेली कालेज के उप प्राचार्य डा. अजय शर्मा ने की और संचालन किया सचिन श्याम भारतीय ने।

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