नई दिल्ली। दहेज उत्पीड़न की बढ़ती शिकायतों के बीच दिल्ली की कड़कड़डूमा अदालत ने एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है। दहेज उत्पीड़न के एक मामले में शिकायतकर्ता महिला के सास-ससुर और देवर को आरोपमुक्त करते हुए अदालत ने कहा है कि शिकायतकर्ता जब ससुरालवालों पर उत्पीड़न का आरोप लगाती है तो उसे उन आरोपों की पुष्टि के लिए साक्ष्य भी पेश करने चाहिए। अगर वह ऐसा नहीं कर पाती है तो ससुराल पक्ष पर को बेवजह अदालत के चक्कर लगवाना उचित नहीं है। अदालत ने इस मामले में शिकायतकर्ता के बुजुर्ग सास-ससुर और देवर को आरोपमुक्त कर दिया।
अदालत ने कहा कि इस बुजुर्ग दंपति ने चार साल अदालत के चक्कर लगाए हैं लेकिन जब मामला गवाही पर आया तो पता चला के शिकायतकर्ता उन तारीखों और समय का उल्लेख भी नहीं कर पा रही जब उसके साथ प्रताड़ना हुई। इतना ही नहीं, वह यह भी नहीं बता पाई कि उससे किस-किस तरह की मांग की गई।
मुकदमा दर्ज करने से पहले तथ्यों को परख ले पुलिस
अदालत ने कहा कि इस तरह के मामले बहुत सारे लोगों को वेबजह कानूनी प्रक्रिया में शामिल होने के लिए मजबूर करते हैं। अदालत ने पुलिस से भी कहा कि उन्हें भी मुकदमा दर्ज करते समय तथ्यों को परख लेना चाहिए कि जो आरोप लगाए जा रहे हैं उनको लेकर किसी भी तरह की प्रमाणिकता है या नहीं।
ये है मामला
इस मामले में एक महिला ने अपने सास-ससुर और देवर पर आरोप लगाया था कि वे उसे दहेज के लिए प्रताड़ित करते हैं, लेकिन शिकायत में कहीं भी यह नहीं बताया गया कि प्रताड़ना किस तरह की हो रही है। साथ ही शिकायत में किसी तारीख या समय का जिक्र भी नहीं किया गया था।