भमोरा (बरेली)। सफेद रंग का बड़ा ही आकर्षक घोड़ा था राजू। उसकी मस्त चाल देखकर ही उसे खरीदा था। बड़े अरमान से घर लाया गया था। फिर बुग्गी में जुड़कर अपने मालिक के घर के लिए रोटी के इंतजाम के बोझ को उठाता था। वह घोड़ा ही नहीं वीरपाल का साथी था। लेकिन जाने किसकी नजर लगी कि उसी साथी घोड़े को जहरीला इंजैक्श लगाकर दया मृत्यु देनी पड़ी। अपने साथी राजू की इस दर्दनाक मौत पर वीरपाल और उसके परिवार का रो-रोकर बुरा हाल था। दरअसल वह घोड़ा राजू ग्लैण्डर्स नामक लाइलाज बीमारी से जूझ रहा था।
उसे ग्लैंडर्स क्यों और कैसे हुआ, पता ही नहीं चल सका। लेकिन इसकी आशंका में पिछले दिनों इस घोड़े का नमूना हिसार राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र भेजा गया था। जांच में ग्लैंडर्स की पुष्टि हो गई। यह घोड़ा भमोरा क्षेत्र के सरदार नगर के वीरपाल का घोड़ा था। वह पूरी तरह स्वस्थ प्रतीत होता था। घोड़े की जांच रिपोर्ट आने के बाद पशुचिकित्सकों ने वीरपाल को इसकी जानकारी दी। साथ ही राजू को दर्द रहित मौत देने के बारे में बताया। अपनी गृहस्थी के बोझ को ढोने में अपने पार्टनर के बारे में ऐसा सुनकर वीरपाल के पैरों तले मानों जमीन ही खिसक गयी। डॉक्टर्स ने बहुत समझाया लेकिन वीरपाल अपने राजू को मौत देने को स्वीकार ही नहीं कर पा रहा था। अंततः वह हार गया और घोड़े को दया मृत्यु देने के लिए सोमवार का दिन मुकर्रर कर दिया गया।
सोमवार को डॉक्टर्स की टीम पहुंची और ग्राम प्रधान भी पहुंच गये। जो घोड़ा रोटी दे रहा था, उसे लेकर वीरपाल के बेटे जंगल पहुंचे और घोड़ा की लगाम डॉक्टरों को सौंप दी। डॉक्टर्स ने इंजेक्शन लगाया और आंखों के सामने ही वो शानदार साथी जमीन पर ढेर हो गया। उसे दफना दिया गया। इधर घोड़ा गिरा, उधर वीरपाल और उसके दोनों बेटों की आंखों से झरने फूट गये। तीनों का रो-रोकर बुरा हाल था।
कई दिन तक डॉक्टर वीरपाल को घोड़े की मर्सी डेथ के लिए तैयार करते रहे। सोमवार का दिन घोड़े को मौत देने के लिए तय कर दिया गया। तीन डॉक्टरों की टीम गांव पहुंची। ग्राम प्रधान की मौजूदगी में वीरपाल और उसके दोनों बेटे खुद घोड़े को लेकर जंगल में गए। घोड़ा डॉक्टरों को सौंप दिया।
वीरपाल ने बताया कि पिछले दिनों भी एक घोड़े की मौत ग्लैंडर्स से हो गई थी। डॉक्टर्स के मुताबिक मरने वाले घोड़े से ही सफेद घोड़े राजू में ग्लैंडर्स की बीमारी आने की आशंका है।
मर्सी डेंथ यानि दया मृत्यु की सारी तैयारियां होने पर राजू का ब्लड सैम्पिल लिया गया। इसके बाद तैयार किये गये गड्ढे के पास ले जाकर डेथ इन्जेक्शन लगने वाला था। तभी याद आया किचूना और नमक नहीं आया है तो राजू को वापस छाया में लाया गया। 22 मिनट बाद चूना और नमक आने पर डेथ इन्जेक्शन देकर उसे हमेशा के लिए सुला दिया गया।
ग्लैंडर्स संक्रमित घोड़ा, गधा या खच्चर की मौत पर सरकार 25 हजार का मुआवजा मालिक को देती है। इसी क्रम में वीरपाल को भी 25 हजार रुपये दिए जाएंगे। वीरपाल के बैंक खाते का विवरण सरकार को भेज दिया गया है।
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